कल हमने बांस शिल्पियों के बनाए चरहा टोपरा सूपा आदि कुछ बर्तनों की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में कुछ अन्य बर्तनों की जानकारी दे रहे हैं।
भउकी
यह पतले नरजे का माध्यम साइज का एक टोकना होता था जिसमें गेहू आदि भर कर धोया और सुखवाया जाता था। घर के अन्दर अनाज को बगराने सुखाने का काम भी इसी में भरकर किया जाता था।
पर अब चलन से बाहर है।
गोबरहा झउआ
यह मोटे नरजे का बनाया जाता था जो मात्र गोबर उठाने के काम आता था। प्रति दिन गोबर उठाते समय जल्दी टूटे न अस्तु इसे बांस के अन्य बर्तनों से अधिक मजबूत मोटी खप्पचियों का बनाया जाता था। पर अब लगभग चलन से बाहर है। क्योकि अब अगर उपयोग भी होता है तो लौह के तसले का।
छन्नी टोपरिया
यह आकार में झउआ से भी छोटी और पतले बांस के नरजे से बनाई जाती थी।
छन्नी टोपरिया घर के अन्दर कुठले पेउला आदि से अनाज निकाल आंगन में धूप में सुखाते समय काम में ली जाती थी। पर अब चलन से बाहर है।
ढेरइया
यह छन्नी टोपरिया से कुछ छोटे आकार की होती थी जिसे मिट्टी गोबर से लीप कर आटा रखने के लिए बना लिया जाता था। चक्की जेता में पीसने के पश्चात निकला हुआ आटा इसी में रखा जाता था। पर अब चलन से बाहर है।
दउरी
बांस की मोटी चपटी और कई तरह के नेरा से कलात्मक ढंग से बनी दउरी प्राचीन समय में भोजन पकाने वाले चावल धोने के काम आती थी।विवाह य गौना के समय कन्या पक्ष की ओर से धोती और अन्य भेट सामग्री इसी दउरी में रख कर ही भेट की जाती थी जो आज भी प्रचलन में है। फिर भी अब बहुत कमी आती जा रही है।
झपलइया
बांस की खपच्चियों से कलात्मक रूप से बनी झपलइया प्राचीन समय की एक छोटी सन्दूकची य श्रंगार दानी हुआ करती थी जिसमें कन्या पक्ष की ओर से अपनी पुत्री को तेल, कंघी, बून्दा ,टिकली ,सिंदूर आदि रख कर दिया जाता था। विवाह संस्कार की परम्परा में रहने के कारण बाजार में अनेक आकर्षक सामग्री के बाबजूद भी झपलइया प्रचलन में है।
झांपी
यह बांस की आधी इंच चौड़ी किन्तु पतली खपच्चियों से बनती है। प्राचीन समय में यह विवाहादि की सामग्री रखने की एक मयूशा हुआ करती थी इसलिए लाल रंग से रंग कर काफी कलात्मक ढंग से बनाई जाती थी।