EPISODE 54: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

babu lal dahiya

Babu lal dahiya: कृषि आश्रित समाज में जहां लौह, लकड़ी,मिट्टी पत्थर आदि तरह -तरह के उपकरण एवं वस्तुएं होती हैं तो कुछ चर्म शिल्पियों द्वारा निर्मित वस्तुएं भी प्रचलन में थी। इस चर्म शिल्प का प्रचलन लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पहले से मिलता है। क्योकि रथ के क्षत्र, तूणीर ,ढाल , तलवार की म्यान तथा पद त्राण आदि चमड़े के ही बनते थे। हमारे खेती किसानी में भी इसका उपयोग था जो इस प्रकार था.

जोतावर

जोतावर लगभग दो हाथ लम्बी और दो इंच चौड़ी एक चर्म पट्टिका होती है जिसमें चर्म शिल्पी लोहार द्वारा निर्मित लोहे के खुरा सिल देते हैं।फिर खुरा को जुए की पचारी के छेंद में फंसा बैलों को नध जोतावर को जुए के शैले में फँसा दिया जाता है। उसके शैला में फंसा देने से बैल जुएं से बाहर नही जाते।इसको कोमल बनाने के लिए समय -समय पर तेल चुपड़ना जरूरी रहता है। पर अब चलन से बाहर है।

चमौधी



यह तावीज नुमा 2 इंच लम्बी और उतनी ही चौड़ी होती है जिसे दीठ आदि से बचाने के लिए किसान अपने बछड़े के गले में बांधते हैं।
तत्कालीन मान्यता थी कि उसे बांधने से बछड़ों को दीठ नही लगती। यह दो तीन प्रकार की बनती है पर अब चलन से बाहर है।

ढोलिया की चर्म पट्टिका

इसे ढोलिया में सिल कर उसे कन्धे में टाँगने लायक बनाया जाता है जिससे गेहू चने आदि की खेतों में बुवाई की जा सके। उसका चमड़ा कोमल बना रहे और फटे न इसलिए उसमें तेल लगाते रहना पड़ता है। पर अब चलन से बाहर है।

सिंचाई के लिए चमड़े की मसक

यह चमड़े की मसक भैंसा य बैल के मजबूत चमड़े की बनती थी जिससे हर बार कुँए से लगभग चार बाल्टी पानी एक साथ बैलों द्वारा खींचने से आ सके। जब मोटर पम्प आदि सिंचाई के साधन नही थे तो सब्जी उगाने वाले कृषक उसी चर्म मसक से अपनी सब्जियों की सिंचाई करते थे। पर अब पूरी तरह चलन से बाहर है।

पनही

इसे चर्म शिल्पी चमड़े को अच्छी तरह पका कर बनाते थे जो खेत के ढेले आदि में चलने में मजबूत होती थीं।नई पनहियों में मजबूती और कोमल बनाने के लिए उन्हें तेल से भिगोना पड़ता था। पर अब चलन से बाहर हैं।

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सुकतरिया

यह गांव के चर्म शिल्पियों द्वारा बनाई गई एक तरह की चप्पल हुआ करती थीं जो पहले बनाई जाती थीं। ठीक उसी तरह जैसे पुराने चित्रों में महात्मा गांधी जी के पैरों में दिखती हैं। पर अब पूरी तरह चलन से बाहर हैं।

चमड़े का बटुआ

प्राचीन समय में जेब में रुपये पैसे रखने के लिए इसे चर्म शिल्पी बनाते थे। पर अब पूर्णतः चलन से बाहर है।

लोहार का खलैता

यह लोहार की भट्ठी की आग को तेज करने के लिए बनता था। इसे दबाने से भट्ठी में तेजी से हवा जाती जिससे लकड़ी जलती रहती और लोहा गर्म होता । फिर उससे लौह शिल्पी तरह-तरह के उपकरण बनाता था। पर नई किस्म की हवा देने वाली पंखी आजाने से यह पूर्णतः चलन से बाहर है।

आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे इस श्रृंखला में नई जानकारी के साथ।

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