तालों के शहर भोपाल का बाशिंदा था वो
गीतों में खींचता था जज़्बातों की तस्वीर
मानो ठहरे हुए पानी में क़ैद हो किसी की तक़दीर
ये लफ्फाज़ी बांधती है हमें बनके ज़ंजीर।
जी हां ये अज़ीम शायर थे असदुल्लाह खान जिनके वालिद मुंशी अहमद खान अरबी और फ़ारसी के उस्ताद थे ,ये अब्बा की तालीम का असर था या खुदा की नेमत कि उन्होंने शायरी की दुनिया में भोपाल का नाम इस क़दर रौशन कर दिया कि वो हरदिल अज़ीज़ असद भोपाली हो गए जिन पर 1949 में, बॉम्बे (अब मुंबई) के एक फिल्म निर्माता जोड़ी फ़ाज़ली ब्रदर्स की नज़र पड़ी और वो फिल्मों के लिए लिखने लगे , हुआ यूं कि भारत के विभाजन के बाद, उनकी फिल्म’ दुनिया ‘ के गीतकार आरज़ू लखनवी , नए बने पाकिस्तान में चले गए और फिल्म के केवल दो गीत ही लिखे गए थे इसलिए फ़ाज़ली ब्रदर्स नए गीतकारों की तलाश में थे, उस समय व्यवसायी सुगम कपाड़िया, जो भोपाल में कुछ सिनेमाघरों के मालिक थे, उन्होंने कहा कि भोपाल में कई अच्छे शायर हैं, तो क्यों न एक मुशायरे का एहतमाम किया जाए इस बात पर फ़ाज़ली ब्रदर्स सहमत हो गए, और कपाड़िया ने 5 मई 1949 को अपनी भोपाल टॉकीज में एक मुशायरा आयोजित किया। जहां शिरकत फरमाई असद भोपाली ने बस फिर क्या था फ़ाज़ली ब्रदर्स का मक़सद पूरा हुआ और असद जी की शायरी से वो इतना मुतासिर हुए कि फौरन उन्हें बॉम्बे आने का न्योता दे दिया ।
अफ़साना से मिला बड़ा ब्रेक
असद भोपाली ने फ़ाज़ली ब्रदर्स की फिल्म दुनिया (1949) के लिए दो गाने लिखे: जिनमे, रोना है तो चुपके चुपके… जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया और अरमान लुटे, दिल टूट गया ..सुरैया ने गाया बस फिर क्या था अगले साल, उन्होंने कुछ और फ़िल्मों के लिए गाने लिखे; जो लता मंगेशकर और शमशाद बेगम ने गाए और इस तरह ये सिलसिला चल पड़ा पर असद भोपाली को बड़ा ब्रेक बीआर चोपड़ा की (1951) में आई फिल्म अफ़साना से मिला, जिसके लिए उन्होंने 5 गाने लिखे। असद भोपाली ने उस वक्त के क़रीब क़रीब सभी संगीत निर्देशकों के साथ काम किया और जब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल बतौर जोड़ी फिल्म जगत में आए तो उनके संगीत निर्देशन में आई पहली फिल्म पारसमणि के लिए बेमिसाल नगमे लिखे जो बेहद लोकप्रिय हुए जैसे : वो जब याद आए, बहुत याद आए ..और हंसता हुआ नूरानी चेहरा..।
सौ से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 400 गीत लिखे।
उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में भी उन्होंने काफी फिल्मी गीत लिखे जो बेहद पसंद किए गए । 1949 से 1990 तक उन्होंने सौ से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 400 गीत लिखे। पर असद जी ने जिन फिल्मों के लिए लिखा उनमें से कई निम्न श्रेणी की फिल्में भी थीं, और शायद इसीलिए उन्हें उच्च श्रेणी की फिल्मों में केवल कुछ गाने मिलते थे फिर 1989 में उन्हें संगीतमय हिट फिल्म मैंने प्यार किया के लिए गीत लिखने का मौका मिला और इसके गीतों को आपने यादगार बना दिया इसके गीतों की कमियाबी का आलम ये हुआ कि 1990 में उन्होने’ दिल दीवाना बिन सजना के माने न ..’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।
पीछे छोड़ गए अपने नगमों का दिलनशीं कारवां
अफसोस की वो 9 जून 1990 को ही इस जहां को छोड़कर चले गए और पीछे छोड़ गए अपने नगमों का दिलनशीं कारवां।
उन्होंने रंगभूमि के लिए भी गीत लिखे , जो उनके जाने के बाद 1992 में रिलीज़ हुई। उनकी शायरी का मजमुआ, रोशनी, धूप और चांदनी , 1995 में भोपाल की उर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया ,चलते चलते उनके कुछ और गीतों को अगर हम आज गुनगुनाना चाहें तो कुछ नगमें आज भी नई या पहले सी तासीर लिए हमें लुत्फ अंदोज़ करते हैं तो ज़रा गुनगुना के देखिए-
हम तुम से जुदा हो के फिल्म (एक सपेरा एक लुटेरा) से , ये रंग भरे बादल फिल्म (तू नहीं और सही) क्या तेरी जुल्फें हैं .., (हम सब उस्ताद हैं ) फिल्म से अजनबी तुम जाने पहचाने …,और सौ बार जनम लेंगे… । राज़-ए-दिल उनसे छुपाया ना गया …,फिल्म ( अपना बना के देखो )। फिल्म ( रूप तेरा मस्ताना ) में दिल की बातें दिल ही जाने …,और हसीन दिलरुबा करीब आ ज़रा ..।
दिल का सूना साज़ तराना ढूंढेगा…फिल्म ( एक नारी दो रूप )से , दोस्त बन के आए हो.. (बिन फेरे हम तेरे) फिल्म ।
चाँद अपना सफ़र ख़त्म कर रहा … फिल्म ( शमा )। ये वो कुछ चुनिंदा नगमेंं हैं जिनको सुनकर आप एक पुरअसर क़लम का अंदाज़ा लगा सकते हैं जज़्बातों की बयानगी के मुख्तलिफ अंदाज़ से ताज़गी महसूस कर सकते हैं ।
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