Bagheli Language | मध्यप्रदेश में बुन्देली बघेली मालबी निमाड़ी आदि चार बोलियां है। पर उन सबकी भौगोलिक स्थितियों के अनुसार जीवन सहेलियां भी हैं। अपनी बघेली को ही देखा जाय तो अकेल बारह तेरह जिले की लोक ब्यौहार की भाषा भर नही बल्कि एक क्षेत्र विशेष की जीवन शैली भी है। यहां की भौगोलिक संरचना पर एक किमदन्ती है ।
कहते हैं एकवार बादशाह अकबर ने अपने अधिनस्त सभी राजाओं को अपने अपने राज्य का एक ऐसा नजरी नक्शा बनवाकर लाने को कहा जिसमें राज्य के उपजाऊ अनुपजाऊ इलाके और नदी पहाड़ों सभी का विवरण हो। ताकि उसके अनुसार कर वसूला जाय। तमाम राजे महाराजे अपने अपने राज्य के भूमि का एक से बढ़कर एक रंग विरंगे नजरी नक्सा लेकर पहुँचे और प्रस्तुत किए। परन्तु जब रीवा नरेश का नम्बर आया तो उनने रेशमी कपड़े में बधा एक सूखी तरोई के फल को निकाला और अकबर के सामने रख दिया।
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अकबर नाराजगी जताते हर कहा कि हम नजरी नक्सा लाने केलिए कहा था पर आप यह सूखी गिलकी का फल दिखा रहे हैं। रीवा नरेश ने कहा जहांपनाह गुस्ताखी मुवाफ हो बांधवगढ़ राज्य का यही नजरी नक्शा है। इसमें यह जो धारी दार गहरे भाग दिख रहे हैं वह वहां के नदी नाले हैं । और ढलान दार ऊंचे भाग जंगल पहाड़ हैं जहां मात्र कोदो कुटकी जैसे साधारण अनाज होते हैं जिन्हें जंगली जानवर चर जाते हैं। कहते है अकबर उसे देख बहुत प्रभावित हुआ तथा इस क्षेत्र का कम से कम लगान रखा।
इस बघेलखण्ड के ऊबड़ खाबड़ जंगली भूभाग के कारण यहां के खेती के उपकरण से लेकर मकान बनाने की शैली तक अन्य भूभागों से अलग है। मकान बनाने की यहां की एक ऐसी शैली है जिसे कटुई बखरी कहा जाता है। इस कटिंग दार शैली में पहले दश दश हाथ के दो कमरे बनाए जाते जिनमें दोनों में पटौहां एवं दोनो ओर खिड़कियां रहती हैं। फिर उन खिड़कियों से लगभग एक हाथ नीचे कटिंगदार ओसारी बनती है जो सुरक्षा के दृष्टि से तीन ओर से बंद रहती हैं।
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यह बखरियां प्रायः अपने अपने खेत में बनाई जाती थीं जिससे एक ओर तो साम्हर चीतल हिरण सुअर आदि जंगली जानवरों से खेत की तकवारी भी की जा सके। तो दूसरी ओर इस तीन ओर से बंद बखरी में रहकर अपना परिवार एवं पशुधन भी सुरक्षित रहे। क्योकि समस्त ग्रहस्ती की सामग्री ही इस बखरी के अन्दर रहती थी। मात्र सामने की 20 हाथ लम्बी एक खम्भेदार ओसारी भर खुली रखी जाती थी जो घरके बड़े बूढ़ों का बैठक खाना और अतिथि गृह होती थी। पर उसमें भी एक ओर सात आठ हाथ लम्बी सोने के लिए बन्द कोठरी रहती थी।
खजुराहो के आदिवर्त में मध्यप्रदेश शाशन संस्कृति विभाग ने बघेली बुन्देली मालवी निमाड़ी एवं चंबल क्षेत्र की अलग अलग शैलियों के यह परम्परागत मकान शैलियों का निर्माण कराया है जो अब पूरा हो चुका है। और उसकी 20 फरवरी को माननीय मुख्यमंत्री महोदय मध्यप्रदेश शासन लोकार्पण करेंगे। पर मजे की बात यह है कि बघेली बखरी का नमूना और उसके बनाने के पीछे क्या अवधारणा थी यह संस्कृति विभाग ने मुझसे ही लिया था।