An Inspirational Story : रिश्तों की गंभीरता दर्शाती कहानी – “नसीब का खेल”

An Inspirational Story : “नसीब का खेल” – ज़िंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां इंसान के अपने ही फैसले उसकी सबसे बड़ी सज़ा बन जाते हैं। रिश्तों की डोर, भरोसे की ताक़त और सच्चाई की चुप्पी-ये तीनों जब एक साथ गुथ जाते हैं, तो इंसान टूटकर रह जाता है। यह कहानी है राजेश ( काल्पनिक नाम ) नामक एक व्यक्ति की, जिसने अपनी पत्नी की मौत के बाद उस बच्चे को घर से निकाल दिया जो उसका अपना खून निकला। दस साल बाद जब सच्चाई सामने आई, तो उसकी पूरी दुनिया बिखर गई। यह केवल एक परिवार की दास्तान नहीं, बल्कि उन रिश्तों की भी कहानी है जहां प्यार और ज़िम्मेदारी के बीच की खाई इंसान से उसकी सबसे अनमोल पूंजी ,उसका परिवार – छीन लेती है।

प्यार, ज़िम्मेदारी और दूरी – राजेश की ज़िंदगी सामान्य थी, 26 साल की उम्र में उसने मीरा नाम की एक मज़बूत और आत्मनिर्भर महिला से शादी की। मीरा पहले से ही एक 2 साल के बेटे की मां थी। राजेश ने शुरुआत में खुद से कहा – “मैं मीरा को स्वीकार करता हूं और उसके बेटे को भी।” लेकिन सच्चाई यह थी कि उसका स्वीकार करना केवल फ़र्ज़ था, प्यार नहीं। बच्चे अर्जुन के साथ उसका रिश्ता कभी भी भावनाओं पर आधारित नहीं रहा। अर्जुन चुप, आदरपूर्ण और दूर-दूर रहा और राजेश ने भी कभी उस दूरी को मिटाने की कोशिश नहीं की।

मीरा की अचानक मौत और एक कठोर फ़ैसला – ज़िंदगी अचानक बदल गई जब मीरा को स्ट्रोक आया और वह दुनिया छोड़ गई। राजेश अकेला रह गया,लेकिन उसके पास एक 12 साल का लड़का था, जो उसकी ज़िम्मेदारी था। वह ज़िम्मेदारी उसे बोझ लगने लगी। एक महीने तक उसने अर्जुन को घर में रखा। फिर एक दिन उसने ठंडी आवाज़ में कह दिया – “चले जाओ,तुम मेरे बेटे नहीं हो, तुम्हारी मां अब नहीं है-मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं।” अर्जुन यह सुनकर ,न रोया, न विरोध किया। बस चुपचाप अपना पुराना बैग उठाया और दरवाज़े से बाहर चला गया। राजेश को उस वक़्त कोई अपराधबोध नहीं हुआ। न शर्म, न दर्द। बाद में उसने घर बेच दिया, नया शहर चुना, नया व्यापार शुरू किया और नई औरत से शादी कर ली।

बीता हुआ दशक – बिना पछतावे की ज़िंदगी – अगले दस साल तक राजेश ने अर्जुन के बारे में ज़्यादा नहीं सोचा। कभी-कभी जिज्ञासा होती कि वह लड़का अब कहां होगा-लेकिन फिर यह सोचकर खुद को तसल्ली दे देता कि “अगर वह मर भी गया हो, तो शायद यही बेहतर है।” न नया बोझ, न कोई भावनात्मक जुड़ाव। राजेश ने अपने लिए शांति और आराम की ज़िंदगी चुनी।

सच का सामना – आर्ट गैलरी का बुलावा – एक दिन राजेश के पास एक अनजान नंबर से कॉल आया। आवाज़ ने कहा—
“क्या आप जानना चाहेंगे उस इंसान के बारे में जिसे आपने सालों पहले छोड़ दिया था ?” राजेश का दिल धड़कने लगा। नाम सुनते ही सीना कस गया-अर्जुन।उसे एक आर्ट गैलरी की प्रदर्शनी में बुलाया गया। वहां पेंटिंग्स थीं,गहरी, उदास और भावनाओं से भरी। कलाकार का नाम था – T.P.A.और सामने खड़ा था-अब जवान हो चुका अर्जुन।

मां की आख़िरी निशानी और सच्चाई का खुलासा – अर्जुन ने उसे एक पेंटिंग दिखाई, जिसका नाम था “माँ”। उस पेंटिंग में अस्पताल के बिस्तर पर लेटी मीरा थी,हाथ में एक तस्वीर लिए, जिसमें वे तीनों साथ थे। फिर अर्जुन ने कहा-“मरने से पहले मां ने डायरी लिखी थी। उसमें उन्होंने सब कुछ बताया। सच यह है कि मैं किसी और का बेटा नहीं हूं, मैं आपका ही बेटा हूं।”
राजेश के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मीरा गर्भवती थी जब वे मिले थे,लेकिन उसने यह राजेश से छुपा लिया। उसने डर के कारण कहा कि बच्चा किसी और का है-क्योंकि वह चाहती थी कि राजेश उससे सिर्फ़ उसके लिए प्यार करे, बच्चे के लिए नहीं,लेकिन सच्चाई यह थी कि अर्जुन उसका ही बेटा था।

पछतावे का बोझ – राजेश ने अपने ही खून को ठुकरा दिया था। एक बेटे को पिता का प्यार चाहिए था, लेकिन उसे सिर्फ़ नफ़रत और दूरी मिली। वह टूटा हुआ कोने में बैठ गया, आंखों से आंसू बह निकले। उसने कहा-“अगर मुझे पता होता कि तुम मेरा बेटा हो तो मैं…”लेकिन अर्जुन ने ठंडे, दृढ़ स्वर में कहा-“मुझे आपकी पहचान की ज़रूरत नहीं। मैं बस चाहता था कि आप जानें-मां ने आपसे कभी झूठ नहीं बोला,उसने सिर्फ़ प्यार चुना, चुप्पी चुनी। और आपने मुझे ठुकरा दिया।”अर्जुन ने अपनी सफलता और गरिमा से खुद को साबित किया। उसने पिता की पहचान को अस्वीकार कर दिया-लेकिन मां की मोहब्बत को हमेशा अपने दिल में जिंदा रखा।

विशेष –अधूरी मोहब्बत और गहरी सीख – यह कहानी केवल एक पिता-बेटे की नहीं, बल्कि उन रिश्तों की है जिन्हें हम अक्सर हल्के में ले लेते हैं। राजेश ने अपने जीवन का सबसे बड़ा सबक देर से सीखा-प्यार केवल ज़िम्मेदारी निभाने का नाम नहीं, बल्कि दिल से अपनाने का नाम है। मीरा ने डर के कारण सच छुपाया,लेकिन वह सच राजेश की सबसे बड़ी सज़ा बन गया। अर्जुन ने चुप्पी और सहनशीलता से खुद को मज़बूत इंसान बनाया,लेकिन अपने पिता की जगह दिल से कभी स्वीकार नहीं की। राजेश ने वही खोया जिसे पाने के लिए इंसान पूरी ज़िंदगी तरसता है,अपना ही बेटा।

अंतिम संदेश – ज़िंदगी में रिश्ते केवल खून के नहीं होते, बल्कि दिल के भी होते हैं। अगर हम समय रहते उन्हें अपनाना सीख लें, तो शायद हमें पछताना न पड़े। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि-

  • प्यार को कभी फ़र्ज़ समझकर न निभाएं ।
  • रिश्तों को अपनाएं , क्योंकि ज़िम्मेदारी बिना मोहब्बत के बोझ बन जाती है।
  • और सबसे अहम-कभी किसी को यह महसूस न कराएं कि वह “आपका नहीं है।”
    क्योंकि हो सकता है, वह आपके दिल का सबसे बड़ा हिस्सा नि

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