Why Avoid Bitter Gourd and Curd During Monsoon? – बारिश का मौसम जहां प्रकृति को हरियाली से भर देता है, वहीं यह शरीर की पाचन क्षमता को कमजोर बना देता है। इस मौसम में संक्रमण की संभावना अधिक होती है और वात-पित्त-कफ का असंतुलन भी बढ़ जाता है। ऐसे में कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन, जो सामान्य दिनों में फायदेमंद माने जाते हैं, मानसून में हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। करेला और दही ऐसे ही दो खाद्य पदार्थ हैं, जिन्हें विशेष रूप से इस मौसम में सीमित या पूरी तरह से टालने की सलाह दी जाती है। आइए जानें इसके पीछे के कारण – वैज्ञानिक, आयुर्वेदिक और स्वास्थ्य दृष्टिकोण से।
करेला – बारिश में क्यों न खाएं ?
Bitter Gourd – Why to Avoid in Monsoon ?
आयुर्वेदिक कारण – करेला तासीर में ‘तीखा व कषाय’ होता है जो वात और पित्त को बढ़ाता है। मानसून में पित्त पहले से ही असंतुलन में होता है, जिससे करेला पेट में जलन, अपच और अम्लता यानी Acidity बढ़ा सकता है। आयुर्वेद में इसे शीत ऋतु सर्दी व ग्रीष्म ऋतु मतलब गर्मेंमियों में सेवन योग्य माना गया है लेकिन वर्षा ऋतु यानी बारिश में नहीं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण –
करेले में अल्कलॉइड्स और कराटिन जैसे कंपाउंड्स होते हैं जो ज्यादा मात्रा में टॉक्सिसिटी और पाचन समस्याएं पैदा कर सकते हैं। बारिश में सब्जियों पर बैक्टीरिया और फफूंद लगने का खतरा बढ़ जाता है। करेले की झिल्लीदार संरचना में यह अधिक पनपते हैं।
संभावित नुकसान –
- अपच, पेट दर्द, गैस
- ब्लड शुगर लेवल अचानक गिरना (हाइपोग्लाइसीमिया)
- इम्यूनिटी पर असर दही : मानसून में क्यों नहीं खाना चाहिए ?
Curd in Monsoon : Why It’s Better to Avoid ?
आयुर्वेदिक कारण –
दही की तासीर गरम मानी जाती है लेकिन इसमें कफवर्धक गुण भी होते हैं।
वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी अधिक होती है, जिससे शरीर में कफ दोष पहले से बढ़ा रहता है। दही का सेवन इस असंतुलन को और बढ़ाता है।
यह जुकाम, कफज विकार, गले की खराश और स्किन एलर्जी को बढ़ा सकता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण –
- नमी और तापमान के उतार-चढ़ाव में दही जल्दी खट्टा व फर्मेंटेड हो जाता है, जिससे पेट की समस्याएं हो सकती हैं।
- दही में मौजूद बैक्टीरिया, मानसून में खराब हाइजीनिक कंडीशंस के कारण हानिकारक जीवाणुओं से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।
संभावित नुकसान – - सर्दी-जुकाम बढ़ना
- गले में खराश
- डायरिया या पेट दर्द
क्या खाएं इनकी जगह ?
Healthy Alternatives
- करेला की जगह – तुरई, लौकी, सहजन, पत्तेदार सब्जियां।
- दही की जगह – गुनगुना दूध, ताज़ा मठे से बने खाद्य जैसे रायता, कढ़ी आदि।
विशेष – Conclusion
करेला और दही दोनों ही सामान्यतः स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में इनका सेवन शरीर की प्रकृति, मौसम की नमी और पाचन तंत्र की स्थिति को देखते हुए नुकसानदेह हो सकता है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों यही संकेत देते हैं कि वर्षा ऋतु में इन खाद्य पदार्थों से परहेज करके हम मौसमी बीमारियों से खुद को सुरक्षित रख सकते हैं।