Bahu Begum Film Story In Hindi | न्याज़िया बेगम: बहु रानी या बहु बेगम ज़िम्मेदारियों से लबरेज़ बड़ा ही खूबसूरत शब्द है जिससे घर की इज़्ज़त जुड़ी होती है और जिस पर घर के लोग जान क़ुर्बान करने को खड़े रहते हैं। कुछ इन्हीं जज़्बातों को पर्दे पर उकेरा है एम सादिक ने अपनी फिल्म “बहु बेगम ” के ज़रिए, जो रुपहले पर्दे पर जगमगाई सन 1967 को, इसको अपनी बेहतरीन अदाकारी की रौशनी से रौशन किया है ट्रैजिडी क्वीन मीना कुमारी, अभिनेता प्रदीप कुमार और अशोक कुमार ने।
ये फिल्म मोहब्बत शफ़क़त इंसानियत हमदर्दी की खातिर क़ुर्बान होने की उम्दा मिसाल पेश करती है, जो आखिर तक न केवल हमें बांधे रखती है बल्कि अंजाम देखने के बाद हमें झकझोर के भी रख देती है, कि ऐसा भी हो सकता है या इतनी भी किसी को किसी की परवाह हो सकती है?
बहू बेगम फिल्म की कहानी
दरअसल कहानी शुरू होती है नायिका यानी ज़ीनत और सहेलियों की हँसी ठिठोली के बीच हो रहे सावन के गीत से जो आपको भी बहुत भाता होगा, सावन में अगर नहीं तो सुनके देखिएगा बोल हैं- पड़ गए झूले सावन ऋतु आई रे…, हम आगे बढ़ते हैं तो फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी की ज़ुबानी कभी नवाबी शान ओ शौकत वाले उसके घराने के आज के तंगी भरे हालात का मुज़ाहरा कर देती है, जिसमें उनके घर का आधा हिस्सा किराए से देना भी शामिल है और ये किराएदार हैं नायक प्रदीप कुमार, यानी यूसुफ के दोस्त जानी वॉकर जिनसे मिलने के बहाने यूसुफ मियां ज़ीनत के दीदार कर लेते हैं, और दोनों का प्यार परवान चढ़ता है, जिसमें शेर ओ शायरी से लबरेज़ आला कलाम हमें उर्दू अदब का दीवाना बनाने के लिए काफी है। यहां हम आपको ये भी बताते चलें कि एम. सादिक की पटकथा के लिए संवाद लिखें हैं, ताबिश सुल्तानपुरी ने जो फिल्म जगत के इन बड़े सितारों की अदाकारी की रौशनी में और निखर गए।
अब आगे बढ़ते हैं तो देखते हैं कि यूसुफ मियां भी किसी मामले में कमज़ोर नहीं हैं। बस उनकी परेशानी ये है कि वो अपनी दौलत का इस्तेमाल अपनी शादी के पहले बिना मामू की इजाज़त नहीं कर सकते। क्योंकि उनके वालिद-वालिदा ने दुनिया से रुख़्सत होते वक़्त उनके मामू को ही उनका मालिक ओ मुख़्तार बनाया था, और जब यूसुफ मियां ने दोस्त की मदद से अपना रिश्ता ज़ीनत के घर भिजवाने की बात कही तो मामू ने उसे बड़े प्यार से हां हां करके मान लिया और तिजारती मुनाफे के बहाने से यूसुफ मियां को शहर के बाहर भेज दिया। क्योंकि उनके पास ज़ीनत के वालिद मिर्ज़ा सुल्तान अपनी हवेली गिरवी रखने आए थे और उन्हें बताया था कि सिकंदर मिर्ज़ा का रिश्ता उनकी बेटी के लिए आया है, और वो अगले हफ्ते ही शादी कर रहे हैं।
अब सिकंदर मिर्ज़ा ने शादी का पैग़ाम कैसे भेज दिया? तो हुआ यूं कि ज़ीनत अपनी सहेली बिल्क़ीस की सगाई के लिए ज़ेवर लेने जाती है, और वहीं मिर्ज़ा साहब यानी अशोक कुमार भी अपनी बहन सुरैया यानी अभिनेत्री नाज़ के लिए हार लेने पहुंचते हैं। और अचानक उनकी नज़र ज़ीनत पर पड़ती है जो एक बेशकीमती कंगन की क़ीमत जानकर उसे लेने से मना कर रही थी, मिर्ज़ा साहब उसके हुस्न को देखकर हैरान रह जाते हैं और नज़र नहीं हटा पाते। ज़ीनत की भी नज़र उन पर पड़ती है और वो पर्दा कर लेती है, लेकिन सिकंदर मिर्ज़ा जिनकी शादी का इंतज़ार उनकी पूरी हवेली के साथ उनकी बहन बेसब्री से कर रही थी और वो न-न कर रहे थे, ज़ीनत को देखकर न केवल शादी के लिए राज़ी हो जाते हैं। उसके घर पैग़ाम भेजवा देते हैं और ज़ीनत के वालिद इतना ऊंचा घराना और नाम सुनकर ही अपनी खुशनसीबी मानकर फौरन हां कर देते हैं।
लखनऊ के नवाबी दौर को बड़े पर्दे में रौशन करती फिल्म “बहू बेगम”
दूसरी तरह यूसुफ मियां अपने दोस्त अच्चन को अपनी शादी की ज़िम्मेदारी सौंप कर चले जाते हैं। अच्चन मियां मामू को मना लेते हैं, ज़ीनत के घर रिश्ता भेजने के लिए लेकिन मामू तो ज़ीनत के वालिद से बात करते ही नहीं और झूठ बोल देते हैं कि उन्होंने ने बात कर ली है, और रिश्ता पक्का हो गया है जब यूसुफ आयेगा तब शादी की तारीख़ रख लेंगे और जब शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं तो, ज़ीनत के साथ उसकी सहेली बिल्क़ीस और अच्चन मियां भी इसी ग़लतफहमी में रहते हैं कि ज़ीनत की शादी यूसुफ से हो रही है ख़ैर ज़ीनत को सच्चाई का इल्म जब होता हैं जब सिकंदर मिर्ज़ा के घर से शादी में वही कंगन आते हैं जिसे वो नहीं ले पाई थी और बिल्कीस ये बताती है कि सिकंदर मिर्ज़ा बारात लेकर आए हैं। ये सुनकर ज़ीनत बिल्कीस को कुछ देर हालात संभालने का कह कर यूसुफ को ढूंढने चल देती है, ये भी कहती है कि शायद वो भी उसकी तरह ग़फ़लत में हो तो उसे सच्चाई बता दूंगी और निकाह की घड़ी आने तक लौट आऊंगी, लेकिन ज़ीनत पहले यूसुफ के घर पहुंचती है जहां उसे बदनियत मामू का सामना करना पड़ता है। और वो यूसुफ़ को बच्चलन बता कर उसका हांथ थाम लेते हैं, जिससे ज़ीनत भागती है और उसका एक कंगन मामू के पास रह जाता है। उसके बाद ज़ीनत पीर बाबा की दरगाह पहुंचती है जहां दोनों हर जुमेरात को मिलते थे। अपनी मोहब्बत के कामयाब होने की दुआएं करते थे खुदा से, उसके हबीब के सदके में यहां बतौर दुआ एक कव्वाली है “ढूंढ के लाऊं कहां से मै…”।
पर यूसुफ उसको वहां भी नहीं मिला क्योंकि सच में वो इलाहाबाद गया हुआ था। इस ग़म में दुल्हन बनीं ज़ीनत बेहोश हो गई, और दरगाह में उसको पनाह तो मिली। मगर होश आने तक सुबह हो गई, अब इस बीच उसके घर में ये आलम था कि ज़ीनत की देखभाल करने वाली करीमन बुआ और वालिद को पता चल गया कि ज़ीनत घर छोड़कर जा चुकी है। जब काज़ी जी निकाह पढ़ाने आए तो पर्दे में रोते हुए बिल्क़ीस की आह निकल गई और सबको लगा कि ज़ीनत ने निकाह के लिए हां कर दी है। दूसरी तरह मिर्ज़ा साहब ने भी निकाह क़ुबूल कर लिया जिसके बाद सुल्तान साहब ने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए खाली डोली अपने घर से रुख़्सत कर दी और बड़ी शान ओ शौकत के साथ डोली सिकंदर मिर्ज़ा के आंगन पर उतरी। जहां पूरी हवेली के साथ बहन सुरैया पलके बिछाए अपनी भाभी के इंतज़ार में फूलों की थाली लेकर खड़ी थी, लेकिन जब सिकंदर मिर्ज़ा ने डोली से अपनी बेगम को उतारने के लिए डोली के अंदर देखा तो डोली खाली देखकर वो डर गए और अपने घर की इज़्ज़त बहु बेगम की इज़्ज़त की खातिर झूठ बोल दिया, कि बहु बेगम बेहोश हो गई हैं डोली कमरे में ले जाओ सुरैया अपनी भाई की परेशानी को भापकर अपने भाई के साथ गई और हक़ीक़त जानकर बस किसी तरह अपनी भाभी को दुनिया से छुपाने में लग गई, ज़ीनत के हाल की तरफ नज़र डालें तो वो सुबह अपने रोते बिलखते बाप के घर पहुंची थी माफी मांगने लेकिन उन्होंने गुस्से में उसे माफ नहीं किया और कह दिया तू मेरे लिए मर गई। फिर ज़ीनत सिकंदर मिर्ज़ा की हवेली भी पहुंची लेकिन बाहर जब मेहमानों के बीच मिर्ज़ा साहब को ज़ीनत दिखाई दी और मेहमानों से छुप कर वो ज़ीनत के पास पहुंचे तब तक ज़ीनत उनका कंगन छोड़कर चली गई थी।
उसके बाद सिकंदर मिर्ज़ा इस गुत्थी को सुलझाने ज़ीनत के वालिद के पास पहुंचे कि आख़िर ग़लती किसकी है किसकी वजह से डोली खाली थी तब उन्होंने कुबूल किया कि इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है डोली मेरे घर से ही खाली गई थी उनकी हवेली लेकिन ज़ीनत कहां है और क्यों वो घर से भागी वो नहीं जानते। ख़ैर मायूस सिकंदर मिर्ज़ा की बहन की कुछ दिन में शादी थी और अब उन्होंने इस मुश्किल का हल ये निकाला कि उनकी हवेली में मुजरा करने आने वाली नज़ीरन बाई से वो एक पाक दामन खातून लेकर आयेंगे जो दिन में उनके घर की बहु बेगम बन के रहेगी, और रात के अंधेरे में चली जाया करेगी। नज़ीरन बाई मिर्ज़ा साहब की ये बात सुनकर हैरान तो हुईं पर, उन्हें ऐसी खूबसूरत पाक दामन और ऊंचे तौर तरीकों को जानने वाली औरत दे दी, क्योंकि उस वक्त वो ऐसी ही खातून के दामन को अपने कोठे में दाग़ लगने से बचा रहीं थीं वो थी ज़ीनत जो नज़ीरन बाई को रास्ते में बेहोश पड़ी मिली थी, और ज़ीनत ने भी मिर्ज़ा साहब की इज़्ज़त बचाने के लिए नज़ीरन बाई की बात मान ली। और सुबह के सुरमई उजाले में हवेली पहुंच गई, ज़ीनत की खुशी का तो ठिकाना ही न रहा जो सुरैया बार बार भाभी के कमरे का दरवाज़ा जा बंद करके आती- जाती थी भाभी से बातें करने का अंदर से झूठा नाटक करती थी आज खुशी के मारे दौड़ती हुई अपने भाई जान को बताने दरवाज़ा खोलके चली गई ये कहने की उसकी भाभी लौट आईं हैं और इस बीच सारी हवेली के नौकरों चाकरों ने बहु बेगम के दीदार कर लिए बहु बेगम को सलाम पेश करने का तांता लग गया।
उधर जब सुरैया ने भाई जान को कहा कि उसका दिल कहता है कि वो सच में उसकी भाभी हैं, तो उन्होंने उसे सच्चाई बताई कि वो उसे लेकर आए हैं और वो तुम्हारी शादी के बाद हमेशा के लिए चली जाएंगी तो उसे यक़ीन नहीं हुआ वो कहने लगी। ये उसकी भाभी के अलावा और कोई नहीं हो सकतीं उनकी आंखों में उसके लिए प्यार का सागर है और वो मिर्ज़ा साहब को एक बार उनसे मिलने, देखने का कहकर ज़बरदस्ती उनके सामने ले गई मिर्ज़ा साहब नज़रे चुराते हुए ज़ीनत को ग़ैर समझकर उससे माफी मांग रहे थे। तभी ज़ीनत ने कहा कि क्या आप मुझे माफ कर पाएंगे ये सुनकर मिर्ज़ा साहब की नज़र बे इरादा ज़ीनत के चेहरे की तरफ चली गई और वो चौंक गए कहने लगे क्या तुम वही ज़ीनत हो? जिसे मैं अपने घर लाना चाहता था दुनिया जहां की खुशियां उसके क़दमों तले बिछाना चाहता था और ज़ीनत बस इतना बता पाती है। कि हां वो वही ज़ीनत है और उसकी डोली इस वजह से उनकी हवेली खाली आई कि जिस वक़्त उसका निकाह हो रहा था वो वहां थी ही नहीं उनका निकाह हुआ ही नहीं, और ये सुनकर जज़्बातो का ऐसा सैलाब दोनों तरफ उमड़ता है मानों हम इन दो किरदारों के दार्मियां आके ये कहना चाह रहे हों कि मिर्ज़ा साहब ज़ीनत को माफ कर दीजिए उसे रोक लीजिए दोबारा कोठे में जाने से।पर मिर्ज़ा साहब बस ये कह पाते हैं कि शादी तक रुक जाइए ज़ीनत न कह भी देती लेकिन सुरैया की ज़िद और मोहब्बत ने उसके मूँ सिल दिए क्योंकि सुरैया ने कहा भाभी आप जहां जाएंगी वहां मै भी जाऊंगी। इन हालात में ज़ीनत के दिल का हाल बखूबी हमें बयां करता है गीत,”दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें …”
ख़ैर भाभी का हांथ छोड़ कर सुरैया विदा हो जाती है और ज़ीनत फिर कोठे की ओर चलने की तैयारी करने लगती है। ये सोचकर कि वो बहोत बदनसीब है। ऐसे में मिर्ज़ा साहब कहते हैं कि ज़ीनत अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है अब भी तुम इस घर की बहु बेगम हो, तुम्हारी इज़्ज़त पे कोई आंच नहीं आई है आज भी मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं। लेकिन ज़ीनत कुछ जवाब नहीं दे पाती और अन्दर चली जाती है ऐसे में यूसुफ उसे एक सदा के ज़रिए पुकारता है “लोग कहते हैं कि हम उनसे किनारा कर ले …” ज़ीनत आती है और यूसुफ को अपनी बर्बादी की वजह मानते हुए उससे नाराज़गी जताती है। लेकिन यूसुफ अब सब जनता है और अपने मामू की सच्चाई ज़ीनत को बताता है। जो अच्चन मियां की वजह से सामने आ जाती है जिसकी वजह से यूसुफ को ज़ीनत का वो कंगन भी मिलता है जो मिर्ज़ा साहब ने शादी में दिया था। जिसे मामू से छीनकर यूसुफ ज़ीनत को लौटाने और अपनी बे गुनाही का सबूत देने आया था। वो उसकी खुशहाल ज़िंदगी में कोई दख़ल नहीं देना चाहता और जाने लगता पर ज़ीनत उसे बताती है कि वो सिकंदर मिर्ज़ा के निकाह में नहीं है, वो सिर्फ उनकी इज़्ज़त बचाने के लिए यहां आई थी। तो यूसुफ उसे अपने साथ ले जाने लगता है। पर वो कहती है कि अब वो सिकंदर मिर्ज़ा और उनकी शान पर कुर्बान हो जाना चाहती है। यूसुफ़ भी राज़ी हो जाता है। बहु बेगम के इस फैसले पर लेकिन सिकंदर मिर्ज़ा उनकी ये बातें सुन लेते हैं, और दो प्यार करने वालों की इस नेक दिली पे कुर्बान हो जाने का फैसला करते हुए हवेली में आग लगा देते हैं। और सदा के लिए ख़ुद को और बहु बेगम की इज़्ज़त को सुपुर्द ए ख़ाक करके महफूज़ कर देते हैं। यूसुफ उन्हें जलती हवेली में बहोत ढूंढने की कोशिश करता है पर वो नहीं मिलते जिसके बाद यूसुफ और ज़ीनत अपना मोहब्बत का जहां बसाने को ज़माने की निगाहों से दूर चले जाते हैं।
पर ये फिल्म हमारे दिलों में इतना गहरा असर डालती है कि हम इन मेन किरदारों में से किसको बड़ा कह दें। ये फैसला नहीं कर पाते इस अंजाम में तो होड़ थी एक दूसरे पर क़ुर्बान हो जाने की एक दूसरे की ज़िंदगी खुशियों से भर देने की आप ही फिल्म देखकर ये फैसला करिए।
बहू बेगम फिल्म का संगीत
ये हम आपको बता तें चलें कि ये दिल को छू लेने वाली कहानी लिखी है जां निसार अख़्तर ने। बहु बेगम फिल्म बेहद दिलनशीं नग़्मों से सजी है जिन्हें लिखा है गीतकार साहिर लुधियानवी ने,सं गीत रौशन का है। जिसमें दो क़व्वालियां, मुजरा और गीत शामिल हैं। जिन्हें बदस्तूर आवाज़ दी है-” पड़ गए झूले … ” को लता मंगेशकर, आशा भोसले और साथियों ने। “हम इंतज़ार करेंगे …” एक बार आशा भोसले और मो. रफ़ी के युगल स्वर में है और एक बार मो. रफ़ी की आवाज़ में। वाकिफ हूं खूब इश्क़ के तर्ज़ ए बयां से मै …”और ” ढूंढ के लाऊं कहां से मै ..”क़व्वाली मो. रफी और मन्ना डे की आवाज़ में है। मुजरा गीत- “निकले थे कहां से …” और “सिर्फ अपने ख्यालों की …”आशा भोसले की आवाज़ में हैं। “दुनिया करे सवाल ..” गीत को गाया है लता मंगेशकर ने और “लोग कहते हैं …”को आवाज़ दी मो. रफ़ी ने।