न्याज़िया बेगम, मंथन/ कल की एक ख़ुशी का उस लम्हे का जिसमें हमें खुशियों का सामान जुटाना है अपने लिए, अपने अपनों के लिए पर क्या ये सही है? क्या उस ख़ुशी के बाद अगली किसी खुशी की चाहत हमारे दिल में नहीं जागेगी नहीं न क्योंकि ज़िंदगी तो तमन्नाओं का बाज़ार है तो फिर क्यों? आज हम सोते जागते उस एक दिन का सपना देखते हैं और उसकी चाहत में अनगिनत उन खुशियों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं जो हर पल हमारी राहों में बिछी रहती हैं जी हां ये वो छोटी छोटी खुशियां हैं जिन्हें अगर हम महसूस कर लें तो ये हमारे अंधेरे रास्तों को भी रौशन कर देती हैं ,हमारी नीरस ज़िंदगी में रंग भर देती हैं।
शायद ये हुनर सीखना बहुत ज़रूरी भी है
इन्हें ढूंढना इतना मुश्किल भी नहीं है क्योंकि ये हर पल में मौजूद हैं ,शाम ओ सहर में हैं अपनों की मुस्कुराहट में हैं बशर्ते एक लम्हा हो हमारे पास इन्हें आंखों से दिल में उतार लेने का, तो कोशिश कर सकते हैं ? दो पल के जीवन से एक उम्र चुराने की , शायद ये हुनर सीखना बहुत ज़रूरी भी है क्योंकि आने वाले वक्त में हम भी रहेंगे या नहीं ,कोई नहीं जानता क्या पता , हम किसी को देखने को तरस जाएं या कोई हमारे लिए तरस जाए तो बस कोशिश करना है कि ऐसी नौबत न आए, हर पल को हम दिल खोल कर जी सके।
हम अपने हालातों से थक जाते हैं
लेकिन इस राह में अपने काम को या प्रोफेशन को बोझ जैसे ढोना हमें कमज़ोर कर देता है ज़ाहिर है ऐसा तब होता है जब उसमें हमारा दिल नहीं लगता , अपनी मर्ज़ी का काम चुनने के बाद भी, कभी कभी हम अपने हालातों से थक जाते हैं क्योंकि जब हमें जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वो नहीं मिलता भले ही वो वक्त क्यों न हो।
कौन से समझौते हैं,जो हम कर सकते हैं
फिर एक सवाल आता है कि क्या खुश रहने के लिए ,जी भर के जीने के लिए ,अपने आपको भूल जाना ज़रूरी है ?शायद नहीं बल्कि याद रखना ज़रूरी है कि हम कौन हैं? किसके लिए हैं ? कौन से समझौते हैं,जो हम कर सकते हैं और कौन से नहीं कर सकते हैं क्योंकि कुछ चीज़ें हमारी ज़िंदगी में बहुत अहम होती हैं उन्हें दांव पे लगाया ही नहीं जा सकता , जिस पैसे के लिए हम दिन रात मेहनत करते हैं वो पैसा भी हर कमी नहीं पूरी कर सकता,बस इसलिए कि हम इंसान हैं मशीन नहीं हमें सुकून चाहिए ,इज़्ज़त और मोहब्बत भी चाहिए ये हमारी बुनियादी ज़रूरतें हैं। सोचिएगा ज़रूर इस बारे में ,फिर मिलेंगे मंथन की अगली कड़ी में।