न्याज़िया
मंथन। जी हां आपका वो काम जिससे आपका जीवन यापन होता है रोज़ी , रोटी ,कमाने का ज़रिया! अगर नहीं हैं तो अपनी आजीविका तलाशने से पहले ,खुद को समझने की कोशिश करना ज़रूरी है अपने मन को टटोलना ख़ुद को समझना ,हम क्या चाहते हैं ज़िंदगी से ये भी और वो भी वक़्त रहते, नहीं !
वक्त की अहमियत
वक़्त का सही होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि हमारा जीवन समय अनुसार परिवर्तिति होता है अलग अलग पड़ाव में ढलता है हमारे दायित्व बढ़ते जाते हैं ,हालांकि उम्र के साथ जो दायित्व बढ़ते हैं उनमें अपना आनंद भी होता है लेकिन अगर हम अपनी आजीविका से खुश नहीं हैं तो हमारी जीवन शैली हमारे हिसाब से नहीं रह पाती और हमें हर पल ये बात परेशान करती रहती है इसलिए जल्द से जल्द अपनी खुशी तलाशे।
हमारी खुशी कहां छुपी होती है
खुशी अक्सर आपके उन कामों में होती है जिनमें आपकी रुचि हो,जिसे करके आपको खुशी महसूस होती हो और ज़ाहिर है जिस काम को आप खुश होकर करते है वो बेहतर भी कर पाते हैं तो अगर हम उसे पूरी शिद्दत से मन और वक्त लगाकर करने लगें तो वो हमारी आजीविका का साधन भी बन सकता है पर इसके लिए सबसे पहले खुद को पहचानना बहुत ज़रूरी है।
क्यों ये सोचना कि हम किसी काम के नहीं
पहले तो खुद को नकारा समझना बंद करना होगा ,कोई खूबी अपनी ढूंढनी होगी और ऐसा हो नहीं सकता कि हममें कोई विशेषता न हो क्योंकि हर इंसान के अंदर कुछ अच्छा या बुरा दोनों होता है बस ज़रूरत होती है अपनी खामियों और खूबियों को पहचानने की ।
कमियों को मिटाना और खूबियों को निखारना ही ज़िंदगी की रवानी है
जितना हो सके अपनी कमियों को दूर करें और अपनी खूबियों पर ग़ौर करते हुए उसे और निखारने की कोशिश करनी चाहिए ,यही ज़िंदा होने की निशानी है फिर अपनी सही दिशा की ओर आगे बढ़ते हुए अपने लिए उचित रोज़गार का चयन करना चाहिए क्योंकि ये चुनाव पूरी ज़िंदगी हमारे साथ रहता है हमारी पहचान बनके।
किसी के लिए काम करना हमारी मजबूरी न हो
रोज़गार के ज़रिए हम जो काम करते हैं वो दूसरों के लिए किया जाने वाला वो काम नहीं है जिसके बदले हमें पैसे मिलते हैं ,या इसे करना हमारी मजबूरी है बल्कि ये वो काम भी होना चाहिए जिससे हमें ख़ुशी मिलती है और ख़ुशी एक ऐसा सिलसिला है जो एक दूसरे तक पहुंच कर बढ़ती ही जाती है ,फिर ज़िम्मेदारियां हमें बोझ नहीं लगातीं बल्कि उन्हें निभाने में हमें खुशी होती है और वो तो खुश होता ही है जिसके लिए हम अपनी मर्ज़ी से दिल से खुश होकर कुछ करते हैं ।
तो ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पर ,सोचिएगा की कहीं आपका हुनर ही ,आपकी रोज़ी तो नहीं है और वो भी ऐसी कि उसके लिए आपको किसी से रोज़गार मांगने की भी ज़रूरत न हो आप उस खूबी या कला के साथ खुद अपना व्यवसाय खड़ा कर सकते हों और कई लोगों को रोज़गार भी दे पाएं। फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।