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Ancestor Fortnight 2025 : श्राद्ध की विधिवत प्रक्रिया की संपूर्ण मार्गदर्शिका

Ancestor Fortnight 2025 – श्राद्ध की विधिवत विधि की एक संपूर्ण मार्गदर्शिका – भारतीय सनातन संस्कृति में श्राद्ध कर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करने का माध्यम भी है। श्राद्ध से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, और कुल में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इस लेख में हम श्राद्ध करने की पूरी विधि को स्टेप-बाय-स्टेप सरल भाषा में समझेंगे, ताकि आप इसे घर पर सही ढंग से कर सकें।

श्राद्ध क्या है – What is Shraddha ?
श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों (पूर्वजों) के लिए अर्पण करना। यह क्रिया वैदिक परंपरा पर आधारित है जिसमें जल, अन्न, मंत्र और दान के माध्यम से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान की जाती है।

श्राद्ध करने का समय और स्थान
श्राद्ध पक्ष – भाद्रपद पूर्णिमा के बाद आश्विन मास की अमावस्या तक (लगभग 15 दिन) पितृ पक्ष मनाया जाता है।

पूर्व तैयारी – Preparation for Shraddha

व्यक्तिगत तैयारी – प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें। पुरुष पारंपरिक धोती पहनें, महिलाएं सादा वस्त्र धारण करें। उपवास या अन्न का त्याग कर श्राद्ध करें। श्राद्ध कर्म और ब्राह्मण भोज व दान-पुण्य के बाद परिजन भोजन करें।

स्थान की शुद्धि – जिस स्थान पर श्राद्ध करना है, उसे गोमूत्र या गंगाजल से पवित्र करें। कुशा, चंदन, दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, थाली आदि सामग्री रखें। आवश्यक सामग्री की सूची काले तिल, जौ, कुशा, चावल, दूध, दही, घी, शहद, चीनी, फल, फूल एकत्र करें। पिंड बनाने हेतु चावल का आटा और तिल रखें ब्राह्मण भोज हेतु खीर, पूड़ी, सब्ज़ी, मिठाई आदि एवं दान सामग्री में वस्त्र, फल, दक्षिणा, अनाज भी पूजा स्थल पर रखें और दान से पहले उस सामग्री की भी पितरों के निमित्त संकल्प करें फिर दान करें।

श्राद्ध की विधिवत प्रक्रिया Step-by-Step Process
आचमन और संकल्प – Aachman and Sankalp) – हाथ में जल लेकर आचमन करें और फिर संकल्प लें कि “मैं अमुक { अपने गोत्र का और स्वयं का नाम लें } – गोत्र का अमुक नामधारी, अपने पितरों की तृप्ति हेतु आज यह श्राद्ध कर रहा हूं ।”

तर्पण विधि – जल अर्पण
शुभ समय – सुबह 11 बजकर 30 मिनट से लेकर ,रात्रि के 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
श्राद्ध कर्म की विधि – श्राद्ध कर्म काण्डी पुरोहित के सानिध्य में कुशा के आसन पर बैठें। दाहिने हाथ में जल, काले तिल, जौ और कुशा लेकर पूर्वजों का स्मरण करें। तीन बार जल अर्पित करें – पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए। मंत्र पढ़ते न बने तो पंडित से उच्चारित करवाएं और सुनें।
“ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य अमुकगोत्रस्य अमुकशर्मणः प्रेतस्य अमुकशर्मणः अत्र भौतिक शरीरस्य तृप्त्यर्थे इदं तिलमिश्रितं जलं दत्तं। स्वधा नमः।”

पिंड दान – Pinda Daanपिंड बनाने की विधि

पिंडदान का महत्व – पिंड पितरों के प्रतीकात्मक भोजन हैं,इन्हें अर्पित करना उनकी आत्मा को शांति देता है।

ब्राह्मण भोज – Brahmin Bhoj का महत्व – ब्राह्मणों को भोजन कराना ऐसा माना जाता है मानो पितरों को स्वयं भोजन कराया हो।

ब्राह्मण भोज की विधि – एक या अपनी सामर्थ्य के अनुसार अधिक ब्राह्मणों को आमंत्रित करें। उनके चरण धोकर, आदर सहित भोजन कराएं। उन्हें दक्षिणा, वस्त्र, फल आदि दान दें। तत्पश्चात उनका आशीर्वाद लेते हुए कहें कि – हे ब्राह्मणों हमारे “पितृ शांति” और कुल की उन्नति हेतु आशीर्वाद दीजिए ।

पंचबलि Panchabali – पांच जीवों को भोजन
पांच जीव
गाय – समृद्धि की प्रतीक
कुत्ता – रक्षक
कौआ – पितरों का प्रतीक
चींटी – सूक्ष्म जीवों का प्रतिनिधित्व
देवता – दिव्य शक्तियों के लिए

पंचबली भोग विधि – श्राद्ध का भोजन इन पांचों को अर्पित करें। विशेष रूप से कौए को दिया गया भोजन पितरों के लिए होता है।

श्राद्ध के दौरान विशेष नियम

यदि तिथि ज्ञात न हो तो क्या करें ?
उत्तर – ऐसी स्थिति में सर्वपितृ अमावस्या (2025 में 21 सितंबर) को श्राद्ध किया जाता है। यह दिन उन सभी पितरों के लिए माना जाता है जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है।

विशेष परिस्थितियों में श्राद्ध
संतानहीन व्यक्ति का भी श्राद्ध होगा – हां, भाई, बहन, भतीजा, भांजा, भतीजी जैसे निकट संबंधी कर सकते हैं।

क्या महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं – यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, तो स्त्रियां भी श्राद्ध कर सकती हैं। आज के समय में यह स्वीकार्य है।

श्राद्ध विदेश में कैसे करें ?
विदेश में भी घर पर विधिपूर्वक श्राद्ध किया जा सकता है। यदि ब्राह्मण उपलब्ध न हों, तो ऑनलाइन संकल्प के माध्यम से भी तर्पण और पिंडदान किया जा सकता है।

पितृ पक्ष में कौए का महत्व – भारतीय परंपरा में कौए को पितरों का प्रतीक माना गया है। श्राद्ध भोजन का पहला अंश कौए को दिया जाता है। यदि कौआ आकर भोजन ग्रहण करता है, तो यह पितरों की तृप्ति का संकेत माना जाता है।

श्राद्ध से प्राप्त लाभ

आधुनिक जीवन में श्राद्ध का स्थान
आज के समय में शहरी जीवन, व्यस्तता और आधुनिकता के बीच कई लोग श्राद्ध कर्म से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, संस्कार और पारिवारिक परंपरा को जीवित रखने के लिए भी श्राद्ध आवश्यक है। अब कई धर्मसंस्थाएं और ऑनलाइन सेवाएं श्राद्ध संपादन के लिए मदद करती हैं। लेकिन मूल भावना श्रद्धा और समर्पण ही है।

विशेष – Conclusion
श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार का प्रतीक है। जब हम श्रद्धा से यह कर्म करते हैं, तो यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बनाता है जो केवल पितरों को नहीं, बल्कि हमारे पूरे वंश को लाभ देता है। हर व्यक्ति को अपने पूर्वजों की स्मृति में यह कार्य पूरी निष्ठा से करना चाहिए, ताकि उनका आशीर्वाद हमेशा परिवार पर बना रहे।

महत्वपूर्ण सुझाव – हर वर्ष पितृ पक्ष में श्राद्ध करना चाहिए। यदि संभव हो तो तीर्थ स्थलों पर पिंडदान और श्राद्ध करना श्रेष्ठ माना जाता है , जैसे गया, प्रयागराज, बद्रीनाथ, पुष्कर आदि।

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