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मीठे जहर बनते कृत्रिम मधुरक ~डॉक्टर रामानुज पाठक

Artificial Sweeteners Disadvantages

Artificial Sweeteners Disadvantages

Artificial Sweeteners Disadvantages | आर्टिकल: डॉ.रामानुज पाठक, सतना | कृत्रिम मधुरक या आर्टिफिशियल स्वीटनर्स वे पदार्थ हैं जो खाद्य पदार्थों में मिठास के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये स्वीटनर्स प्राकृतिक मिठास से अधिक मीठे होते हैं और कैलोरी में कम होते हैं। कृत्रिम मधुरक ऐसे रसायन होते हैं, जो चीनी की तुलना में 200 से 700 गुना अधिक मीठे होते हैं, लेकिन इनमें कैलोरी की मात्रा नहीं होती। इन्हें सामान्यतः चीनी का विकल्प माना जाता है और इन्हें कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में इस्तेमाल किया जाता है।

कुछ आम कृत्रिम मधुरक हैं

कृत्रिम मधुरक के अनेक फायदे भी हैं जैसे

मीठा हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा है। चाहे वह मिठाई हो, चाय या फिर कोल्ड ड्रिंक्स, हम सभी को स्वाद में मीठे का एक खास स्थान है। लेकिन आजकल हमारे खाद्य पदार्थों में सामान्य चीनी की जगह कृत्रिम मधुरक (आर्टफिशियल स्वीटनर ) का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है।

इन कृत्रिम मधुरकों को लोग अपने खाने में इसलिए शामिल करते हैं क्योंकि इन्हें सेहतमंद विकल्प माना जाता है, खासकर मधुमेह( डायबिटीज़) के रोगियों के लिए। लेकिन हाल ही में कई रपट और अध्ययन सामने आए हैं, जो बताते हैं कि ये कृत्रिम मधुरक वास्तव में “मीठे जहर” की तरह काम कर रहे हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। कई शोध और अध्ययन यह साबित कर रहे हैं कि कृत्रिम मधुरक हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इन्हें “मीठा जहर” इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि ये मीठे का अनुभव तो देते हैं, लेकिन इनके पीछे छुपे हुए दुष्प्रभाव हमारे शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।

हाल ही में डब्लू एच ओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और एफ डी ए (अमेरिकन फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) जैसी संस्थाओं ने भी कृत्रिम मधुरकों के सेवन पर चिंता जताई है और इसे नियमित उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं माना है। ये सामान्य शर्करा अर्थात सुक्रोज से कई गुना मीठे होते हैं जैसे ;**एस्पार्टेम ,200 गुना मीठा, शीतल पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक्स) और च्युइंग गम में पाया जाता है।

सुक्रालोज : 600 गुना मीठा, बेकरी उत्पादों में उपयोग किया जाता है।

सैकरिन : 300 गुना मीठा, शुगर फ्री टेबलेट्स और डेसर्ट में इस्तेमाल होता है।

स्टीविया : प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त, इसे कम हानिकारक माना जाता है।
कई शोध पत्रों के अध्ययन से भी यह स्थापित हो चुका है कि कृत्रिम मधुरक मीठे जहर हैं।

*नेचर जर्नल * में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, एस्पार्टेम के नियमित सेवन से आंतों के माइक्रोबायोम में असंतुलन हो सकता है, जो इंसुलिन रेजिस्टेंस और मधुमेह का कारण बन सकता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन ने यह रिपोर्ट की कि सुक्रालोज के नियमित उपयोग से मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा बढ़ सकता है।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन में पाया गया कि कृत्रिम मधुरक खाने से वजन बढ़ने की संभावना बढ़ सकती है, क्योंकि यह मस्तिष्क को भ्रमित कर देता है और भूख को बढ़ा सकता है। भारत में एफएसएसएआई ने कृत्रिम मधुरकों के उपयोग के लिए कुछ नियम और दिशानिर्देश बनाए हैं, लेकिन इन पर सख्ती से अमल नहीं हो रहा है। इसके अलावा, बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों पर लेबलिंग की सटीकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्लू एच ओ) ने हाल ही में कृत्रिम मधुरकों के दीर्घकालिक उपयोग पर चेतावनी जारी की है और कहा है कि इनके नियमित सेवन से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम हो सकते हैं। एफ डी ए ने भी एस्पार्टेम जैसे मधुरकों के उपयोग की पुनर्समीक्षा की है और इसे सीमित मात्रा में उपयोग के लिए ही मंजूरी दी है। एक ओर जहां कृत्रिम मधुरक कई दृष्टि से लाभदायक हैं वहीं इनके सेवन से अनेक हानियां भी है।कम कैलोरी,चीनी की तुलना में कृत्रिम मधुरक में कम या न के बराबर कैलोरी होती है, जिससे यह वजन कम करने और शर्करा नियंत्रण (शुगर कंट्रोल )में मदद कर सकता है।

डायबिटीज़ के लिए विकल्प,मधुमेह के रोगियों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है क्योंकि यह रक्त शर्करा (ब्लड शुगर)स्तर (लेवल)को नहीं बढ़ाता।मिठास की कमी: कृत्रिम मधुरक मिठास की कमी के लिए उपयोगी हो सकते हैं। दंत स्वास्थ्य (डेंटल हेल्थ)चीनी के मुकाबले कृत्रिम मधुरक दांतों में कैविटी और प्लाक बनने की संभावना को कम करता है।।मधुमेह से पीड़ित रोगियों के लिए कृत्रिम मधुरक उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन उनका सेवन सीमित मात्रा में और चिकित्सक (डॉक्टर)की सलाह से करना चाहिए। स्वास्थ्य समस्याएं, कुछ अध्ययनों में कृत्रिम मधुरक के सेवन से स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि कैंसर, एलर्जी और पाचन समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है।आदत बन सकती है,कृत्रिम मधुरक का अधिक सेवन आदत बन सकती है और स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।मधुमेह रोगियों के लिए स्टेविया,सुक्रालोज,एस्पार्टेम, सैकरिन उपयुक्त कृत्रिम मधुरक हो सकते हैं।जबकि हाई-फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप,शहद,मेपल सिरप मधुमेह रोगियों के लिए उपयुक्त कृत्रिम मधुरक नहीं हैं।

शोध बताते हैं कि कृत्रिम मधुरकों का नियमित सेवन मोटापा, मधुमेह, हार्मोनल असंतुलन और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। आंतों में माइक्रोबायोम असंतुलन होने से पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भ्रांतिपूर्ण लेबलिंग, अधिकांश उत्पादों पर सटीक जानकारी नहीं होती कि इसमें कौन-कौन से मधुरक उपयोग किए गए हैं और किस मात्रा में। विश्वभर में कृत्रिम मधुरकों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, खासकर मधुमेह रोगियों और वजन कम करने के लिए। 2025 तक कृत्रिम मधुरकों का बाजार 15.4 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कृत्रिम मधुरकों की मांग सबसे अधिक है।उत्तर अमेरिका और यूरोप में भी कृत्रिम मधुरकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत में कृत्रिम मधुरकों का बाजार 2025 तक 3.5 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत में मधुमेह और वजन कम करने के लिए कृत्रिम मधुरकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत में कृत्रिम मधुरकों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है।

कृत्रिम मधुरक निम्न उत्पाद श्रेणियों में प्रयुक्त होते हैं

खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ,फार्मास्यूटिकल्स,व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद आदि। कृत्रिम मधुरकों के उपयोग से जुड़ी कई चुनौतियां हैं, जैसे;स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, नियामक ढांचे में बदलाव ,प्रतिस्पर्धा,उपभोक्ताओं की पसंद में बदलाव।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कृत्रिम मधुरकों का बाजार तेजी से बदल रहा है, और कंपनियों को उपभोक्ताओं की पसंद और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखना होगा।

कृत्रिम मधुरकों का नजर यानी उनके प्रभाव को समझने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं: जैसे ;कैंसर का खतरा बढ़ सकता है,मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है,पाचन समस्याएं और एलर्जी हो सकती हैं,न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं (जैसे पार्किंसंस, अल्जाइमर), गर्भावस्था और स्तनपान में समस्याएं हो सकती हैं, अवसाद और चिंता हो सकती है,मूड स्विंग और तनाव हो सकता है, नींद की समस्याएं हो सकती हैं, याददाश्त और एकाग्रता में समस्याएं हो सकती हैं,बच्चों पर व्यवहारिक समस्याएं और एडीएचडी हो सकती है, एलर्जी और अस्थमा हो सकती है,पाचन समस्याएं और विकास में समस्याएं हो सकती हैं,गर्भस्थ शिशु के विकास में समस्याएं हो सकती हैं, स्तनपान में समस्याएं और शिशु के स्वास्थ्य में समस्याएं हो सकती हैं। कृत्रिम मधुरकों की उपयोग की सीमाएं निर्धारित होनी चाहिए।कृत्रिम मधुरकों का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।चिकित्सक (डॉक्टर) की सलाह से सेवन करना चाहिए।प्राकृतिक मिठास का सेवन अधिक करना चाहिए।

उपभोक्ताओं को कृत्रिम मधुरकों के संभावित खतरों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। मीडिया, सोशल मीडिया और हेल्थ कैंपेन के माध्यम से सही जानकारी पहुंचाई जानी चाहिए। सरकार को सभी खाद्य उत्पादों पर स्पष्ट लेबलिंग की अनिवार्यता करनी चाहिए, जिससे उपभोक्ता यह जान सकें कि वे क्या खा रहे हैं। कृत्रिम मधुरकों पर और अधिक विस्तृत शोध की आवश्यकता है ताकि इनके दीर्घकालिक प्रभावों को समझा जा सके और उपभोक्ताओं को सुरक्षित विकल्प प्रदान किए जा सकें।


स्टीविया, गुड़, खजूर का सिरप, और शहद जैसे प्राकृतिक मधुरक विकल्प को बढ़ावा देना चाहिए। ये न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि इनमें पोषक तत्व भी होते हैं। सरकार और नियामक संस्थाओं को कृत्रिम मधुरकों के उपयोग पर सख्त नियम बनाने चाहिए और नियमित रूप से उनकी समीक्षा करनी चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और चिकित्सा संस्थानों में इसके बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि लोग अपने आहार में इन्हें शामिल करने से पहले सही जानकारी ले सकें।

कृत्रिम मधुरक दिखने में भले ही एक बेहतर और स्वास्थ्यप्रद विकल्प लगते हों, लेकिन उनके लंबे समय तक उपयोग से शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। ये “मीठे जहर” की तरह हैं जो स्वाद तो देते हैं लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। कृत्रिम मधुरक का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए और प्राकृतिक मिठास का सेवन अधिक करना चाहिए।
इसलिए, सही जागरूकता, सटीक जानकारी और सही विकल्प का चयन करके ही हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं। जब तक इन पर और अधिक शोध और अध्ययन नहीं हो जाते, हमें इनका उपयोग नियंत्रित और सीमित मात्रा में करना चाहिए। अंततः एक स्वस्थ जीवनशैली और संतुलित आहार ही हमें इन कृत्रिम रसायनों के जाल से बचा सकता है। स्वस्थ विकल्प अपनाना और प्राकृतिक मिठास का उपयोग करना एक बेहतर और सुरक्षित उपाय हो सकता है।

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