हर समय दुखी रहने से हम हो जाते है अकेले!

न्याज़िया
मंथन।
आपको नहीं लगता कि हर वक़्त दुखी रहने से हम अकेले रह जाते हैं शायद इसलिए कि कोई भी बहुत देर तक रोना नहीं चाहता, आपसे थोड़ी सहानुभूति दिखाने के लिए कोई थोड़ी देर तक आपके दुख में शामिल हो सकता है लेकिन ज़्यादा देर तक वो ग़मगीन होकर आपके साथ नहीं बैठ सकता और हम उदास होकर अकेले पड़ जाते हैं ,वहीं दूसरी तरफ अगर हम खुशमिज़ाज हैं दूसरों को भी हंसाने वाले इंसान हैं तो लोग हमारे पास बैठना पसंद करते हैं,साथ हंसते बोलते भी हैं हमें भी खुशी देते हैं और ख़ुद भी खुश होते हैं जिससे हम तर- ओ- ताज़ा और एनर्जेटिक फील करते हैं।

उदास मन अच्छा नही

तो क्या अच्छे से जीने के लिए, लोगों का साथ पाने के लिए खुश रहना ज़रुरी है? है ना? क्योंकि कोई भी काम उदास मन से अच्छा नहीं होता ,हंसी ठिठोली बिना, शरीर की आवश्यक क्रियाएं जैसे पाचनतंत्र भी सुचारू ढंग से काम नहीं करतीं भले ही हमारे शरीर के लिए कितनी भी सुख सुविधाएं क्यों न हों हम इसका उपभोग नहीं कर पाते वो शायद इसलिए भी कि अकेले नीरसता नहीं जाती हंसना बोलना हमारे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है और ये हमारे पूरे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है वो इसलिए भी क्योंकि अकेलापन मतलब आलस और आलस से वैसे भी हमारा शरीर नहीं चल पाता ,तंदुरुस्त रहने के लिए थोड़ी फिज़िकल एक्टिविटी ज़रूरी है ,जिसके लिए एक से दो लोग हो तो वैसे भी कुछ भी करने के लिए हममें उत्साह आ ही जाता है ,किसी समस्या का हल भी आसानी से निकल आता है तो हमारी उलझनें भी कम हो जाती हैं।

हम कैसे ले पाएगे निणर्य

सोचिए अगर हमें सिर्फ अपनी सुख सुविधा के बारे में सोचना हो तो हम अच्छे से अच्छा सोच लेंगे उसका इस्तेमाल भी कर लेंगे लेकिन जब कोई अपना उसकी तारीफ ही नहीं करेगा तो हम कैसे ये निर्णय ले पाएंगे कि कोई चीज़ हम पर जच रही है या नहीं फिर खुशी तो बहुत दूर की बात है।

हंसना ही सेहत का सच्चा राज

एक्सरसाइज़ या व्यायाम भी हमारी छोटी छोटी मांसपेशियों को उतना फायदा नहीं पहुंचा पाते जितना खुल के हंसने से पहुंचता है हमारे चेहरे की मांसपेशियों को मुंह के बार बार खुलने ,बार बार चबाने हंसने बोलने से एक अच्छा व्यायाम मिलता है जो कुछ ग्रंथियों के संतुलन के लिए ज़रूरी तो है ही हमारी खूबसूरती भी बढ़ाता है और हां बहुत देर तक मुंह को बंद रखने से हमारे मुंह से बदबू भी आने लगती है क्योंकि लार का प्रवाह कम हो जाता है, तो ये फैसला हमारा है कि हमें क्या चाहिए फूल से चेहरे में ख़ुशबू बिखेरती मुस्कुराहट या बदबू । सोचिएगा ज़रूर इस बारे में ,फिर मिलेंगे ,आत्म मंथन की अगली कड़ी में।

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