Anant Chaturdashi 2025 Pooja Vidhi In Hindi, Importance- हिंदू धर्म में हर पर्व केवल उत्सव नहीं होता, बल्कि उसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व छिपे होते हैं। गणेश चतुर्थी का समापन जिस दिन होता है, उसी दिन को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन गणेश विसर्जन के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा और अनंत सूत्र धारण करने की परंपरा है। यह सूत्र केवल एक धागा नहीं, बल्कि सौभाग्य, समृद्धि और भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का प्रतीक है। अनंत सूत्र की महिमा इतनी प्रबल मानी गई है कि इसका उल्लेख महाभारत काल से लेकर ऋषि परंपराओं तक मिलता है। इस लेख में हम अनंत चतुर्दशी के महत्व, अनंत सूत्र की कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इसके आध्यात्मिक लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अनंत चतुर्दशी क्या है?
अनंत चतुर्दशी, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन गणेश उत्सव का अंतिम दिन होता है, जब श्रद्धालु गणपति बप्पा का विसर्जन करते हैं। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है और कलाई पर “अनंत सूत्र” बांधा जाता है।
भगवान गणेश को विदाई – दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव का समापन विसर्जन के साथ होता है।
विष्णु पूजा – भगवान विष्णु को इस दिन विशेष व्रत और पूजा द्वारा प्रसन्न किया जाता है।
अनंत सूत्र धारण – पुरुष दाहिने हाथ में और महिलाएँ बाएँ हाथ में अनंत सूत्र बांधती हैं।
अनंत सूत्र का महत्व –
भगवान विष्णु का आशीर्वाद – अनंत सूत्र भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का प्रतीक है। इसे धारण करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
सौभाग्य और समृद्धि – यह सूत्र जीवन में आने वाले दुःख, दुर्भाग्य और विपत्तियों को नष्ट कर सौभाग्य को बढ़ाने वाला माना गया है।
रक्षा कवच – धागे में 14 गांठें लगाई जाती हैं, जो 14 लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं। यह धागा जीवन को दुर्भाग्य और नकारात्मक शक्तियों से बचाने वाला रक्षा सूत्र है।

अनंत सूत्र से जुड़ी कथाएं
महाभारत और द्रौपदी की कथा – महाभारत काल में जब पांडव अपना सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की शरण ली। भगवान ने उन्हें अनंत सूत्र धारण करने का उपाय बताया। इसके प्रभाव से पांडवों का दुर्भाग्य समाप्त हुआ और उन्हें पुनः अपना राज्य प्राप्त हुआ।
ऋषि कौंडिन्य की कथा – एक प्रचलित कथा के अनुसार, महान ऋषि कौंडिन्य ने अपनी पत्नी के आग्रह पर यह व्रत किया। उन्होंने अनंत सूत्र धारण किया और शीघ्र ही उनका दुर्भाग्य समाप्त होकर उन्हें अपार धन-वैभव प्राप्त हुआ।
भगवान कृष्ण की सलाह – महाभारत के अनुसार, भगवान कृष्ण ने स्वयं पांडवों को इस व्रत का पालन करने की सलाह दी थी। तभी से यह व्रत मानव जीवन में उत्थान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
14 -विष्णु लोकों के नाम और अनंत सूत्र – अनंत चतुर्दशी का संबंध केवल व्रत और पूजा से ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की रचना से भी जुड़ा है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने 14 लोकों की रचना की थी – भूः लोक ,भुवः लोक,स्वः लोक,महः लोक,जनः लोक,तपः लोक,सत्य लोक,अतल लोक,वितल लोक,सुतल लोक,तलातल लोक,महातल लोक,रसातल लोक और
पाताल लोक की इसी दिन भगवान विष्णु ने रचना की थी। विशेष यह की अनंत सूत्र में बांधी जाने वाली 14 गांठें इन्हीं 14 लोकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
पूजा विधि – प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें,पूजा स्थल पर भगवान विष्णु और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
भगवान विष्णु को शुद्ध जल, पंचामृत, पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
अनंत सूत्र को पूजा में रखकर मंत्रोच्चार के साथ धारण करें। इस बात का ध्यान रहे की अनंत सूत्र पुरुष दाहिने हाथ में और महिलाऐं बाएं हाथ में अनंत सूत्र बांधें।

शुभ मुहूर्त (अनंत चतुर्थी 2025 के लिए)
- पूजा का श्रेष्ठ समय – सुबह 8:00 बजे से 11:30 बजे तक
- विसर्जन का समय – दोपहर 2:00 बजे से सूर्यास्त तक (स्थानीय पंचांग के अनुसार समय में अंतर हो सकता है)
अनंत सूत्र के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ
- लाल रंग का सूत्र ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक है।
- यह कलाई पर बांधे जाने से शरीर में संतुलन और आत्मविश्वास बढ़ाता है।
- धार्मिक दृष्टि से यह मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- अनंत सूत्र व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और मानसिक तनाव से दूर करता है।
गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी का संगम
अनंत चतुर्दशी केवल भगवान विष्णु की पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह दिन गणेशोत्सव का भव्य समापन भी है। विसर्जन के समय भक्त “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारे लगाते हुए उन्हें अगले वर्ष पुनः आने का निमंत्रण देते हैं।
विशेष – अनंत चतुर्दशी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि जीवन की सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का सूत्र है। यह हमें सिखाती है कि ईश्वर के अनंत स्वरूप की आराधना से हर विपत्ति समाप्त हो सकती है। महाभारत की द्रौपदी से लेकर ऋषि कौंडिन्य तक, इस व्रत ने हर युग में लोगों का मार्गदर्शन किया है। आज भी जब भक्त गणेश विसर्जन के साथ अनंत सूत्र धारण करते हैं, तो यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि विश्वास और आस्था का बंधन होता है।