An inspiring story in relationships – बिखर चुके रिश्तों को समेटती कहानी – तलाक… एक ऐसा शब्द जो दो लोगों के रिश्ते को कानूनी रूप से तोड़ देता है। लेकिन क्या रिश्ता सिर्फ कागज़ के टुकड़े से तय होता है? क्या प्यार और परवाह एक दस्तख़त के बाद खत्म हो जाते हैं? यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन इसमें हर उस व्यक्ति का दर्द और सीख छिपी है, जिसने कभी रिश्ते में दरार का दर्द सहा है। इस कहानी का उद्देश्य किसी के व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी करना नहीं, बल्कि समाज को यह सिखाना है कि रिश्तों को निभाने के लिए समझ, संवाद और भावनाओं की कितनी अहमियत होती है।
पढिए पूरी सच्चाई की कहानी
तलाक की सुनवाई पूरी हुई। पति कोर्ट से बाहर निकला और एक ऑटो में बैठ गया – संयोग देखिए कि उसकी पूर्व पत्नी रौनक भी उसी ऑटो में आ बैठी। पति ने एक कातर नज़र से रौनक को देखा। दस साल का साथ एक झलक में आंखों के सामने घूम गया। रौनक ने बुझी मुस्कान के साथ कहा-“बस अड्डे तक आख़िरी सफ़र आपके साथ करना चाहती हूं।”
पति बोला – “एलिमनी की रकम दो-तीन महीने में दे दूंगा। घर बेच दूंगा… तेरे लिए ही तो बनाया था। तू ही जिंदगी में नहीं रही, तो घर का क्या करूंगा।”
रौनक ने तुरंत कहा -“घर मत बेचना। मुझे पैसे नहीं चाहिए, मैं प्राइवेट जॉब कर रही हूं। मेरा और मुन्ने का गुज़ारा हो जाता है।” इतने में ऑटो चालक ने अचानक ब्रेक मारे, रौनक का चेहरा सामने की रेलिंग से टकराने ही वाला था कि पति ने झटके से उसकी बांह पकड़कर रोक लिया। रौनक की आंखें नम हो गईं। उसने पति की आंखों में देखते हुए कहा -“अलग हो गए, मगर परवाह करने की आदत नहीं गई आपकी।” पति चुप रहा।
रौनक की आंखों से आंसू छलक पड़े- “एक बात पूछूं ?” – उसने रोते हुए कहा, “क्या ?” – पति ने नजर उठाई। “दो साल हो गए अलग रहते हुए…मेरी याद आती थी क्या ?” पति ने गहरी सांस ली और कहा -“अब बताने से भी क्या फायदा ? अब तो सब खत्म हो गया न। तलाक हो चुका है।” रौनक सिसकते हुए बोली -“दो सालों में एक बार भी वो नींद नहीं आई जो आपके हाथ का तकिया बनाकर सोने से आती थी।” इतना कहकर वह फफक पड़ी।
बस अड्डा आ चुका था, दोनों ऑटो से उतरे लेकिन अचानक आगे बढ़कर ,रौनक के पति ने रौनक का हाथ पकड़ लिया। कई दिनों बाद उसका स्पर्श रौनक की कलाई पर महसूस हुआ तो वह भावुक हो गई। पति ने कहा – “चलो रौनक , अपने घर चलते हैं। “रौनक ने हिचकिचाते हुए पूछा – “तलाक के कागजों का क्या होगा ?”
पति मुस्कुराया – “फाड़ देंगे।” इतना सुनते ही रौनक दहाड़ मार कर पति के गले लग गई, पीछे-पीछे दूसरे ऑटो में आ रहे रिश्तेदार यह सब देखकर चुपचाप बस में बैठ गए और चले गए।
इस कहानी का एक सकारात्मक संदेश
इस कहानी का सबसे बड़ा सबक यही है कि – “रिश्तों को रिश्तेदारों पर मत छोड़ो। खुद निर्णय लो। आपस में बात करो। अपनी गलती हो तो स्वीकार करो।”तलाक या अलगाव हर बार समाधान नहीं होता। कई बार थोड़ी-सी बातचीत, एक सच्ची माफी और रिश्ते को दूसरा मौका देना जिंदगी को फिर से खूबसूरत बना सकता है।
विशेष – यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन इसका संदेश बिल्कुल वास्तविक है। रिश्ते सिर्फ कानूनी कागजों पर नहीं, बल्कि आपसी समझ और भावनाओं पर टिके होते हैं। अगर आपसी बातचीत, विश्वास और परवाह फिर से जाग जाए, तो हर टूटा रिश्ता फिर से जुड़ सकता है।