Ancient Shiv Temple Rewa | रीवा जिले में स्थित अतिप्राचीन शिवमंदिर, जहाँ दर्शन मात्र से पूरी होती है हर मनोकामना

Ancient Shiv Temple Rewa, Rewa Tourist Places In Hindi

Ancient Shiv Temple Rewa, Rewa Tourist Places In Hindi | रीवा से करीब 15 किलोमीटर दूर पर एक गाँव है खजुहा(महसाँव) जो अपने पान के बरेजों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन यहाँ की प्रसिद्धि का एक कारण और है, यहाँ अति प्राचीन कलचुरी कालीन शिव जी का मंदिर है जिसे ढड़ेस्सर नाथ (ढुन्ढेश्वरनाथ) मंदिर कहते हैं। रीवा जिले में स्थित अतिप्राचीन शिवमंदिर, जहाँ दर्शन मात्र से पूरी होती है हर मनोकामना।

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का निर्माण सम्भवतः त्रिपुरी के पराक्रमी कलचुरी शासक लक्ष्मीकर्ण (कर्ण डहरिया ) जिसने त्रिकलिंगाधिपति और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी उसकी बहन ढुन्ढेश्वरी देवी ने करवाया था। पास में कलचुरियों के समय का सुप्रसिद्ध नगर गोरगी-रेहुता भी है जहाँ पर प्राचीन दुर्ग के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इस दुर्ग का निर्माण कर्ण ने ही करवाया था,अब यह केवल एक गाँव है जो रीवा के गुढ़ तहसील के अंतर्गत आता है। कलचुरियों के समय में गोरगी अत्यंत प्रसिद्ध नगर रहा है,यहाँ एक शैव्य मठ भी था, कलचुरी शैव्य थे काशी के सुप्रसिद्ध विश्वेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण और काशी को शैव्य तीर्थ बनाने का श्रेय भी इन्हीं हैहयवंशी क्षत्रियों को जाता है। गोरगी में कई कलचुरी नरेशो के अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं जो छत्तरपुर के धुबेला स्थित महाराज छत्रसाल संग्रहालय में रखे हुए हैं।

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कनिंघम ने भी देखे थे मंदिर के अवशेष

कनिंघम ने गोरगी की यात्रा की थी और इस मंदिर को देखा था, जिसका जिक्र उन्होंने “रिपोर्ट ऑफ़ ए टूर इन बुंदेलखंड एंड रीवा” में किया है। प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता राखलदास बनर्जी ने भी गोरगी की यात्रा की थी, और इस मंदिर के अवशेष देखे थे,गोरगी के आस पास कलचुरीकालीन प्रस्तर मूर्तियां खूब मिलती हैं, गुढ़ के लेटे हुए भैरव जी विशाल प्रतिमा, रीवा के पद्मधर पार्क में स्थिति हर-गौरी की प्रतिमा और रीवा के किले का पूर्वी द्वार (पुतरिहा दरवाजा )भी कलचुरीकालीन अवषेशों से प्राप्त हुए हैं।

मंदिर का स्थापत्य

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ के शिवलिंग के बारे में माना जाता है यह स्वयंभू है, मंदिर प्रांगण में बहुत सारी प्रस्तर प्रतिमाएँ और मूर्तियाँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं, इनमें से ज्यादातर खंडित हैं और लोगों की आस्था का केंद्र हैं। मूर्तियों में देव और यक्ष प्रतिमाएं प्रमुखतः हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं। नागर शैली में बना हुआ मूल मंदिर तो अभी शेष नहीं हैं पर इसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं जो थोड़े से नीचे का भाग बचा हुआ है उसी के ऊपर नया मंदिर बना दिया गया है, नए मंदिर का निर्माण इन्हीं कलचुरियों के वंशज डिहिया के ठाकुर स्वर्गीय नन्हे सिंह जी ने कुछ वर्ष पहले करवाया था। लेकिन सच में यह कभी बहुत खूबसूरत मंदिर रहा होगा। कलचुरीकालीन स्थापत्य का वैभव उनके निकटतम प्रतिद्वंदी और पड़ोसी जेजाकभुक्ति के चंदेल शासकों से कमतर नहीं था।

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लोक आस्था का केंद्र

भगवान शिव के मंदिर के जलाभिषेक के बाद जो पानी बाहर निकलता है वह एक छोटे से कुंड में आता है जहाँ अतिप्राचीन तपस्यारत देवी पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा है। जल देवी प्रतिमा पर आकर गिरता है। ऐसा लोग बताते हैं की मंदिर के अंदर एक सुरंग भी है जो गोरगी के दुर्ग तक जाती थी, लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। मंदिर के बाहर एक छोटी सी बावली और कुंड है जो उस समय जल आपूर्ति करने के स्त्रोत रहे होंगे, बावली के कई पत्थरों में डमरू जैसे चित्र बने हैं। पास में रामहर्षनदास कुंज है जहाँ सीता- राम का मंदिर है यहाँ की हर वर्ष होने वाली राम-लीला अत्यंत प्रसिद्ध है साथ में एक संस्कृत विद्यालय भी है। जहाँ कई बटुक विद्यार्थी संस्कृत अध्ययन करते हैं।

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