Site icon SHABD SANCHI

प्राचीन गोदना कला अब ट्रेंडी टैटू: परंपरा से पॉप कल्चर तक का सफर

Tattoo Culture History

Tattoo Culture History

Tattoo Culture History: मानव सभ्यता के आदिकाल से ही शरीर पर चिह्न बनाना केवल सजावट का माध्यम नहीं रहा, बल्कि वह संस्कृति, आस्था और पहचान का गहरा प्रतीक रहा है। भारत के जनजातीय समुदायों से लेकर मध्य एशिया और अफ्रीकी जनजातियों तक, गोदना या टैटू कला की एक समृद्ध परंपरा रही है। भारत में विशेषकर बुंदेलखंड, विंध्य क्षेत्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पूर्वोत्तर राज्यों की आदिवासी महिलाएं और पुरुष गोदना को सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के रूप में अपनाते आए हैं।

गोदना केवल श्रृंगार नहीं था, यह स्त्री की विवाहित स्थिति, कबीले की पहचान, धार्मिक आस्था, शौर्यगाथा या जीवन की खास घटनाओं व अपनों के प्रति स्नेह प्रदर्शन का एक स्थायी प्रतीक हुआ करता था। इस कला में नीलकंठ, फूल, बिंदी, मोरपंख, सूरज, बेल-बूटे, देवी-देवताओं के चित्र व अपनों के नाम गुदवाने के परंपरागत रही है ये हम सभी भलीभांति जानते हैं।

प्राचीन समय में इसे नींबू, पीली-लाल मिट्टी,कालिख,हरे पत्ते और कांटेदार सुइयों से त्वचा में उतारा जाता था। यह प्रक्रिया दर्दनाक जरूर थी पर भावनात्मक रूप से अमूल्य मानी जाती थी। जबकि आधुनिक भारतीय में पहले तो गोदना के नमूने बदले और अब डिजिटल दौर में गोदना कला ट्रेंडी टेटू बना चुका है । आज इस लेख में इसी ख़ास विषय के विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा है लेकिन सभी बिंदुओं को क्रमबद्ध लेख में शामिल करते रहेंगे।

अब गोदना बना टैटू – परंपरा से ट्रेंड तक

आज वही गोदना कला फैशन इंडस्ट्री में ‘टैटू’ के रूप में पुनर्जन्म ले चुकी है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज स्टूडियो हैं, आधुनिक मशीनें हैं, रंगों की भरमार है, और डिजाइनों का ट्रेंड ग्लोबल हो गया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आधुनिक टैटू डिज़ाइनों में पारंपरिक मोटिफ्स और ट्राइबल डिज़ाइनों की वापसी हो रही है, जो यह साबित करता है कि जड़ें कभी मुरझाती नहीं बल्कि इन्हें जब भी पानी खाद से सींचा जाए अपने अस्तित्व के साथ कभी भी लहलहा उठती हैं।

गोदना का ऐतिहासिक महत्व

वर्तमान टैटू ट्रेंड्स में परंपराओं की वापसी

टैटू बनवाने से पहले रखें ध्यान

सांस्कृतिक पुनर्पाठ – टैटू सिर्फ फैशन नहीं, पहचान है

विशेष :- टैटू आज सिर्फ एक स्टाइल स्टेटमेंट नहीं, बल्कि पुरखों की परंपरा और आधुनिक अभिव्यक्ति का संगम बन चुका है। प्राचीन गोदना कला आज भी जिंदा है , नए रूप, नए रंग और नई सोच के साथ और जब कोई युवा अपने शरीर पर “भील देवी” का टैटू गुदवाता है या “मोरपंख” का पारंपरिक डिज़ाइन चुनता है, तो वह दरअसल अपनी जड़ों से जुड़ने का एक सशक्त प्रयास कर रहा होता है।

Exit mobile version