आशा जी की गायकी का मुख़्तलिफ़ अंदाज़

aasha

HAPPY Birth Day Asha Bhosle :गायकी का वो अंदाज़ जो जज़्बात के हर सैलाब को अपने अंदर समेट कर हमें अपनी रौ में बहा ले जाने का माद्दा रखता है और सदियों से हम जिस आवाज़ के जादू की गिरफ्त में हैं वो नाम किसी तार्रुफ का मोहताज नहीं है ,हर उम्र के लोग उनकी गायकी के दीवाने हैं,जी हां हम बात कर रहे हैं आशा भोसले की जिन्हें प्यार से आशा ताई भी कहते हैं ,वो स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी छोटी बहन हैं और पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हैं। पिता जी ड्रामा आर्टिस्ट थे,अपना थिएटर चलाते थे और संगीतज्ञ भी थे, उन्होंने अपनी हर संतान को संगीत का ज्ञान दिया था इसलिए घर के हर बच्चे यानी लता जी ,आशा जी, ऊषा जी, मीना जी ,छोटे भाई हृदय की तरह उन्हें भी संगीत के साथ अभिनय और भावनात्मक संवाद का थोड़ा बहुत ज्ञान बचपन में ही हो गया था फिर उसे गायकी में पिरोना आशा जी के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी शायद यही वजह है कि उनके गायन में जितनी कलात्मकता दिखती है ,उसे लाना किसी भी गुलूकार के लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है या फिर किसी भी गाने को आशा जी की स्टाइल में आलाप और मुरकियों के बदलाव के साथ गाना सबके लिए आसान नहीं है और इसीलिए उन्हे वर्सेटाइल सिंगर कहते हैं, अपने इन्हीं गुणों के कारण उन्होंने एक्टिंग की दुनियां में भी क़दम रखा और फिल्म “माई” में नज़र आईं।

युगल गीतों में उनके नोट्स ज़्यादा सटीक सुनाई देते हैं :-

08 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ ज़िले में मराठी परिवार में जन्मी आशा बचपन से ही बड़ी चंचल थी ,9 बरस की थी तब पिता का साया सर से उठ गया उनका थिएटर भी बिक गया बड़ी दीदी लता जी ने फिल्मों में अभिनय करके गीत गा के ,परिवार की बागडोर संभाली ,फिर जब आशा जी ने गाना शुरू किया तो उनका अंदाज़ बिल्कुल अलग था ,पॉप, की तो बात ही क्या कहें ,जो पांपरिक शैलियां थीं जैसे- ग़ज़ल , भजन, भारतीय शास्त्रीय संगीत, क्षेत्रीय गीत, क़व्वाली, रवीन्द्र संगीत और नज़रूल गीत इनमें भी उन्होंने अलग अलग प्रयोग किए ,आप उनका कोई भी गाना सुनकर ये महसूस कर सकते हैं। उनके गाने में हर लाइन नई हरकत से लबरेज़ लगती है जो उन्हें दुसरे गायकों से जुदा कर देती है ,ये हल्की सी ही सही पर कहीं लचक या बदलाव की हरकत उन्हें मुख़्तलिफ़ और दिलकश अंदाज़ देती है और उनके गाए गानों की तर्ज़ आसान नहीं लगती क्योंकि इसे हुबहू वैसा ही गाना बहोत मुश्किल होता है, ये आप उनके युगल गीतों में बखूबी महसूस कर सकते हैं।

भाषा, लहजे और थीम को समझने के बाद गाती हैं गाने :-

संगीत के बाद आशा जी ने कई भाषाओं को भी सीखा और 14 से ज़्यादा भाषाओं में गीत गाए जैसे – मराठी, आसामी, हिन्दी, उर्दू, तेलगू, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, अंग्रेजी, रशियन, जाइच, नेपाली, मलय और मलयालम। अलग -अलग भाषाओं में गाते हुए उन्होंने तलफ़्फ़ुज़ का ख़ास ख्याल रखा। लता मंगेशकर जी के साथ , आशा जी भी मराठी संगीत की सिरमौर रही है क्योंकि मराठी उनकी मातृभाषा है इसी का नतीजा है कि अब तक 12000 से अधिक गीतों को आशा जी ने आवाज़ दी है।

राहुल देव बर्मन ने थामा हाँथ :-

उनके निजी जीवन की बात करें तो 16 बरस की उम्र में उन्होंने घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपतराव भोसले’ से शादी की जो लता जी के सचिव थे पर शायद अच्छे इंसान नहीं थे ,जिस वजह से आशा जी की शादी ज़्यादा वक्त तक न चल सकी और आशा जी मंगेशकर से भोसले बनकर तीन बच्चों के साथ 1966 में मायके आ गईं।
1980 में आशा जी ने संगीतकार सचिन देव बर्मन के बेटे ‘राहुल देव बर्मन ’यानी पंचम दा से शादी की और उनके संगीत निर्देशन में खूब लोकप्रिय गाने भी गाएं ,एक दो आपको याद दिलाएं तो शायद वो होंगे ,’छोटी सी कहानी से. …..’ ,’मेरा कुछ सामान। …..’ और ‘बदरा बिदेसी…’।

रिमिक्स का चलन :-


आशा जी हमेशा कुछ अलग गाने की कोशिश करती हैं जिसकी मिसाल हैं उनके एल्बम
1987 की ही बात कर लें तो उन्होंने अपने जन्म दिवस के मौके पर “दिल पड़ोसी है” नाम का एलबम, रिलीज़ किया था जिसमें उनकी आवाज़ के साथ गुलज़ार के गीत और आर.डी.बर्मन के संगीत ने धूम मचा दी थी।
1995 में आशा जी ने उस्ताद अली अकबर खान के साथ ग्यारह बंदिशे रिकार्ड की जिसे ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित किया गया और जब रिमिक्स का इतना चलन नहीं था तब आर.डी.बर्मन के संगीत निर्देशन में गाए गीतो को आशा जी ने दोबारा ‘रिमिक्स’ में गाया जो युवाओं को बेहद पसंद आया और उनके ये रिमिक्स सांग , पुराने होने के बावजूद नए कलेवर में ढलकर यूथ की ज़बान पर भी रवाँ हो गए फिर ये सिलसिला चल पड़ा और उनके कुछ और एल्बम जैसे ‘राहुल और मै’ इंडोपॉप ‘जानम समझा करो’ लेस्ली लुईस के साथ काफी पसंद किए गए और हाँ 2002 में ‘आप की आशा’ वीडियो एलबम को हम कैसे भूल सकते हैं जिसका संगीत खुद आशा जी ने तैयार किया था इसके गीत मुजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे, एक बात और हम आपको बताते चलें कि जब अदनान सामी सिर्फ 10 वर्ष के थे तब आशा जी ने ही उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने की सलाह दी थी और जब अदनान बड़े होकर गायकी के क्षेत्र में आगे बढे भारत आए तो सबसे पहले ,आशा जी के साथ ही गीत गाए ,बोल तो आपको याद ही होंगे , ’कभी तो नज़र मिलाओ….’ इस एलबम के गीत इतना पसंद किये गए और मशहूर हुए कि फिर ‘बरसे बादल’ नाम के एलबम में भी आशा जी ,अदनान सामी के साथ नज़र आईं।

ग़ज़लों को भी दिया अपनी आवाज़ रंग :-

फिल्मी गीतों में अपनी अलग छाप छोड़ते हुए आशा जी ग़ैर फिल्मी ग़ज़लों के ज़रिए भी अपनी मुख्तलिफ़ गायिकी से हमें लुत्फ अंदोज़ करती रहती हैं। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ग़ज़ल तो आपने सुनी ही होगी आशा जी की आवाज़ में ,” यूँ सजा चाँद कि झलका तेरे अंदाज़ का रंग ,यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मेरे हमराज़ का रंग. …”,उनके एल्बम “मेराज-ए-ग़ज़ल” और “कशिश” ख़ास हैं , 2005 में आशा जी ने एलबम ‘आशा’ भी बनाया , जो चार ग़ज़ल गायको को समर्पित था-जिनमें थे -मेंहदी हसन, ग़ुलाम अली, फरीदा खानम और जगजीत सिंह , इनमें ग़ज़लें थीं – फरीदा खानम की आवाज़ में ‘आज जाने की ज़िद ना करो…, ग़ुलाम अली की ‘चुपके चुपके…’, ‘आवारगी…’ और ‘दिल में एक लहर…’ .जगजीत सिंह की ‘आहिस्ता आहिस्ता…’, मेंहदी हसन की ‘रंजिश ही सही…’,’रफ्ता रफ्ता…’ और ‘मुझे तुम नज़र से…’ ।
2006 में आशा जी लेकर आईं ‘आशा एण्ड फ्रैण्डस’ नाम का एलबम जिसमें क्रिकेटर ब्रेट ली के साथ आशा जी ने ‘यू आर द वन फॉर मी’ जैसे गीत गाए, इन गीतो के संगीतकार समीर टण्डन थे।

कौन हैं उनके पसंदीदा गायक :-

आशा जी अपने हर गाने में कुछ ऐसी हरकतें सुरलहरियों में पिरो देती हैं कि गाने में चार चाँद लग जाता है और उनकी गायकी का ये मुख़्तलिफ़ शोख़ अंदाज़ सबको पसंद आता है। वो अपने इसी स्टाइल की वजह से सबकी फेवरेट सिंगर भी हैं, पर आप जानते हैं कि उनका फेवरेट सिंगर कौन है ,अगर नहीं जानते तो हम आपको बता दें कि आशा जी के पसंदीदा गायक हैं हरफन मौला अंदाज़ लिए हर दिल अज़ीज़ महान गायक किशोर कुमार जी ।

सम्मानों की फेहरिस्त :-

नवम्बर 2002 में आशा जी को “बर्मिंघम फिल्म फेस्टिवल” विशेष रूप से समर्पित किया गया ,1987-को नाइटीनेंगल ऑफ एशिया अवार्ड (इंडो पाक एसोसिएशन यु.के.) द्वारा दिया गया।
यूं तो उनके पुरस्कारों और सम्मानों की फेहरिस्त बहोत लंबी है फिर भी कुछ खास का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जैसे, 5 मई 2008 को राष्टपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने“पद्मविभूषण” से आशा जी को सम्मानित किया।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया गया- 1981- में, गीत था “दिल चीज़ क्या है…’ फिल्म ”(उमरॉव जान) के लिए और
1986 में इजाज़त फिल्म के गीत “मेरा कुछ सामान..’ गाने के लिए ।
फिल्म फेयर पुरस्कार में आपने बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर अवार्ड जीते – गीत
“ग़रीबो की सुनो…” फिल्म (दस लाख) के लिए ,“परदे में रहने दो…”फिल्म (शिकार),
“पिया तु अब तो आजा..”फिल्म .(कारवाँ) ,“दम मारो दम…” फिल्म (हरे रामा हरे कृष्णा )
“होने लगी है रात…” फिल्म (नैना ) ,“चैन से हमको कभी…” फिल्म (प्राण जाये पर वचन ना जाये ) गीत -”ये मेरा दिल…” फिल्म (डॉन ) के लिए।
स्पेशल अवार्ड मिला फिल्म (रंगीला-) के गीतों के लिए और 2001- में फिल्म फेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड मिला ।
इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 1989-को लता मंगेस्कर अवार्ड से नवाज़ा।
चलते-चलते हम आपसे यही कहना चाहेंगे कि आज भी वो संगीत के क्षेत्र में अपना योगदान देती रहती हैं ,नए कलाकारों से जुड़ी हैं कई रियलिटी म्यूज़िक शोज़ में बतौर जज भी नज़र आती रहती हैं ,अगर आज ,आप उनके कुछ सदाबहार नग़्मों को गुनगुनाना चाहें तो गा सकते हैं ,’अभी न जाओ छोड़कर..’,कौन आया की निगाहों में चमक…’ ,दिन है बहार के…’, फिर ! ‘झुमका गिरा रे..,’या फिर ,नए ज़माने की तरफ बढ़ते हुए ,’आंख मिलाऊंगी आंख चुराऊंगी ..’, ‘ज़रा सा झूम लूं मै…’,और, रंगीला फिल्म के गीत ‘याई री याई री …’ और ‘तन्हा तन्हा …’,तो हम कहेंगे ज़रूर सुनिए जिसके लिए उन्होंने फिल्म फेयर में स्पेशल अवॉर्ड जीता था ।

और क्या हैं शौक़

गाने के अलावा आशा जी को व्यंजन बहोत आकर्षित करते हैं ,यही नहीं फिल्म इंडस्ट्री में भी अपनी दिलचस्पी के चलते वो सबसे उनकी जगह की ख़ास डिश के बारे में पूछती हैं और उसे बनाना सीखतीं , और आज भी वो देश विदेश की स्पेशल डिश के बारे में पता लगाती रहती हैं। तरह तरह के व्यंजन बनाती रहती हैं जबकि अपने इसी शौक़ को पूरा करते हुए वो आज दुनिया भर में 10 रेस्टोरेंट चलाती हैं जो पूरी दुनिया के फ़ूड लवर्स को भी आकर्षित करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *