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गांधी, नेहरू, धर्म और प्रेम पर क्या थे भगत सिंह के विचार

इंकलाब ज़िंदाबाद ।” ये शब्द आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजते हैं। शहीदे-आज़म भगत सिंह के ये शब्द न केवल आजादी के लिए संघर्ष की पुकार थे, बल्कि उनके अंदर समाया हुआ एक गहरा वैचारिक दर्शन भी था। नमस्कार दोस्तों, आज देश भगत सिंह की 117वीं जयंती मना रहा है। उनके विचार और उनके सपने आज भी हम सबके लिए प्रासंगिक हैं। क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह ने गांधीजी और नेहरूजी के बारे में क्या सोचा था? और उनके धर्म, साम्प्रदायिकता और प्रेम के प्रति क्या विचार थे? आइए, जानते हैं इस वीडियो में।


शहीदे आज़म भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को एक छोटे से गाँव बंगा में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। उस समय यह गाँव लायलपुर जिले में पड़ता था, जिसे अब फैसलाबाद कहा जाता है। भगत सिंह, बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे। अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों को देखकर उनका खून खौल उठता था। लेकिन उनका संघर्ष सिर्फ आजादी के लिए हथियार उठाने तक सीमित नहीं था। वे अपने समय के सबसे गहरे विचारक और लेखक भी थे। भगत सिंह का उद्देश्य केवल अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं था, बल्कि वे एक नए भारत की कल्पना करते थे, जहाँ इंसान के अधिकारों और न्याय का सम्मान हो।


कई लोग सोचते हैं कि भगत सिंह और महात्मा गांधी के विचारों में मतभेद था। सच यह है कि दोनों का उद्देश्य एक ही था – देश की आज़ादी। लेकिन रास्ते अलग-अलग थे। जहाँ गांधीजी ने अहिंसा का रास्ता चुना, वहीं भगत सिंह मानते थे कि कुछ विशेष परिस्थितियों में हिंसा ही एकमात्र उपाय है। भगत सिंह ने अपने लेखों में साफ किया था कि वे महात्मा गांधी का सम्मान करते हैं, लेकिन अहिंसा के सिद्धांत से पूर्ण रूप से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा था, “अहिंसा का सिद्धांत तभी कारगर हो सकता है जब उसके पीछे मानसिक और सामाजिक क्रांति की ताकत हो।” उनका मानना था कि अगर जनता को अपनी आवाज़ उठाने का कोई और रास्ता न मिले, तो हिंसा भी एक वैध उपाय हो सकता है।


जवाहर लाल नेहरू और भगत सिंह के संबंधों में गहरा संवाद था। जहाँ नेहरू लोकतांत्रिक सुधारों और धैर्य के समर्थक थे, वहीं भगत सिंह तत्काल क्रांतिकारी बदलाव चाहते थे। नेहरू जी ने भगत सिंह की फांसी के समय खुद को असहाय महसूस किया था। भगत सिंह का मानना था कि नेहरू की राजनीतिक स्थिति, यथास्थिति बनाए रखने की थी, जबकि वे इसके विपरीत, व्यवस्था को पूरी तरह बदलना चाहते थे। उन्होंने लिखा था: “नेहरूजी भारत के भविष्य के प्रतीक हैं, लेकिन इस भविष्य को केवल संसदीय सुधारों से नहीं बदला जा सकता।” इसमें कोई दो राय नहीं कि भगत सिंह के विचार नेहरू के मन में भी गहरा प्रभाव छोड़ गए।


भगत सिंह का सपना केवल ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने का नहीं था, बल्कि वे एक ऐसा समाज चाहते थे जो हर तरह के शोषण, साम्प्रदायिकता और धार्मिक भेदभाव से मुक्त हो। उन्होंने अपने लेखों में बार-बार चेताया कि धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। वे धर्म को व्यक्तिगत आस्था मानते थे, लेकिन इसे समाज और राज्य के मामलों में घुसने नहीं देना चाहते थे। उनका मानना था कि साम्प्रदायिकता से राष्ट्र कमजोर हो जाता है। धर्म और राजनीति का मेल समाज को तोड़ने का सबसे बड़ा कारण है। आज के भारत में, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर फिर से फैल रहा है, भगत सिंह के ये विचार हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।


भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि वे प्रेम के भी प्रतीक थे। उनके लिए प्रेम का अर्थ सिर्फ व्यक्ति से नहीं, बल्कि समाज और देश से था। उनका मानना था कि “इश्क सिर्फ हुस्न से नहीं, इंकलाब से भी हो सकता है।” प्रेम के सवाल पर भगत सिंह ने जेल में एक नोट भी लिखा था जब उनके साथी रागजुरु और सुखदेव ने उनसे प्रेम पर संवाद किया था. उनकी शायरी में इश्क का इंकलाब से जुड़ाव साफ झलकता है। वे कहते थे, “सीने में जुनूं, आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं। दुश्मन की सांसे थम जाए, आवाज में वो धमक रखता हूं।” उनके शब्द केवल उनकी भावनाओं का प्रतिबिंब नहीं थे, बल्कि वे एक नए समाज के निर्माण का सपना देखते थे। उनके लिए प्रेम बराबरी और न्याय के लिए लड़ने की शक्ति थी।


भगत सिंह की फांसी को 93 साल हो गए हैं, लेकिन उनके विचार और उनकी विरासत आज भी हमारे साथ हैं। उन्होंने कहा था: “लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।” यह भविष्यवाणी आज भी सच है। आज जब हम देश को एक नई दिशा देने की बात करते हैं, भगत सिंह के विचार हमें यह सिखाते हैं कि असली क्रांति विचारों और प्रेम से आती है. शहीदे आजम भगत सिंह ने केवल अपने जीवन का बलिदान ही नहीं दिया, बल्कि अपने विचारों से एक नई क्रांति की नींव रखी। उनके विचार, उनके सपने और उनका साहस हमें सिखाते हैं कि असली आज़ादी तब मिलेगी जब समाज के हर व्यक्ति को बराबरी और सम्मान मिले। उनका जीवन, उनके संघर्ष, और उनके शब्द हमें प्रेरित करते हैं कि हम भी उस भारत की रचना करें जिसका सपना उन्होंने देखा था। इंकलाब जिंदाबाद!

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