Bela Baijnath Temple Rewa History In Hindi | मध्य प्रदेश का रीवा, अपने राजशाही इतिहास से पहचाना जाता है बघेलों के साशन से पहले यहां पराक्रमी कलचुरियों का राज हुआ करता था. जो ना सिर्फ साहस के प्रतीक थे बल्कि अपने स्थापित्य वास्तुकला और महादेव शिव की भक्ति के लिए जाने जाते थे. परमशैव्य कलचुरि शासको ने इस धरती में अनेकों शिवालयों का निर्माण कराया था. जैसे गुढ़ में ढूढ़ेश्वरनाथ, सीधी में चंद्रेह मठ और अमरकंटक में कर्ण मंदिर। कलचुरि कालीन ऐसा ही एक प्राचीन शिवालय, रीवा शहर से 15 किलोमीटर दूर बेला में हैं जिसे बेलबैजनाथ के नाम से जाना जाता है. वैसे यो कलचुरि काल के ज़्यादातर मंदिरों का निर्माण राजा कर्ण ने करवाया था मगर बेलबैजनाथ मंदिर की स्थापना किस कलचुरि शासक ने की थी इसकी सटीक जानकारी पुरातत्व के पास भी नहीं है. ना कोई किताब है, न कोई शिलालेख इस मंदिर के बारे में सिर्फ दो लोगों को ही जानकारी थी एक अंग्रेज खोजकर्ता कनिंघम और दूसरे झुरहा बाबा।
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ऐसा माना जाता है कि बेलाबैजनाथ मंदिर झारखण्ड के बाबा बैजनाथ धाम को समर्पित है जो नागर वास्तुकला शैली का अद्भुत उदाहरण है. पूर्वाभिमुखी बेलाबैजनाथ का मंदिर त्रिरथ पद्धति से बनाया गया है. त्रिरथ मंदिर की दीवारें तीन ऊर्ध्वाधर विमानों में विभाजित होती हैं, जो मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर एक आयताकार योजना बनाती हैं. बेलाबैजनाथ मंदिर का गर्भगृह गोल नहीं आयताकार है. गर्भगृह में स्थापित बैजनाथ शवलिंग के ठीक ऊपर विशाल पत्थर में शानदार नक्काशी देखने को मिलती है. मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार कलचुरियों की उत्कृष्ट वास्तुकला का जीताजागता उदाहरण है।
मंदिर के प्रवेश द्वार के बीचोबीच यानी ललाटबिंब में लकुलीश की दुर्लभ प्रतिमा है. लकुलीश, भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं जो शैव संप्रदाय, विशेष रूप से पाशुपत संप्रदाय के संस्थापक हैं. यह प्रतिमा शिव के योगी और सिद्ध स्वरूप को दर्शाती हैं, जो पाशुपत योग और तंत्र की शिक्षाओं से जुड़ा है. इस द्वार में नदी देवियों और शिवगणों को भी उकेरा गया है. शिवलिंग के ठीक सामने नंदी बाबा भी विराजे हैं. आज मंदिर अपने मूल स्वरुप में नहीं है, इस चौकोर शिवालय का, ऊपरी हिस्सा भी हुआ करता था जो अंग्रेजों के शासन के दौरान ढह गया. एक्सएलजेंडर कनिंघम ने अपनी किताब ‘रिपोर्ट्स ऑफ़ अ टूर इन बुंदेलखंड एन्ड रीवा’ में बेलाबैजनाथ का जिक्र किया है. वे लिखते हैं- इस जगह पर पहले 5 मंदिर हुआ करते थे, जिनमे से सिर्फ एक ही बचा, पिछले वर्ष आषाढ़ मास के दौरान इस मंदिर का भी मंडप ढह गया।
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कुछ समय बाद यह मंदिर एक खंडहर में तब्दील हो गया, गर्भगृह सुरक्षित रहा लेकिन टूटे हुए मंडप के मलबे में यह मंदिर दब गया जिसे बाद में झुरहा बाबा ने हटवाया और मंदिर का जीर्णोद्धार किया, उनके बाद यह मंदिर पुरातत्व विभाग के आधीन हो गया. ऐसा कहते हैं कि मंदिर के मंडप के ऊपरी हिस्से में भी एक नक्काशीदार शिला स्थापित थी जिसे भोपाल के किसी संग्रहालय में रखा गया है. इस मंदिर ने सिर्फ प्रकृति की मार नहीं झेली बल्कि इससे सदियों पहले यहां मुग़ल आक्रांताओं ने भी हमला किया। इतिहास के पन्नों में भले इस बात का उल्लेख नहीं मिलता मगर लोग बताते हैं कि आतताइयों ने मंदिर के द्वार को तोड़ने की कोशिश की थी, जिसके निशान आज भी हैं.