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EPISODE 51: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Babulal Dahiya

Babulal Dahiya

Babu Lal Dahiya: कल हमने महिलाओं द्वारा निर्मित कुठला, कुठली, पेउला आदि तमाम मिट्टी की वस्तुओं की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में अन्य उपकरणों की जानकारी भी प्रस्तुत कर रहे हैं।

कोनइता


यह धान कोदो कुटकी आदि की दराई करके चावल निकालने का मिट्टी का एक उपकरण है जिसके दो भाग होते हैं।नीचे के भाग को (थरी ) कहा जाता है और ऊपर के भाग को (कोनइता य चकरा) थरी को एक हाथ उभरी लकड़ी की कील के साथ जमीन में स्थायी तौर पर रख कर छाप दिया जाता है। और उसी की कील में फँसा हुआ कोनइता घुमाने पर घूमता रहता है जिसमें लकड़ी का एक बेंट लगा रहता है। इसे बनाने में पेरउसी के बजाय धान य कोदो की भूसी गीली मिट्टी में मिलाई जाती थी।
कोनइता शायद इसलिए कहा गया होगा कि घर के एक कोने में स्थाई रूप से गड़ा रहता है। पर चकरा इसलिए कि यह चक्राकार घूमता है। इसकी घुमाने वाली लकड़ी किसी बाधिल किस्म की धबई, बबूल आदि की होती है और जमीन में गड़ी नीम की जिससे उसे दीमक न खा सके। परन्तु अब यह चलन से बाहर है।

गोरसी


यह गीली मिट्टी से बना एक पात्र होता है जो पेउला कुठली के ऊपर रखने के लिए बनाया जाता है। इस बहु उद्देसीय पात्र को औंधा रख देने से जहाँ खाने से बची हुई रोटी उसके नीचे सुरक्षित रह सकती हैं वही ठंड के दिनों में उसमें आग जलाकर भी तापा जा सकता है। प्राचीन समय में जब मांचिस नही हुआ करती थीं तब इसी में राख के नीचे अध जले कण्डे को दबा दिया जाता जिसमें 24 घण्टे तक आग सुरक्षित रह सकती थी। पर अब चलन से बाहर है।

सैरी

यह ठंड के दिनों में आग जलाकर तापने का एक मिट्टी पात्र है जो एक फुट ब्यास का गीली मिट्टी में धान की भूसी मिलाकर बनाया जाता है। इसमें अगहन से फागुन माह तक सुबह शाम आग को जलाकर तापा जाता है। पर अब चलन से बाहर होता जाता है।

रेहना


इसका आकार सैरी की तरह ही होता है पर आकार में उससे छोटा होता है।इसे बर्तन आदि रखने के लिए बनाया जाता है जिससे गोल बर्तन घड़े आदि अनाज भर कर यदि उसके ऊपर रख दिए जाँय तो लुढ़कने का डर नही रहता । पर अब चलन से बाहर है।

चूल्हा


चूल्हा भोजन पकाने के लिए बनाए जाते हैं जो एकल और दो साथ -साथ जोड़ कर भी बनते हैं। एकल चूल्हे में मात्र एक ही दाल य चावल का बर्तन चढ़ाया जाता है पर एक साथ जुड़े चूल्हे में उतने ही ईंधन में दाल चावल साथ – साथ पक जाते हैं।यह अभी भी प्रचलन में हैं।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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