Bagheli Ukhan : इया समय पितरपक्ख चलत लाग हय, ता विचार भा एहिन से संबंधित कुछु बात कीन जाय। दरसल बघेली भाषा में एकठे उक्खान कहत हें “सेंत के चाउर, मउसिया के सेराध”, मने मुफ़्त के चावल कहँउ से मिलय, ता मउसिया के सेराध कर लेय। सीध भाषा मा कहा जाय, ता बिना मेहनत के कउनउ चीज मिल जाय, ता ओखर कउनउ कदर नहीं रहय अउर फिजूलखर्ची मा ओखर उपयोग कई लीन जात हय। इया उक्खान के जादातर प्रयोग हंसी-हसौआ मा अउर व्यंग्य से कटाक्ष मारय खितिर उपयोग कीन जात हय। लेकिन जईसन पहिलेउ बतान ते के, ईं उक्खानन के लोक मा बड़ा महत्व हय। ता इया उक्खान के कहानी जानय से पहिले, अई मनई थोर का पितरपक्ख के बारेउ मा जान लेय।
Bagheli Ukhan | “सेंत के चाउर, मउसिया के सेराध” बघेली उखान की कहानी
