लेखक: श्री विनय भट्ट | “आपन बानी औ आपन छान्हीं” सबहिंन का नीक लागत थी, बघेलन के राज्य इस्थापित होय के साथय इया छेत्र बघेलखण्ड के नाव से जाना जाय लाग, अउ इहंन बोली जाय बाली बोली भाखा “बघेलखण्डी” | “बघेलखण्डी” बोली केर छोट नाव बघेली अकि रिमही कहागा, एहसे इहन के सलगे काम, चाहे ऊँ राज काज से जुरे काम होंय, चाहे लोगन केर आपन रोजमर्रा के काम बघेलिन माहीं होत रहें | आम बोल चाल के भाखा होय के कारन इहन के राजन महाराजन के सलगे पाट (दान-पत्र), निरनय, खरीता (चिट्ठी-पत्री) अउ फरमान इतियादि बघेली भाखाय मा होबा करत रहें | जबकि हिन्दुस्तान माहीं तबय मुगलन केर सम्राज्ज रहा अउ उनकर सगल आदेस फारसी मा होबा करत रहें, फेरव बघेलखण्ड के सलगे सरकारी दस्ताबेज बघेली भाखा माहीं रहत रहें | पय बघेली साहित्य फेरव न के बराबर लिखित रूप मा मिलत है |
जब रीमा राज्जि बघेलखण्ड पोलिटिकल एजेंसी होईगा रहा, अउर राज काज माहीं “रीमा” के जाघा माहीं बघेलखण्ड केर परयोग होय लाग रहा । उहय समय उत्तर भारत के बोली-भाखन केर अध्ययन, सर्वेक्षण अउ बर्गीकरण कीनगा अउ बुन्देली के नाई बघेलखण्ड पोलिटिकल एजेंसी माहीं बोली जाय बाली बोली केर नाव बघेली धरा गा अउर एही अवधी के उपबोली के रूप मा सुईकार कीनगा, पय बोली के बिकास के साथय साथ अब “बघेली” एकठे सुतंत बोली हबय । एकर समरिद्ध साहित्य है, अउ बिस्तृत छेत्र है। कहय के अरथ इया है कि पुरान रिमही बोलिन अब बघेली नाम से जानी जात ही, अउ बहुत जाघा बेउहारिउ मा आबति है, इंहन केर पूड साहित्य बघेली साहित्य के नाव से जाना पहिचाना जात है। इहन इया जानब जडूरी है कि बघेली साहित्य केर सिरीगणेसव ओनईसवीं सताब्दी के उत्तरार्धय से कहा जात है । हाँ, लोकगीत जरूर बहुत पुरान है, जिनके उतपत्ति के समय बताय पाउब सम्भब नहीं आय ।
रीमा राज्य माने बघेलखण्ड पहिले केर विन्ध्य प्रदेश के राजधानी रहा रीमा(रीवा जिला) अउ ओखे आस पास बोली जाय बाली बोली बघेली अकि रिमही के नाव से जानी जात ही । रीमा माहीं ठेठ रिमही बोली बोली जात ही । आजु के मध्यप्रदेश माहीं बर्तमान बघेलखण्ड के रीमा, सतना, सीधी, सहडोल,उमरिया,सिंगरउली, अनूपपुर जिलन के बघेली (रिमही) सीमांत छेत्रन के बोली से मिली-जुली रही है । “कोस-कोस मा पानी बदलय चार कोस मा बानी” इया कहाबत हिंया के बोली बानी माहीं चरितार्थ होथी। रीमा के तब के महाराज महाराजा वीरभान सिंह (१५४०-१५५५ ई.) के पहिलेन से बघेली माने रिमही इया बोली चलन मा रही । उआ समय रीमा के नरेसन के बान्धव गद्दी (बांधवगढ़) केर साम्राज्य आधे छत्तीसगढ़ (रतनपुर) से बुन्देलखण्ड के केन नदी तक अउ इलाहबाद माहीं अरैल पार तक रहा । रिमही इया छेत्र माही बहुतय समृद्ध बोली रही ।
बांधवगढ़ गद्दी रीमा स्थानान्तरित होय के बाद अंगरेजन के साथ पहिल संधि महाराजा जय सिंह (१७६५-१८३४) कीन्हिन रहा, जे स्वयं २८ ग्रंथन केर रचना कीन्हिन रहा, जिनमा से “कृष्ण सिंगार तरंगिणी” अउर “हरि चरित्र-चन्द्रिका” बिसेस रूप से उल्लेखनीय हैं । जिनमा कवित्त, काब्य केर सुन्दरता, भाव निपुनता अउ सरसता देखय का मिलत ही | उनके बाद महाराज विश्वनाथ सिंह (१७८९-१८५४ ई.) के साहित्य सर्जना केर बिसिष्ट इस्थान हबय, उइं संस्कृत माहीं २९ अउर खड़ी बोली (हिन्दी) माहीं ५८ ग्रन्थन केर रचना कीन्हिन है, इनके लिखे नाटक “आनंद रघुनन्दन” काहीं, खड़ी बोली के सुपरसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिंदी केर पहिल नाटक सुईकार कीन्हिन है, जेकर बघेली अनुबाद श्री योगेश त्रिपाठी द्वारा कीनगा है | महाराज विश्वनाथ सिंह के लिखी कबिता अधिकतर दरसनपरक अकि उपदेशात्मक हइं | महाराज रघुराज सिंह (१८२३-१८७९) संस्कृत माहीं १२ अउ हिन्दी मा १७ किताब लिखिन है जिनमा उनकर लिखी “रामस्वयम्वर” सबसे अधिक परसिद्ध रचना मानी गय ही | मुक्ख रूप से अपना केर बीर रस, परकिति चित्रण, भक्ति अउ निति विषयक कबिताई बहुतय मरमस्पर्शी हइं | रीमा राज के महाराजन के नाई हिंया के महारानिउ घाल साहित्त सेबा माहीं पाछे नहीं रहीं | महाराज रघुराज सिंह के महारानी शिवदानी कुंवरि केर लिखी “सिया स्वयंबर” किताब बहुतय उल्लेखनीय मानी गय ही |इनकर राजकुमारी विष्णु कुमारी “पद्ममुक्तावली” अउ “श्याम-आनंदिनी” केर रचना कीन्हिन हय | महाराज व्यंकट रमण सिंह केर छोट महारानिउ के लिखे २५ ठे ग्रन्थ हमय, जिनमा गियान, भक्ति अउ सूक्तियन केर सुन्दर समन्वय पढ़य का मिलत है | पय अबय तक जेतनी रचना अकि ग्रन्थ रीमा राज के महाराजा, महारानी अकि राजकुमारी लिखिन, उन सबके मूल भाखा या त संस्कृत रही अकि ब्रज, काहे कि अधिकतर रचना कृष्ण भक्ति से भरी पूरी हँई | अउ जब कृष्ण भक्ति केर बात रचनन मा हय, तव चूँकि ब्रज श्रीकृष्ण केर जनम भूमि आय, तब उनके उपर लिखेगें ग्रन्थन माहीं ब्रज भाखा के महातिम होब सोभाबिक हबय | बघेली माहीं लेखन केर परमान महाराज विश्वनाथ सिंह के लिखी “परमधर्म निर्णय” अउ “विश्वनाथ प्रकाश” (अमृत सागर) नामक खाली दुइठे ग्रन्थन केर जनबही मिलति हय | इनकर उदाहरन इया मेर से मिलत है :-
“मांस केर यह अर्थ है की जेकर मांस हम खात हैं ते हमरौ मांस खाई | और वर्ष वर्ष मा जे अश्वमेध करत है सो वर्ष भर औ जो मांस नहीं खात तेका बराबर पुन्य है|” —–परमधर्म निर्णय : पृष्ठ संख्या ५५ बस्ता न.१३ स्टॉक ११६
“अथ प्रथम रोग विचार :- रोग केका कही जेमा अनेक प्रकार के पीड़ा होई तेका रोग कही सोग रोग दुई प्रकार का है – एक तो कायक है, दूसरा मानस है सरीर माँ है सो कायक, तेका व्याधि कही | मन ते जो उत्पन्न होई तेका मानसिक व्याधि कही |सो ये दोऊ रोग बात, पित्त, कफ ते उपजत है |”——विश्वनाथ प्रकाश (अमृत सागर): पृष्ठ संख्या – १
रीमा राज्य मालगुजारी कानून (१९३५ई.) जउन महाराजा गुलाब सिंह के समय माहीं लिखागा है ओहू माहीं बघेली सब्दन के भरपूर परयोग पढय का मिलत है, जेका आजादी के बाद सम्बिधान बने के बादव सरकार द्वारा उहै मेर मान्यता दीन गय ही | अउ पूरे भारत के न्यायालयन मा अजुअव सर्वमान्य है | एही का आधार मानि के मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता तयार कीन गय |
बघेली साहित्य के पहिल सर्वमान्य कवि हरिदास जी रहें, जे महाराजा विश्वनाथ सिंह के समय मा भें रहें, उईन बघेली माहीं “चौगोलवा” कहत रहें, हरिदास के कउनव प्रकाशित किताब तव नही आय। पय बघेलखण्ड के लोगन मा अजुअव इनकर “चौगोलवा” सुने जात है । रीमा जिला के गुढ़ तहसील के एकठे पत्रिका माहीं इनकर चौगोलवा प्रकाशित हैं। बघेली साहित्य माहीं बघेली काव्यय सबसे पुरान अउ समरिद्ध हबय। सुरुआती बघेली साहित्त जउन लिखित रूप मा मिलत है उनमा पं. हरिदास,नजीरुद्दीन सिद्दीकी “उपमा”, बैजनाथ प्रसाद “बैजू”, पण्डित रामप्यारे अग्निहोत्री, सैफुद्दीन सिद्दीकी “सैफू”, रामदास पयासी, ब्रजकिशोर निगम “आजाद”, मोहनलाल श्रीवास्तव, रामबेटा पाण्डेय “आदित्य” आदि केर नाव सबसे पहिले आबत है | इनके बाद के क्रम माहीं शंभू काकू, गोमती प्रसाद विकल, रामसखा नामदेव, डा.अमोल बटरोही, कलिका प्रसाद त्रिपाठी, डा.कैलाश तिवारी, विजय सिंह परिहार, डा.श्रीनिवास शुक्ल “सरस”, पद्मश्री बाबूलाल दहिया के साथय कईयव आधुनिक बघेली के साहित्तकार हमय जिनकर काव्य तरंगिणी अब सुरसरि जईसन प्रवाहित है । वर्तमान मा रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर अउ डिंडोरी मा बघेली कबिताई माहीं कईयव कवि हैं। पचास से अधिक बघेली कवियन केर कृति प्रकाशित होई चुकी हइं । कहानीकार भागवत शर्मा, डा.रश्मि शुक्ला, डा.चन्द्रिका प्रसाद द्विवेदी “चन्द्र”, डा.रामसिया शर्मा, उपन्यासकार अभयराज त्रिपाठी, नाटककार योगेश त्रिपाठी के साथय बघेली साहित्य का समृद्ध करय मा सतत साधना रत हैं। बघेली सब्दकोसउ लिखा जाय रहा है जउनेमा डा.श्रीनिवास शुक्ल “सरस” केर बघेली शब्दकोश प्रकाशित है । बघेलखण्ड व्याकरण घाल प्रकाशित है। आधुनिक बघेली नाट्य मंचन मा मण्डप आर्ट रीवा अउ इन्द्रावती नाट्य संस्था सीधी केर जोगदान बहुत महातिम राखत है |