Babu Lal Dahiya: आज हम लौह के कृषि आश्रित समाज से जुड़े कुछ अस्त्र शस्त्रों की जानकारी दे रहें हैं कि उनका हमारे खेती किसानी में क्या अवदान था।
तलवार
प्राचीन समय में गांव के पाश से ही घने जंगल हुआ करते थे जिनमें बाघ ,तेंदुआ आदि कई तरह के हिंसक जानवर गाँव में आते रहते थे। गर्मी के दिनों में तो अक्सर बच्चे वाली बाघिन भी आ जाती और बाहर बैठे जानवरों पर अक्सर हमला कर देती। जैसे ही गाय बैलों के मुँह से एक विशेष प्रकार की दयनीय आवाज निकलती उसे सुन बचाने की गुहार लगाते समस्त गांव के लोग दौड़ पड़ते। ऐसी स्थिति में दूसरी चीजें ढूढ़ने के बजाय खूंटी में टँगी तलवार लेकर दौड़ना लोगों के लिए अधिक सरल रहता था।
तलवार लौह शिल्पी द्वारा बनाई लगभग डेढ़ हाथ लम्बी एक ओर झुकी हुई तीन अंगुल चौड़ी पतली धार की लौह अस्त्र होती है। प्राचीन समय में जब राइफल वगैरह आधुनिक अस्त्र नही थे तब समस्त युद्ध तलवार से ही लड़े जाते थे पर अब चलन से बाहर है।
तेगा
तलवार की ही तरह का एक अस्त्र होता है तेगा। परन्तु अन्तर यह रहता है कि तलवार जहां टेढ़ी होती है वहीं तेगा की धार चौड़ी और टेढ़े होने के बजाय वह सीधा रहता है। किन्ही – किन्ही तेगा में दोनों ओर धार होती है। जानकारों का कथन है कि प्राचीन समय द्वंद युद्ध करने में इस का उपयोग सीधे पेट में भोकने का हुआ करता था।पर अब यह पूर्णतः चलन से बाहर हैं । अगर कहीं बचे भी हैं तो प्राचीन धरोहर के रूप में ही।
भाला
यह 6फीट लम्बा लौह का बना प्राचीन अस्त्र है जो ऊपर की ओर पतला चोंखा होता है। प्राचीन समय के युद्ध का यह एक मसहूर अस्त्र था पर अब चलन से बाहर है। इसे किसान अक्सर सांप के मरने में उपयोग करते थे।
बल्लम
यह भी बरछी की तरह का एक अस्त्र है जो लगभग 6 -7 फीट लम्बा होता है। परन्तु यह समस्त लौह का ही बना रहता है। प्राचीन समय में इसका उपयोग अक्सर लोग बरसात में घर में घुस आए सांप के मरने केलिए करते थे।
बरछी
बरछी एक फीट लम्बा नीचे चौड़ा किन्तु ऊपर पतला चोंखा एक अस्त्र होता है जो लाठी में लगा रहता है। पहले इसे लोग खेत में रखवाली के लिए जाते समय हाथ में लेकर चलते थे। पर अब चलन से बाहर है।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे इस श्रृंखला में नई जानकारी के साथ।