Bagheli Kahavat History In Hindi: हमने अपने गाँव-घर या आस-पास के बड़े-बुजुर्गों को अक्सर बघेली भाषा की इस `कहावत का प्रयोग करते हुए सुना होगा ‘अठासी पड़िगा’,विन्ध्यक्षेत्र के ग्राम्य जीवन में कभी कभार यह शब्द गूंज उठता है। खास तौर पर तब जब प्रकृति खेती-किसानी के प्रतिकूल रहती है।
यानी कि अठासी पड़िगा का आशय किसी आसन्न विपदा के साथ जुड़ा है। तो कभी-कभी इस कहावत का प्रयोग व्यंग्यात्मक ढंग से किया जाता है। जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी चीज की कमी इत्यादि की बात जाती है, तभी इस कहावत का प्रयोग मारक ढंग से किया जाता है। तो चलिए जानते हैं ये मुहावरा ‘अठासी पड़िगा’ कैसे और कब से चल निकला। आखिर क्या है ये अठासी पड़िगा, क्या है इस कहावत के पीछे का इतिहास आइए जानते हैं।
क्या होती हैं कहावतें | Bagheli Kahavat
कहावत आम बोलचाल कि भाषा में प्रयोग होने वाला ऐसा वाक्यांश या कथन होता है, जिसका प्रयोग किसी भी जटिल विचार या बात को, संक्षिप्त और प्रभावी ढंग से कहने के लिए किया जाता है। हिंदी समेत देश की लगभग सभी भाषा और बोलियों में मुहावरों या कहावतों का व्यापक प्रयोग होता है। बघेली में भी बहुत सारी कहावतें कही जाती हैं, इन्हीं में से एक है ‘अठासी पड़िगा’।
अठासी परिगा कहावत का संबंध विंध्य से | Bagheli Kahavat
19 वीं शताब्दी के प्रारंभ की बात है रीवा में तब जय सिंह नाम के राजा का शासन हुआ करता था, जय सिंह वही शासक थे जिनके शासनकाल 1812 में रीवा पर पिंडारियों का आक्रमण हुआ था, जिसके फलस्वरूप 1813 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और रीवा राज्य के मध्य पहली बार संधि हुई थी, कुछ कारणवश पहली संधि के असफल होने के बाद दुबारा नए सिरे से दूसरी संधि हुई थी।
अठासी परिगा बघेली कहावत का इतिहास | Bagheli Kahavat
लेकिन इन गतिविधियों के अतिरिक्त भी उनका शासनकाल एक भयंकर अकाल के लिए जाना जाता है। यह अकाल 1831 ईस्वी में पड़ा था, चूंकि भारत में ब्रिटिश राज स्थापित होने से पहले हिंदू राजाओं के यहाँ ईस्वी नहीं बल्कि विक्रम संवत का चलन हुआ करता था। विक्रम संवत ईस्वी संवत से लगभग 57 वर्ष आगे का होता है, इस हिसाब से उस समय संवत 1888 चल रहा था, और उसी वर्ष रीवा राज्य को एक भयंकर प्राकृतिक आपदा अर्थात बारिश ना होने की वजह से भयंकर सूखा और अकाल का सामना करना पड़ा था, इस अकाल की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, केवल सामान्य और गरीब लोगों को ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े जमींदारों और व्यापारियों के भंडार भी इस सूखे से खत्म हो गए थे, लोगों को खाने-पीने के लाले पड़ रहे थे, इसीलिए इस अकाल ने लोगों के मन पर बड़ा भीषण प्रभाव छोड़ा, और एक बघेली कहावत का जन्म हुआ, जिसे आज भी बघेलखंड के क्षेत्रों में एक कहावत के रूप में आज भी याद किया जाता है।
रीवा राज्य द्वारा किए गए राहत कार्य | Bagheli Kahavat
हालांकि तब रीवा राज्य द्वारा भी इस अकाल से राहत के लिए कई कार्य किए गए थे, इनमें लोगों को रोजगार देने के कार्य के तहत ही नगरिया की खाई पाटी गई, ग्रेट डक्कन रोड अर्थात पुरानी नैशनल हाइवे-7 के किनारे वृक्षारोपण किया गया था। चूंकि यह अकाल विक्रम संवत 1888 में पड़ा था, इसीलिए जन मानस में यह कहावत आज भी अठासी पड़िगा के नाम से प्रचलित है।