America’s revolution of 1955: बात 1955 की है. अमेरिका में नस्लवाद अपने चरम पर था. गोरे लोगों के लिए अलग कानून बनाया गया था और काले लोगों के लिए अलग कानून चलता था, लेकिन एक दिन रोजा पार्क्स नाम की एक अश्वेत महिला एक बस में चढ़ी और उसके साथ जो घटना घटी, उसने अमेरिका के इतिहास को ही बदल कर रख दिया.
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दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में एक दौर ऐसा था, जब नस्लवाद चरम पर था. नस्लभेद के लिए बाकायदा कानून बने हुए थे. गोरे-काले के बीच भेदभाव किया जाता था. गोरों के लिए अलग कानून था और कालों के लिए अलग. गोरों को हर चीज में वरीयता दी जाती थी. फिर साल 1955 में एक बस से एक चिंगारी उठी.
एक अश्वेत महिला ने एक गोरे को बस में अपनी सीट देने से मना कर दिया. इस पर हंगामा हो गया. महिला को जेल तक जाना पड़ा, जिनका नाम था रोजा पार्क्स. हालांकि, वही रोजा नस्लभेद के खिलाफ आंदोलन की अगुवा बन गईं और अंततः अमेरिका को अपने कानून में बदलाव करना पड़ा. आइए जान लेते हैं पूरा किस्सा.
गोरे के लिए सीट छोड़ने के था नियम
अमेरिका में गोरो और कालो के बीच इतना भेद था कि बस की आगे वाली सीट गोरों को मिलती थी और पीछे वाली सीट काले लोगों को। इसके लिए विस्तार से नियम था। यही नहीं , कई बार जब आगे की सीट भर जाती थी तब गोरे पीछे की सीट पर आकर बैठ जाते थे और काले लोगों को उनके लिए सीट छोड़नी पड़ती थी.
तब 42 साल की एक अश्वेत महिला रोजा लुईज मक्कॉली पार्क्स को यह बात बेहद अखरती थी. महिलाएं और पुरुष ही नहीं, अश्वेत बच्चों तक को गोरों के लिए सीट छोड़ते देखकर उनके भीतर गुस्सा पनप रहा था. खुद रोजा को भी कई बार गोरों के लिए अपनी सीट छोड़नी पड़ती थी. यह सब सहन सीमा से बाहर होने लगा तो उन्होंने ठान लिया कि इस नियम को तोड़ेंगी जरूर.
जब रोजा ने सीट से उठने से कर दिया था मना
आपको बता दे कि दिसंबर 1955 में दक्षिण अमेरिकी प्रान्त अलाबामा में रोजा पार्क्स ने हमेशा की तरह मॉन्टगोमरी स्टोर से अपने घर जाने के लिए बस पकड़ी. तब तक आगे की सीटें गोरे लोगों से पूरी तरह भर गई थीं. अगले ही बस स्टॉप पर कुछ और गोरे सवार हो गए. इस पर बस के कंडक्टर ने पीछे की सीटों पर सवार अश्वेत लोगों को उठाना शुरू कर दिया. फिर बारी आई रोजा पार्क्स की. उनको भी सीट छोड़ने के लिए कहा गया. अब तक जो चिंगारी रोजा के अंदर ही अंदर सुलग रही थी, वह आग बन गई और रोजा ने सीट से उठने से साफ मना कर दिया.
बस से उठी चिंगारी नस्लभेद के खिलाफ बन गई चिंगारी
गौरतलब है कि इतना सब होने के बाद भी रोजा ने हार नहीं मानी और अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ बिगुल बजा दिया. नस्लभेद कानून को चुनौती दी. इससे दूसरे लोग भी अन्याय और भेदभाव का विरोध करने लगे. अकेले रोजा का विद्रोह अब सामूहिक हो चला. नागरिक आंदोलन करने लगे, जो लगभग एक साल तक चला. अंत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अश्वेत नागरिक बस में कहीं भी बैठ सकते हैं.
मार्टिन लूथर ने की अगुवाई
यह बेहद दिलचस्प है कि इस पूरे आंदोलन में इस शुरुआती जीत के साथ ही अमेरिका में नस्लभेद कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया और सामने आए मार्टिन लूथर किंग. उनके नेतृत्व में एक जन आंदोलन शुरू हो गया. इसके कारण अमेरिका में नस्लभेदी कानूनों को रद्द करना पड़ा. मार्टिन लूथर किंग ने राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत हासिल की. इस सफल आंदोलन की चिनगारी बनीं रोजा पार्क्स को मदर ऑफ द सिविल राइट्स मूवमेंट कहा जाने लगा. अमेरिकी इतिहास में यह बस क्रांति मॉन्टगोमरी बस बायकॉट के नाम से जानी जाने लगी.
रोजा पार्क्स के नागरिक अधिकारों को लेकर छोटे स्तर से शुरू हुआ यह आंदोलन बाद में व्यापक स्तर पर पूरे अमेरिका में फ़ैल गया। बाद में इसका बड़ा असर अमेरिका में सिविल राइट एक्ट के रूप में सामने आया. इसे अमेरिकी कांग्रेस ने साल 1964 में लागू किया. बिल क्लिंटन जब राष्ट्रपति थे, तब साल 1996 में रोजा पार्क्स को प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से नवाजा गया. 1999 में उनको कांग्रेसनल गोल्ड मेडल दिया गया, जो अमेरिका में किसी नागरिक को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. आज भी हर साल जयंती पर अमेरिका में उनको याद किया जाता है. उनकी सौवीं जन्मतिथि पर अमेरिका के डाक सेवा ने उनकी तस्वीर वाला टाक टिकट जारी किया था.
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