अपनत्व का एहसास किसी से भी हो सकता है फिर चाहे कोई अपना हो या पराया उसके लिए किसी रिश्ते की डोर से बंधा नाम होना ज़रूरी नहीं है,ऐसा साथ होना ज़रूरी है जो बिन बोले आपके मन की बात समझ जाए आपको जब ज़रूरत हो उसकी ,वो हांथ थामने चला आए। आपके ख़ुशी और ग़म का उसको एहसास हो।
कैसा एहसास है ये :-
ये वो प्यारा सा एहसास है जो तब भी हमें किसी की परवाह करने के लिए कहता है ,उसका ख्याल रखने के लिए कहता है जब ऐसा करना हमारे लिए फ़र्ज़ नहीं होता ,हम किसी को जवाबदेह नहीं होते,ऐसा न करने पर ,फिर भी किसी का ख्याल रखना , हमें अच्छा लगता है, उसे ख़ुशी देने से हमें ख़ुशी मिलती है।
बेनाम रिश्तों में, खून के रिश्तों सी ताक़त होती है ?
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो इस जज़्बे की क़द्र करते हैं,उन्हें इस बात का एहसास होता है कि कोई उनकी इज़्ज़त करता है या किस लेहाज़ से उनसे अपनापन रखता है और हर मुश्किल में उनका साथ देता है इसलिए बड़ी शिद्दत से लोग केवल ये बेनाम रिश्ते बनाते ही नहीं हैं बल्कि निभाते भी हैं , हर बंदिश को तोड़कर , जाति – धर्म की दीवारें भी गिराकर एक दूसरे का साथ देते हैं।
ये वो बेनाम रिश्ते हैं जिनमें दुनियाबी रस्में न भी निभाई जाएं तो भी ये इतने मज़बूत होते हैं कि अपने उन खून के रिश्तों से भी कभी-कभी बढ़कर हो जाते हैं, जिनकी डोर रस्मों रिवाज से जुड़ी होती है।
कैसे जुड़ जाते हैं ये बंधन :-
ये बंधन दिल बांधता है, जिसके रिश्ते कहीं भी कैसे भी बन जाते हैं, कैसे? जब कोई दुनिया की भीड़ में हमें अपना लग जाता है , साथ निभाने के लिए कोई वचन नहीं देता पर उम्र भर साथ निभाता है ,कुछ न भी कर पाए तो हमदर्दी की मरहम आपके ज़ख्मों पे लगाता है ,आपको अपना मान कर खुश होता है ,जो भी रिश्ता आप दोनों के बीच बनता है उसकी इज़्ज़त करता है उसके लिए जिस प्यार और समर्पण की आवश्यकता होती है वो देता है,फिर चाहे ये बहन , भाई , मां-बाप ,साथी का या कोई और रिश्ता हो ।
तो ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।