An Inspirational Story : “पेहरेदार” – सुनसान रात का डरावना साया,निकला रखवाला – रात का सन्नाटा, अस्पताल की भागदौड़ और मां का बेचैन दिल , इन तीनों के बीच फंसी यह सच्ची कहानी हर उस माता-पिता से जुड़ती है जो नौकरी की मजबूरी में अपने बच्चों को अकेला छोड़ने पर मजबूर होते हैं। सुरक्षा के लिए लगाए गए कैमरे ने जो दृश्य दिखाया, उसने पहले डर और फिर गहरी राहत दी। यह कहानी डरावने साये से शुरू होकर समाज में भरोसा जगाने वाली घटना पर खत्म होती है।
मजबूरी और डर की शुरुआत
लखनऊ के गोमती नगर के पास एक छोटा-सा मोहल्ला है। यहां एक नर्स परिवार अपने छोटे से घर में रहता है, पति-पत्नी दोनों जिला अस्पताल में नर्स हैं और रात की ड्यूटी उनकी रोज़मर्रा की हकीकत है। तीन बच्चे – बड़ा बेटा छठी कक्षा में, दूसरा तीसरी कक्षा में और सबसे छोटा मात्र चार साल का। शाम होते ही मां का दिल बेचैन हो उठता था। हर रात बच्चों को सुलाकर उन्हें छोड़कर जाना सबसे मुश्किल पल था। “मम्मी – बेटा अंदर से दरवाज़ा बंद कर लेना ठीक से,” बड़ा बेटा हर बार कहता – “हां मां। वहीं मां भी हिदायत देती और तुम छोटे का ध्यान रखना,” मां हर बार समझातीं और भारी मन से निकल जातीं। दिन तो सबके साथ आराम से कट जाता था, लेकिन रात में दिल में चोर-चोर सी घबराहट बनी रहती – अगर कुछ हो गया तो ? लेकिन कभी एक दूसरे को तो कभी मां बच्चों को और बच्चे मां को समझाते,बस इसी तरह दिन, महीने -साल गुज़र हो रही थी। लेकिन मन का रोज-रोज का खटका खत्म करने लिए अंततः कैमरा का रास्ता निकाला गया ताकि दूर रहकर भी बच्चों पर निगाह रखी जा सके , बावजूद इसके क्या हुआ आइए पढ़ें पूरी कहानी।
सुरक्षा का इंतज़ाम और राहत
एक दिन मां ने पति से कहा, “देखो, हमें कैमरा लगवा लेना चाहिए। ड्यूटी पर रहते हुए कम से कम हम बच्चों को देख तो पाएंगे।” पति ने तुरंत हामी भर दी। अगले दिन घर में सीसीटीवी कैमरे लग गए। मोबाइल ऐप से लाइव फ़ीड देखने की सुविधा थी। दो रातें आराम से गुज़रीं। मां को थोड़ी राहत मिली।
डरावनी तीसरी रात
तीसरी रात, ड्यूटी के बीच अचानक मां का मन बेचैन हुआ तो उन्होंने फ़ोन उठाया और कैमरे की स्क्रीन खोली।
स्क्रीन पर जो दिखाई दिया, उससे उनका खून जम गया।
काले कोट में एक लंबा, दुबला-पतला आदमी चुपचाप दरवाज़ा खोलकर घर में दाखिल हो रहा था। दरवाज़ा टूटा नहीं था – जैसे वह रास्ता जानता हो। मां का गला सूख गया। उन्होंने तुरंत पति को आवाज़ लगाई, “सुनो तुम ,तुरंत घर भागो ,कोई अंदर आ गया है” पति का चेहरा पीला पड़ गया,उन्होंने इंजेक्शन वहीं रोका, मोटरसाइकिल स्टार्ट की और अस्पताल से निकल पड़े।
कैमरे पर डर और सन्नाटा
मां की नज़र स्क्रीन पर जमी थी। उनके हाथ कांप रहे थे।
कैमरे में दिखा – बड़ा बेटा जाग गया। उसने समझा शायद पापा लौट आए हैं। “पापा” उसने धीरे से पुकारा।
वह आदमी कमरे के कोने में खड़ा रहा, फिर धीरे से पास आया, उसने जेब में हाथ डाला। मां चीख पड़ीं – लेकिन आवाज़ बच्चों तक नहीं पहुंच सकती थी तभी छोटा बच्चा रोने लगा।

अप्रत्याशित मोड़
फिर अचानक जो हुआ, उसने सब कुछ बदल दिया।
आदमी ने बच्चों को छुआ तक नहीं। उसने जमीन पर बिखरे खिलौने उठाए, धीरे से अलमारी पर रखे, फिर तीनों बच्चों पर कंबल ठीक से ओढ़ाया। अपनी जैकेट की जेब से एक छोटा तकिया निकाला और चार साल के बच्चे के सिरहाने रख दिया। उसकी हरकतें इतनी धीमी और सलीके से थीं कि लगा जैसे वह बच्चों को जगाना ही नहीं चाहता।
सामना और सच
उसी समय दरवाज़ा जोर से खुला। पति कमरे में घुसे और फ्लोरोसेंट लाइट जला दी, तभी आदमी धीरे-धीरे पीछे मुड़ा। लेकिन वह कोई अजनबी नहीं था वो मोहल्ले का ही चौकीदार था, जो रात में गश्त लगाता था। उसने कहा “दरवाज़ा खुला मिला था, बेटा। सोचा देख लूं कि बच्चे ठीक हैं या नहीं” सो अंदर आ गया….पति की आंखों में राहत के आंसू आ गए। मां स्क्रीन के उस पार से ही रो पड़ीं उस पल डर, गुस्सा और बेचैनी, एक झटके में पिघल गई।
घटना का असर
उस रात के बाद, इस परिवार ने चौकीदार का धन्यवाद किया। उन्होंने उसकी ईमानदारी और संवेदनशीलता की सराहना की,और रोज़ ही बच्चों की निगरानी चौकीदार के हाथ ही सौंपी जाती। बच्चों ने भी खूब समझ लिया कि हर काला साया डरावना नहीं होता और चौकीदार काका से हिल मिल गए। तब से वही साया सबसे बड़ा रक्षक बन गया। उस दिन के बाद मां ने अगली रात ड्यूटी पर जाते समय पहली बार मुस्कान के साथ घर छोड़ा। अब उन्हें पता था कि उनके बच्चे अकेले नहीं हैं कोई है जो उन पर नज़र रखता है।
विशेष – यह कहानी हमें एक गहरा संदेश देती है – डर हमेशा सच नहीं होता। कभी-कभी जो हमें भयावह लगता है, वही हमारे लिए सबसे बड़ी सुरक्षा बनकर आता है। यह परिवार अब भी नाइट ड्यूटी करता है, कैमरा चालू रहता है, लेकिन अब उनका दिल डर से नहीं बल्कि भरोसे से धड़कता है। समाज में ऐसे लोग अब भी हैं जो दूसरों के बच्चों को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत जिंदा है और मुश्किल समय में हमारे आस-पास ऐसे रक्षक मौजूद हैं जिन पर हम भरोसा कर सकते हैं।
कहानी का संदेश
इस कहानी को पढ़ने वाले माता-पिता के लिए सीख यह है कि सुरक्षा इंतज़ाम ज़रूरी हैं, लेकिन बच्चों को सहारा देने वाले इंसानों पर भरोसा रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आज के समय में जब डर और अविश्वास बढ़ते जा रहे हैं, यह घटना उम्मीद की किरण है कि हमारे बच्चे सिर्फ़ हमारे नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी हैं।