What Is Article 142 Explained In Hindi: आर्टिकल 142 क्या है?

Article 142 Kya Hai: भारतीय संविधान का आर्टिकल 142 (Article 142) एक बार फिर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। इसे सुप्रीम कोर्ट की “असाधारण शक्ति” (Extraordinary Powers” of the Supreme Court) और “न्याय की गारंटी” के रूप में जाना जाता है। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने इसे “24×7 काम करने वाली न्यूक्लियर मिसाइल” करार दिया, जिसके बाद यह सोशल मीडिया, समाचार चैनलों और कानूनी हलकों में ट्रेंड करने लगा। अनुच्छेद 142 क्या है, इसका महत्व क्या है, और यह क्यों सुर्खियों में है? आइए विस्तार से जानते हैं।

आर्टिकल 142 क्या है?

What Is Article 142 In Hindi: भारतीय संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेष और असाधारण शक्तियां देता है, ताकि वह किसी भी मामले में “पूर्ण न्याय” (complete justice) सुनिश्चित कर सके। यह अनुच्छेद दो हिस्सों में बंटा है:

  1. आर्टिकल 142(1): सुप्रीम कोर्ट अपनी अधिकारिता के तहत कोई भी डिक्री या आदेश जारी कर सकता है, जो किसी मामले में पूर्ण न्याय के लिए जरूरी हो। ये आदेश पूरे भारत में लागू होते हैं।
  2. आर्टिकल 142(2): सुप्रीम कोर्ट को किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करने, दस्तावेज पेश करने, या स्वयं के अपमान (contempt of court) की जांच और सजा के लिए आदेश जारी करने की शक्ति देता है।

यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को उन परिस्थितियों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है, जहां मौजूदा कानून या प्रक्रिया पर्याप्त नहीं है। यह एक तरह का “न्यायिक जादू” है, जो कोर्ट को कानून के दायरे से परे जाकर भी न्याय देने की ताकत देता है।

आर्टिकल 142 का महत्व

Importance of Article 142: आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को भारत में सबसे शक्तिशाली संस्थानों में से एक बनाता है। इसके कुछ प्रमुख पहलू हैं:

  • लचीलापन: यह कोर्ट को जटिल और असामान्य मामलों में रचनात्मक समाधान निकालने की अनुमति देता है।
  • न्याय की गारंटी: जब कानून या प्रक्रिया में कमी के कारण कोई पीड़ित व्यक्ति न्याय से वंचित हो सकता है, तब यह अनुच्छेद कोर्ट को हस्तक्षेप करने की शक्ति देता है।
  • उदाहरण:
    • भोपाल गैस त्रासदी (1989): सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का उपयोग करके यूनियन कार्बाइड से पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित किया।
    • कोयला खदान आवंटन घोटाला (2014): कोर्ट ने अवैध रूप से आवंटित कोयला खदानों को रद्द करने के लिए इस अनुच्छेद का इस्तेमाल किया।
    • तलाक और वैवाहिक मामले: कई बार कोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक जैसे मामलों में तेजी से फैसले देने के लिए इस शक्ति का उपयोग किया।

आर्टिकल 142 क्यों ट्रेंड कर रहा है?

Why is Article 142 trending: आर्टिकल 142 हाल ही में कई कारणों से चर्चा में है:

  1. उपराष्ट्रपति का बयान:
    • उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आर्टिकल 142 को “24×7 न्यूक्लियर मिसाइल” कहा। उन्होंने इसकी ताकत की तारीफ की, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि इसका इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए, ताकि विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों का अतिक्रमण न हो।
    • उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी। कुछ लोगों ने इसे सुप्रीम कोर्ट की ताकत का प्रतीक माना, जबकि कुछ ने इसे “न्यायिक अतिवाद” (judicial overreach) का संकेत बताया।
  2. हाल के फैसले:
    • सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कई मामलों में आर्टिकल 142 का इस्तेमाल किया, जैसे:
      • पर्यावरण मामलों में, जहां कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त आदेश जारी किए।
      • वैवाहिक विवादों में, जहां कोर्ट ने तलाक या गुजारा भत्ता जैसे मामलों में त्वरित राहत दी।
    • इन फैसलों ने आर्टिकल 142 की प्रासंगिकता को फिर से उजागर किया।
  3. सोशल मीडिया और जनचर्चा:
    • उपराष्ट्रपति के बयान के बाद, सोशल मीडिया पर #Article142 ट्रेंड करने लगा। लोग इस अनुच्छेद को “न्याय का सुपरपावर” और “लोकतंत्र की रक्षा का हथियार” जैसे नाम दे रहे हैं।
    • कानूनी विशेषज्ञों और आम लोगों के बीच इस बात पर बहस हो रही है कि क्या यह शक्ति सुप्रीम कोर्ट को बहुत ज्यादा ताकत देती है, और क्या इसका दुरुपयोग हो सकता है।
  4. न्यायिक सक्रियता बनाम अतिवाद:
    • कुछ आलोचकों का मानना है कि आर्टिकल 142 के जरिए सुप्रीम कोर्ट कई बार विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में दखल देता है, जो संवैधानिक संतुलन के लिए खतरा हो सकता है।
    • दूसरी ओर, समर्थक कहते हैं कि यह अनुच्छेद उन मामलों में जरूरी है, जहां सरकार या कानून नाकाम रहते हैं।

आर्टिकल 142 के फायदे और नुकसान

Advantages and disadvantages of article 142

Advantages of article 142

  • यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी खामियों के कारण अन्याय का शिकार न हो।
  • सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर त्वरित कार्रवाई की अनुमति देता है।
  • सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता और ताकत को मजबूत करता है।

Disadvantages of article 142

  • इसके अत्यधिक उपयोग से “न्यायिक अतिवाद” का खतरा बढ़ सकता है।
  • यह विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों को प्रभावित कर सकता है, जिससे संवैधानिक टकराव की स्थिति बन सकती है।
  • अस्पष्ट दिशानिर्देशों के अभाव में इसके दुरुपयोग की आशंका रहती है।

आर्टिकल 142 कैसे काम करता है

How Article 142 works: आर्टिकल 142 भारतीय संविधान का एक अनूठा प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को “न्याय का अंतिम रक्षक” बनाता है। उपराष्ट्रपति के हालिया बयान और कोर्ट के ताजा फैसलों ने इसे फिर से चर्चा में ला दिया है। यह अनुच्छेद न केवल सुप्रीम कोर्ट की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि इस ताकत का उपयोग कितनी सावधानी से करना चाहिए।

जबकि कुछ लोग इसे लोकतंत्र की ताकत मानते हैं, अन्य इसे संवैधानिक संतुलन के लिए चुनौती के रूप में देखते हैं। आने वाले दिनों में इस पर बहस और तेज होने की संभावना है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस शक्ति का उपयोग नए-नए मामलों में करता रहेगा।

आर्टिकल 142 में संशोधन की प्रक्रिया:

Procedure for amendment of Article 142: भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 में संशोधन करना एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है, क्योंकि यह संविधान का हिस्सा है और सुप्रीम कोर्ट की असाधारण शक्तियों से जुड़ा है। संविधान में किसी भी अनुच्छेद में संशोधन के लिए आर्टिकल 368 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। नीचे विस्तार से बताया गया है कि सरकार को आर्टिकल 142 में संशोधन के लिए क्या-क्या कदम उठाने होंगे:

सरकार आर्टिकल 142 में संशोधन के लिए क्या करना पड़ेगा

What will the government have to do to amend Article 142
  • प्रस्तावना: सरकार को सबसे पहले एक संविधान संशोधन विधेयक (Constitution Amendment Bill) तैयार करना होगा। यह विधेयक आर्टिकल 142 में प्रस्तावित बदलावों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करेगा, जैसे कि इसकी शक्तियों को सीमित करना, दिशानिर्देश जोड़ना, या इसे पूरी तरह संशोधित करना।
  • परिचय: यह विधेयक संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जा सकता है। इसे पेश करने के लिए किसी सांसद या सरकार की ओर से केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा प्रस्ताव लाया जाता है।
  • कैबिनेट की मंजूरी: विधेयक को संसद में पेश करने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल (Cabinet) की मंजूरी जरूरी होती है। इसके लिए सरकार को कानूनी विशेषज्ञों, संवैधानिक विद्वानों और हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करना पड़ सकता है।

संसद में विशेष बहुमत से पारित करना

आर्टिकल 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में अलग-अलग पारित करना होता है। इसके लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होंगी:

  • विशेष बहुमत:
    • विधेयक को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना होगा। इसका मतलब है कि सदन की कुल सदस्य संख्या का दो-तिहाई हिस्सा और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत विधेयक के पक्ष में होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, लोकसभा में 543 सदस्य हैं, तो कम से कम 362 सांसदों का समर्थन चाहिए (बशर्ते सभी उपस्थित हों)।
  • अलग-अलग पारित करना: दोनों सदनों को विधेयक को अलग-अलग पारित करना होगा। अगर एक सदन में बदलाव किए जाते हैं, तो दूसरे सदन को भी संशोधित विधेयक पर सहमति देनी होगी।
  • सत्र की आवश्यकता: यह प्रक्रिया आमतौर पर संसद के नियमित सत्र (मानसून, शीतकालीन, या बजट सत्र) के दौरान पूरी की जाती है।

राज्यों की मंजूरी (यदि आवश्यक हो)

  • संघीय ढांचे से संबंधित मामला: आर्टिकल 142 सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों से जुड़ा है, जो केंद्र सरकार के दायरे में आता है। इसलिए, सामान्य तौर पर इसके लिए राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ती।
  • विशेष परिस्थितियां: अगर संशोधन से संविधान का संघीय ढांचा (जैसे केंद्र-राज्य संबंध, न्यायिक स्वतंत्रता, या मूल संरचना) प्रभावित होता है, तो आर्टिकल 368(2) के तहत कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी लेनी पड़ सकती है। इसके लिए प्रत्येक राज्य विधानसभा को साधारण बहुमत से विधेयक को पारित करना होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: चूंकि आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों से जुड़ा है, यह संशोधन संभवतः “मूल संरचना सिद्धांत” (Basic Structure Doctrine) के तहत सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में आएगा। कोर्ट यह जांच सकता है कि संशोधन संविधान की मूल संरचना (जैसे न्यायिक स्वतंत्रता) को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा।

राष्ट्रपति की सहमति

  • एक बार जब विधेयक दोनों सदनों (और यदि आवश्यक हो तो राज्यों) से पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है, क्योंकि आर्टिकल 368 के तहत उनके पास विधेयक को रोकने या वीटो करने का अधिकार नहीं है।
  • राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक कानून बन जाता है, और आर्टिकल 142 में संशोधन प्रभावी हो जाता है।

संभावित चुनौतियां और विचार

आर्टिकल 142 में संशोधन की प्रक्रिया में कई व्यावहारिक और कानूनी चुनौतियां आ सकती हैं:

  • राजनीतिक सहमति: संशोधन के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत चाहिए, जो सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन के लिए मुश्किल हो सकता है, खासकर अगर विपक्ष इसका विरोध करता है।
  • न्यायिक समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले (1973) में “मूल संरचना सिद्धांत” की स्थापना की थी। अगर संशोधन से सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता या न्यायिक शक्तियों पर असर पड़ता है, तो कोर्ट इसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
  • सार्वजनिक और कानूनी बहस: आर्टिकल 142 को सुप्रीम कोर्ट की ताकत का प्रतीक माना जाता है। इसके संशोधन का प्रस्ताव कानूनी विशेषज्ञों, बार काउंसिल, और नागरिक समाज में तीखी बहस छेड़ सकता है।
  • संतुलन की जरूरत: सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि संशोधन से सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां कमजोर न हों, और साथ ही विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों का भी अतिक्रमण न हो।

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