EPISODE 53: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

babu lal dahiya

Babu lal dahiya: कल हमने सुतली के रस्सी, गेरवा, भारकस आदि की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में कुछ अन्य सुतली की वस्तुओं की जानकारी दे रहे हैं।

आम के फल तोड़ने की जाली

इस जाली की बनावट ठीक मुस्का की तरह होती है परन्तु उससे अधिक लम्बी। ताकि 8-10तोड़े हुए आम उसके अन्दर आ जांय। फिर इस बुनी हुई जाली को 8- 10 फीट लम्बे बाँस में सुतली से गांस दिया जाता है।और उसी से पेड़ के डाल में बैठ आम के फलों की तुड़ाई होती है।

आम रखने की जाली ( झोरी)

अब तो तोड़े हुए आमों को जाली से निकाल पेड़ के ऊपर ही एक बाल्टी में रखा जाता है ।परन्तु प्राचीन समय में सुतली से बुनी जाली नुमा एक फीट लम्बी झोरी होती थी जिसमें जाली से निकाल उस में आम के फलों को रखा जाता था और जब वह भर जाती तो रस्सी में बांध उसे नीचे उतार दिया जाता था ।

मचिया बुनने की सुतली

यूं तो घरेलू कार्य हेतु बनी मचिया की सूमा से ही बुनाईं होती थीं। परन्तु सम्पन्न लोगों के बैठक खाने में रखी गईं मचियां कुछ रंग बिरंगी अलग तरह की सुतली से बुनी जाती थीं जो अम्बारी य सन की होती थीं।
पर अब चलन से बाहर हैं।

दही बिलोने की रस्सी

यह मथानी में लपेट कर दही बिलोने हेतु बनी पतली किन्तु मजबूत रस्सी होती थी जिसे सन अम्बारी को ढेरा में कात और तीन पर्त रस्सी को बर ऐंठ कर बनाया जाता था। दही बिलोते समय रस्सी से उगलियों य हथेली में घर्षण न हो अस्तु किनारे कपड़ों के गुच्छे की मूठ लगा दी जाती थी।

नोई

यह दूध दुहते समय गाय के पैर को बांधने वाली लगभग दो हाथ की एक रस्सी होती थी जिसे सन य अम्बारी को ढेरा से कात और तीन पर्त सुतली को बर ऐंठ कर बनाई जाती थी। कुछ लोग इसे बैलों के पूँछ के बाल को भी उसी के साथ कात भांज कर बनाते थे।

शिकहर


इसे बनाने के लिए पहले सन य अम्बारी को ढेरा से कताई करके उसे दो पर्त में बर कर ऐंठ लिया जाता और फिर बर्तन रखने के आकार में शिकहर बना उसे बुन दिया जाता।

इसे छानी में लटकाकर दूध य मठ्ठा भरा बर्तन रख देने से वह विल्ली से सुरक्षित हो जाता था। क्यो कि उस झूल रहे शिकहर में बिल्ली छलांग लगा कर नही पहुँच पाती थी।

गलगला

इसे बनाने के लिए पहले सन या अम्बारी को ढेरा से कात कर सुतली बनाई जाती थी फिर उसे दो पर्त में बर कर बैलों के गले के नाप के बराबर तीन पर्त की उस सुतली में पीतल की छोटी-छोटी घण्टियों को बीच -बीच में समान दूरी पर गूथ दिया जाता था जिन्हें गलगला कहा जाता था। क्योकि इनके बजने से गल- गल की आवाज निकलती थी।

आज इस श्रृंखला में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।

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