फिल्म फागुन का एक सीन है, जिसमें एक बंजारन लड़की को अपने प्रेमी जमींदार के लड़के के लिए बेचैन और चिंतित होकर इंतजार कर रही होती है, तभी परिदृश्य में बीन की धुन बजती है, लड़की उस धुन को पहचान लेती और फिर पर्दे पर लता मंगेशकर और मुहम्मद रफ़ी की आवाज में एक युगल गीत होता है, गीत के बोल हैं-“एक परदेसी मेरा दिल ले गया”, इस गाने को फिल्माया गया था, मधुबाला और भारत भूषण पर, भारत भूषण जो एक समय बहुत प्रसिद्ध अभिनेता रहे, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था, जब उन्हें पाई-पाई को मोहताज़ होना पड़ा था और जब उन्हें बेहद मुश्किलों में जीना पड़ा था, कौन थे भारत भूषण और उन्हें एक समय में परेशानियों का सामना क्यों करना पड़ा था, आइये जानते हैं।
प्रारंभिक जीवन –
1950-60 के दशक तीन अभिनेताओं दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर की तिकड़ी अत्यंत प्रसिद्ध है, इन तीन अभिनेताओं ने के बीच एक ऐसा भी एक्टर रहा जो अपनी जबरजस्त अदाकारी के लिए जाने जाते थे, यह अभिनेता थे ‘भारत भूषण’, जिन्हें अपनी जबरजस्त एक्टिंग की वजह से दो बार बेस्ट अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। भारत भूषण गुप्ता, जिनका जन्म 14 जून 1920 को मेरठ उत्तरप्रदेश में हुआ था, उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल मेरठ के प्रसिद्ध वकील थे, आगे चल कर वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज भी बने, जब महज वह 2 साल के थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था, जिसके कारण उनकी परिवरिश अपने दादा के घर अलीगढ में हुई थी, वहीं उन्होंने अपनी पढ़ाई की और पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर अभिनय करने लगे, पहले वह कलकत्ता गए और वहां से मुंबई की राह पकड़ी।
फिल्मों का सफर –
1941 में आई सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक किदार शर्मा की फिल्म चित्रलेखा से जो कि 1934 में आई भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा पर आधारित थी। हालांकि भारत भूषण इसमें मुख्य भूमिका में नहीं बल्कि सहायक भूमिका में थे। लेकिन उनको पहचान 1945 में आई फिल्म सावन से मिली, उसके बाद उन्होंने लगभग 30 से ज्यादा फिल्म में काम किया, जिनमें से कई सुपरहिट रहीं। मीना कुमारी के अपोजिट 1952 आई उनकी फिल्म ‘बैजू बावरा’ तो खूब सफल रही, 1953 में आई फिल्म चैतन्य महाप्रभु के लिए उन्हें बेस्ट अभिनेता का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी मिला था। इसके अलावा ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’, ‘बरसात की रात’ और ‘बसंत बहार’ इत्यादि अन्य सुप्रसिद्ध फिल्में थीं, जिसमें उन्होंने अभिनय किया, वह फिल्म अभिनेता ही नहीं बल्कि फिल्म निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर भी रहे।
अर्श से फर्श तक –
भारत भूषण ने खूब प्रसिद्धि पाई और खूब दौलत भी कमाई, वह बहुत ही रॉयल लाइफ जीते थे, इसके साथ ही उन्हें किताबों का भी बहुत शौक था, कहते हैं उनके पाली हिल वाले बंगले में एक निजी लाइब्रेरी थी, जिसमें लगभग एक लाख किताबें थीं, लेकिन एक समय ऐसी भी आया जब वो, आर्थिक तंगी से जूझने लगे। इसका कारण था उनका फिल्मों का निर्माता बनने का फैसला, कहते हैं वह अपने भाई के कहने पर प्रोड्यूसर बने थे, बतौर निर्माता उनकी दो फिल्में ‘बसंत बहार’ और ‘बरसात की रात’ तो सफल रहीं, लेकिन बाकि फिल्में बुरी तरह फ्लॉप रहीं, लेकिन उन्हें सर्वाधिक नुकसान हुआ था 1964 में आई फिल्म ‘दूज की चाँद’ के लिए, इस फिल्म के निर्माण के लिए भारतभूषण ने अपनी सारी जमापूंजी लगा दी थी, उन्होंने इस फिल्म के लिए क़र्ज़ भी बहुत ले लिया था, लेकिन दुर्भाग्यवश यह फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही और भारत भूषण को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा।
आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने अपना पाली हिल वाला बंगला भी बेच दिया, जिसे उस समय जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेंद्र कुमार ने खरीदा था, हालांकि राजेंद्र कुमार ने भी यह बंगला आगे चलकर राजेश खन्ना को बेंच दिया था। बंगले के अलावा उन्हें अपनी किताबें रद्दी के भाव में बेचनी पड़ी थी। उन्हें फिल्मों में लीड रोल भी मिलने बंद हो गए थे, बाद में वह फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी करने लगे, हालांकि उन्हें वह स्टारडम फिर कभी दुबारा नहीं मिला।
निजी जीवन –
उनका विवाह मेरठ के एक जमींदार परिवार की सरला देवी से हुआ था, जिनसे उनकी दो बेटियां अनुराधा और अपराजिता हुईं। अपराजिता भी अपने पिता की तरह फिल्म और टेलीविज़न की अभिनेत्री हैं, रामानंद सागर द्वारा निर्मित ‘रामायण’ में उन्होंने लंका की महारानी मंदोदरी का किरदार निभाया था। अपनी पत्नी सरला देवी के निधन के बाद वह ‘मधुबाला’ से विवाह करना चाहते थे, जो उनकी बहुत अच्छी दोस्त भी थीं, लेकिन मधुबाला इसके लिए तैयार नहीं हुईं और उन्होंने किशोर कुमार से विवाह कर लिया। भारत भूषण निजी जिंदगी में बहुत सिगरेट पीते थे, इसके उलट फ़िल्मी पर्दे पर उनकी छवि बहुत धार्मिक और सौम्य व्यक्ति की थी, फिल्म चैतन्य महाप्रभु की रिलीज़ के बाद एक बार वह रोड में खड़े होकर सिगरेट पी रहे थे, तभी एक फैन ने उन्हें टोक दिया, जिसके बाद उन्होंने सिगरेट हमेशा के लिए छोड़ दी थी।
और अंत में –
उनके बारे में सबसे मार्मिक किस्सा अमिताभ बच्चन ने एक ब्लॉग में शेयर किया था, जिनके अनुसार उन्होंने एक वक्त के सुपरस्टार भारतभूषण को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस पकड़ने की लाइन में खड़े देखा था, उसके बाद उनके बारे में बहुत सारी अफवाहें फैलने लगीं, एक अफवाह के अनुसार तो उन्हें गॉर्ड की नौकरी करनी पड़ी, और फिल्मफेयर की ट्रॉफी भी बेचनी पड़ी थी, लेकिन उनकी बेटी इन बातों से इंकार करती हैं, यह सही है आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें कुछ वक़्त किराये के घर में रहना पड़ा था, लेकिन जल्द ही उन्होंने थ्री बीएचके फ्लैट खरीद लिया था, जहाँ वह अंत समय तक रहे, उनकी बेटियां भी उनका ध्यान रखती थीं।
अकेलेपन, निराशा, असफलता और बीमारियों की वजह से 27 जनवरी 1992 को उनका निधन हो गया, और एक सितारा हमेशा के लिए डूब गया, लेकिन उनकी जिंदगी की कहानी एक सितारे के अर्श से फर्श तक की कहानी है, जिससे हम सीख भी सकते हैं।