Amrita Pritam, Sahir-Imroz : शब्दों में जीवित अमर प्रेम की कहानी के किरदार से साहिर-अमृता और इमरोज़ – अमृता प्रीतम… एक ऐसा नाम जिसने स्त्रियों की पीड़ा, प्रेम और अकेलेपन को अपने शब्दों में पिरोकर अमर कर दिया। उनका जीवन किसी कविता की तरह था कभी दर्द से भीगा, तो कभी प्रेम से महका। उनकी कहानी में तीन नाम आए तीन चेहरे, जिन्होंने अमृता के जीवन की पूरी कहानी रच दी। जिसमें पहले थे प्रीतम जो उनके पति थे। उनका बचपन में विवाह हुआ, पर समय के साथ यह रिश्ता टूट गया। अमृता को जीवन में अकेलापन मिला, लेकिन भीतर एक ज्वाला थी जिसे अमृता ने अपनी भावनाओं और शब्दों में सहेजना शुरू किया और सृजन किया प्रेम,विरह की पीड़ा और विद्रोह का भी लेकिन उनके हर सृजन में इश्क़ पुरज़ोर रहता।
साहिर लुधियानवी-एक ऐसे शायर जिनकी हर ग़ज़ल में इश्क़ झलकता था।
इसके बाद उनकी ज़िंदगी में आए साहिर लुधियानवी – एक ऐसे शायर जिनकी हर ग़ज़ल में इश्क़ झलकता था। अमृता ने उन्हें पूरे मन से चाहा…यह प्रेम एकतरफा था, पर उतना ही सच्चा और गहरा। कहते हैं जब साहिर उनसे मिलने आते, तो उनके जाने के बाद अमृता उन सिगरेट के अधजले टुकड़ों को संभालकर रख लेतीं। उन टुकड़ों में उन्हें साहिर की मौजूदगी महसूस होती थी। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा “मैंने कभी साहिर से अपना प्रेम नहीं कहा, पर दिल में वो हमेशा बसे रहे…”क्योंकि साहिर शादीशुदा थे और अमृता का प्रेम बस उनकी सांसों में घुला रहा और मौन रहा ,मगर जीवंत। आइए जानते है कुछ और खास पहलू एक ऐसी लेखिका के जीवन की कहानी के जिन्होंने स्त्रियों की पीड़ा और प्रेम के दर्द को कविता में ढाल दिया। साहिर लुधियानवी और इमरोज़ से जुड़ी उनकी कहानी प्रेम की सबसे गहरी परिभाषा है।
प्रेम भी कितना अजीब होता है न, जहां उम्मीद होती है, वहां नहीं मिलता
…..और इसके बाद फिर उनकी ज़िंदगी में आए इमरोज़। इमरोज़ एक प्रसिद्ध चित्रकार और कवि थे। इमरोज़ ने अमृता को सिर्फ़ साथ नहीं दिया, बल्कि उनके सृजन को अर्थ दिया और सार्थक किया । रातों में जब अमृता लिखतीं, इमरोज़ उनके लिए चाय बनाते, उनकी थकान को समझते और बिना कुछ कहे उनका संसार संभालते। प्रेम भी कितना अजीब होता है न, जहां उम्मीद होती है, वहां नहीं मिलता और जहां नहीं होती वहीं आकर जीवन को अर्थ दे जाता है। अमृता को पति से उपेक्षा मिली, साहिर से मोहब्बत मिली मगर बिना मिलन के, और इमरोज़ से मिला सच्चा साथ वो भी बिना किसी शर्त के। इमरोज़ जानते थे कि अमृता साहिर से प्रेम करती हैं, फिर भी उन्होंने कहा- “मैं अमृता को प्रेम करता हूं और हमेशा करता रहूँगा…” उन्होंने प्रेम को निभाकर बताया कि सच्चा प्रेम क्या होता है। अमृता के जीवन के आखिरी दिनों में, जब उनकी आवाज़ कमज़ोर पड़ गई थी, और शरीर थक चुका था, इमरोज़ हर दिन उनके पास बैठते, उनका हाथ थामे रहते। एक दिन उन्होंने पूछा- “कैसी हो, अमृता ?”बिस्तर पर निढाल पढ़ी अमृता ने बहुत ही महीन धीमे स्वर में अमृता बोलीं – “मर रही हूँ…” तो इमरोज़ मुस्कुरा दिए- “ऐसा मत कहो… मैं भी तुम्हारे साथ मर जाऊंगा…”उनके ये शब्द सुनकर अमृता की आंखों से आंसू बह निकले,ये वो थे जो आंसू प्रेम की सबसे सच्ची परिभाषा थे – वो प्रेम जो पाने से नहीं, बल्कि महसूस करने से पूरा होता है।अमृता ने अपने साहित्य में लिखा – साहिर से उन्होंने प्रेम किया, जो अधूरा रहा और इमरोज़ ने प्रेम निभाया, जो अमर हो गया, उन्होंने दिखाया कि बिना छुए, बिना पाए भी किसी को दिल से चाहा जा सकता है। उन्होंने सिखाया कि प्रेम अधिकार नहीं, एहसास है
अमृता के जीवन के वो पहलू जिनपर हर कोई रश्क़ करे
कभी-कभी मैं सोचती हूं की अमृता कितनी सौभाग्यशाली थीं, और हर कोई इन पहलुओं पर रश्क़ करे कि उनकी ज़िंदगी में दो पुरुष आए, जिन्होंने प्रेम को दो दिशाएं दीं, एक ने प्रेम को शब्दों की महक दी, दूसरे ने प्रेम को सन्नाटे में सांस दी। आज के समय में जब प्रेम अक्सर शरीर तक सिमट जाता है, अमृता, साहिर और इमरोज़ की कहानी याद दिलाती है कि सच्चा प्रेम आत्मा से जुड़ता है। आज भी कितनी ही अमृताएं किसी इमरोज़ के इंतज़ार में हैं… कितनी ही आत्माएं किसी साहिर के शब्दों में खुद को खोजती हैं…पर शायद यही जीवन की सच्चाई है कि हर अमृता के भीतर एक साहिर बसता है, और हर साहिर की प्रतीक्षा में एक इमरोज़ जन्म लेता है।
क्योंकि प्रेम… कभी खत्म नहीं होता, बस रूप बदल लेता है।

