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Bada Mangal Bhandara : कैसे शुुरू हुआ बड़े मंगल पर भण्डारा, नीम करोड़ी बाबा का जुड़ा है नाम

Bada Mangal Bhandara

Bada Mangal Bhandara : आज से देश भर में बड़े मंगल की शुरुआत हो चुकी है। एक और हनुमान मंदिरों में आज श्रद्धालुओं की भीड़ दिखाई दे रही है तो दूसरी ओर जगह-जगह बड़े मंगल पर भण्डारे का आयोजन किया जा रहा है। ज्येष्ठ माह की तपती और चिलचिलाती गर्मी में भगवान हनुमान के भक्त जगह-जगह प्यासों के लिए स्वच्छ पानी तो भूखों के लिए भोजन का प्रबंध करते हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि ये परंपरा कब और कैसी शुरू हुई? कैसे बड़े मंगल पर भण्डारे का आयोजन शुरू हुआ? आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़े मंगल की शुरूआत पहले किसने की थी और कब से भण्डारे का आयोजन होना शुरू हुआ।

बड़े मंगल को कहते हैं बुढ़वा मंगल

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले सभी मंगलवार को बड़े मंगलवार के रूप में मनाया जाता है। इसे बुढ़वा मंगलवार भी कहते हैं। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष विशेष रूप से हिंदुओं के देवता हनुमान जी के रूप में माने जाते हैं। इन दिनों लोग ज्यादा से ज्यादा समाज सेवा का कार्य कर भगवान हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 

क्यों होता है बड़े मंगल पर भण्डारा? | Bada Mangal Bhandara

ज्येष्ठ माह के सभी बड़े मंगलवार को जगह-जगह भण्डारे (Bada Mangal Bhandara) का आयोजन होता है। खासकर उत्तर भारत में यह अधिक देखने को मिलता है। इसकी शुरुआत का ऐतिहासिक या प्रमाणित इतिहास बहुत पुराना नहीं है, बल्कि यह परंपरा अवध के नवाब सआदत अली खान (1798-1814) के शासनकाल से चली आ रही है। किंवदंतियों के अनुसार, नवाब के बेटे मोहम्मद अली शाह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। तो उन्होंने बड़े मंगलवार को अलीगंज में स्थित हनुमान मंदिर में विशाल भण्डारा आयोजित किया और भूखों को खाना और प्यासों को पानी पिलाया। इसके बाद उनका बेटा ठीक हो गया। फिर नवाब ने घोषणा करवा दी कि ज्येष्ठ माह के सभी मंगलवार को भण्डारे लगेंगे, जहां सभी को भोजन दिया जाएगा। 

नीम करोड़ी बाबा से जुड़ी है एक कथा

नीम करोड़ी बाबा का हनुमान सेतु और भणडारे दोनों ही धार्मिक और पौराणिक संदर्भ हैं जो हनुमान जी की भक्ति और उनसे जुड़ी कथाओं से संबंधित हैं। हनुमान सेतु लखनऊ में स्थित एक मंदिर है। जो नीम करौली बाबा से जुड़ा है। एक कथा के अनुसार, मंदिर की स्थापना नीम करौली बाबा ने कराई थी और इसे हनुमान सेतु कहा जाता है। नीम करौली बाबा को हनुमान जी का अवतार माना जाता है और उन्होंने हनुमान सेतु की स्थापना की थी। यहाँ गोमती नदी के किनारे बाबा ने पहले तप किया था। जब गोमती नदी पर पुल बनाने की योजना थी, तो पुल का निर्माण बार-बार गिर जाता था। तब नीम करौली बाबा ने मंदिर के निर्माण की सिफारिश की, और फिर मंदिर का निर्माण हुआ। यहां बाबा ज्येष्ठ माह में एक बार आये थे। मंदिर के पास लोगों को प्यास से भटकते देखा था। तब उन्होंने प्यायु लगवाया था और भूखो के लिए भोजन की भी व्यवस्था करते थे। तभी से उनके अनुयायी हर मंगलवार को भंडारे और प्यायु का आयोजन हर साल ज्येष्ठ माह में करने लगे।

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