Story Of The Movie ‘Amar Prem’: आज हम बात करेंगे उस फिल्म की, जो लो बजट की होने के बावजूद, 1972 में तेरहवीं सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई। और पहले सुपर स्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना ने बड़ी सफलता पाई, स्टारडम का स्वाद चखा, उनका एक डायलॉग जो फिल्म में पांच बार बोला गया, सबके सिर चढ़कर बोला “पुष्पा, आई हेट टियर्स”। साथ ही दर्शकों के लिए लाई ऐसे प्यार की परिभाषा, जो मिटता नहीं जिसे कोई सीमा नहीं बांध पाती। जो ऐसा रिश्ता बनाती है, जिसे किसी भी नाम की ज़रूरत नहीं होती। वो अमर हो जाता है, जी हां ये है “अमर प्रेम”।
बंगाली फिल्म पर आधारित है ‘अमर-प्रेम’
ये एक रोमांटिक ड्रामा है, जिसका निर्देशन शक्ति सामंत ने किया है और ये 1970 की बंगाली फिल्म निशि पद्मा की रीमेक है। जिसका निर्देशन अरबिंदा मुखर्जी ने किया था, जिन्होंने बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय की बंगाली लघु कहानी हिंगर कोचुरी पर आधारित दोनों फिल्मों की पटकथा लिखी थी। फिल्म में अभिनेत्री हैं शर्मिला टैगोर, जिन्होंने तवायफ पुष्पा के किरदार में चार चांद लगाया है। यहां आपको ये बताते चलें, कि रियल लाइफ में शर्मिला जी के मां बनने के बाद की ये पहली फिल्म है, और इस फिल्म में उन्होंने अपने ममतामई हृदय के भली भांति दर्शन कराए हैं। उस औरत के ज़रिए जो सिर्फ पति और बच्चे का प्यार पाने को तरसती रहती है।
अमर-प्रेम फिल्म की कहानी
अब बात करते हैं कहानी की जो शुरू होती है। सचिन देव बर्मन के गाए “डोली में बिठाई के कहार” गीत से जिसमें एक तरफ डोली जा रही है और दूसरी तरफ पुष्पा के किरदार में शर्मिला टैगोर रोती हुई चली आ रही हैं। क्योंकि पुष्पा के पति ने बच्चे न होने की वजह से दूसरी शादी कर ली और नई पत्नी के साथ मिलकर उसे घर से निकाल दिया है। इसलिए अब वो अपनी माँ के पास जा रही है, जब वो घर पहुंचती है तो मां उसे सहारा तो देती है, पर ग़रीबी की वजह से पुष्पा को भी मां की तरह लोगों से मांग कर खाना पड़ता है। और लोग उसकी बेइज़्ज़ती करते हैं, एक दिन तो उसके चरित्र पर ही शक़ करने लगते हैं, पर ऐसे में मां भी उसे ही ग़लत ठहराती है, जिससे वो अपनी ज़िंदगी खत्म करने की कोशिश करती है और तभी उसके गाँव के नेपाल बाबू जिन्हें वो चाचा कहती है, आकर उसे बचा लेते हैं, पर उसे काम देने का वादा करके उसकी ग़रीबी का फायदा उठाते हैं और कलकत्ता की बदनाम गलियों यानी एक कोठे में बेच देते हैं। ये कहकर कि वो संगीत का मंदिर है जहां उसे गाना सुनाना है और उसे पैसे मिलेंगे। पुष्पा ये सोचकर राज़ी हो जाती है कि अब उसे और उसकी मां को भीख नहीं मांगनी पड़ेगी वो नेपाल बाबू के हांथ अपनी मां को पैसे भेज देगी।
पुष्पा जब वहां गाना शुरू करती है तो, शादी के बाद भी सच्चे प्यार की तलाश में भटकते हुए एक अमीर आदमी आनंद बाबू यानी राजेश खन्ना के लड़खड़ाते क़दम उसकी गाने की आवाज़ सुन कर उसकी ओर खिंचे चले आते हैं। और उससे मिलकर ऐसी पवित्रता, ऐसे सुख का अनुभव करते हैं, कि उन्हें लगता है उनकी तलाश खत्म हो गई है। तब से वो वहां रोज़ आने लगते हैं पुष्पा भी बस उन्हीं की होके रह जाती है और आनंद बाबू उसकी पवित्रता का सम्मान करते हुए उस से प्रेम करने लगते हैं। उसके मंदिर रूपी कमरे को अपना घर बना लेते हैं, “पुष्पा आई हेट टियर्स “कहते हुए उसका सहारा बनते हैं उसे कभी रोने नहीं देते।
कुछ दिनों बाद पुष्पा के गांव के ही मुह बोले भइया महेश बाबू, जिनसे वो गांव में काम मांगने गई थी, जब उनका बेटा नंदू छोटा था और उसकी मां चली गई थी। वही अपनी दूसरी पत्नी और बच्चों के साथ पुष्पा के घर के करीब रहने आते हैं, उन्हीं के ज़रिए पुष्पा को पता चलता है, कि उसकी मां गुज़र गई है और और नेपाल बाबू उस से, उसकी मां के नाम पर पैसे ऐंठ रहे हैं। एक दिन रमेश बाबू का बेटा नंदू जिसकी मां नहीं है, पुष्पा से मिलता है और पुष्पा उसे चंद मुलाकातों में ही अपने बच्चे सा चाहने लगती है, क्योंकि उसके पिता को काम से फुरसत नहीं और सौतेली माँ उसकी परवाह नहीं करती वो भूखा प्यासा और दुखी रहता है। नंदू को पुष्पा से मां का प्यार तो मिलता है, लेकिन उसके पिता को पुष्पा की नई ज़िंदगी से बहुत ऐतराज़ होता है और वो उससे दूरी बनाते हुए नंदू को भी पुष्पा से दूर कर देता है, उसे डर है कि लोग क्या कहेंगे। इस बात से आनंद बाबू भी परेशान हो जाते हैं, वो नंदू को पुष्पा का बेटा कहते हैं पर नंदू उन्हें भी पिता जैसा ही मानता है।
ऐसे में कुछ ही दिन बीतते हैं, कि एक दिन, आनंद बाबू का साला पुष्पा से मिलने आता है और कहता है कि आनंद बाबू की घर गृहस्थी न बर्बाद करें। उन्हें अपने यहां आने से रोक दे, तो पुष्पा उनकी खुशी के लिए अपने दिल पर पत्थर रखकर राज़ी हो जाती है। अब दुर्गा पूजा नज़दीक है और ऐसे में नंदू को रात रानी का पौधा मिल जाता है, जिसे मूर्तिकार नंदू को अच्छी मिट्टी में लगाने को कहता है और ख़ुद दुर्गा प्रतिमा को पूरी करने के लिए पुष्पा के आंगन की मिट्टी लेने जाता है। (फिल्म में बातों बातों में ये परंपरा भी बताई जाती है कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी मिलाए बिना दुर्गा प्रतिमा पूरी नहीं होती )
ये सुनकर नंदू पुष्पा के आंगन में रात रानी का पौधा लगा देता है उससे ये वादा लेकर कि वो उसका ध्यान रखेगी, उसके बाद आनंद बाबू आखिरी बार पुष्पा से मिलने आते हैं और पुष्पा और उनके बीच हल्का सा प्यार का इज़हार भी होता है। पर वो इतना पाकीज़ा था कि दोनों एक दूसरे के लिए खुद को क़ुर्बान करना ही ठीक समझते हैं और अपनी राहें जुदा कर लेते हैं।
इस पवित्र प्रेम की छांव में नंदू को आशीर्वाद मिलता है कि उसके रात रानी के पौधे में खूब फूल खिलें।
पर एक दिन नंदू को तेज़ बुखार आता है और कई दिन बीत जाने पर भी वो ठीक नहीं होता, तो पुष्पा नंदू से चुपके से मिलती है तब उसे पता चलता है कि उसका इलाज ही पैसों की कमी के कारण ठीक से नहीं हो रहा है, इसलिए उसकी तबियत बहुत खराब है, तो वो उसके इलाज के लिए आनंद बाबू से ही मदद मांगती है और एक बड़े डॉक्टर, डॉक्टर घोष को नंदू के पास भेजती है। जबकि इतना खर्च उठाना नंदू के पिता के बस के बाहर था, जब नंदू के पिता डॉक्टर से पूछते हैं, कि इलाज का खर्च किसने उठाया, तो डॉक्टर साहब कहते हैं कि उसकी मां ने उठाया है, ये सुनकर रमेश बाबू परेशान हो जाते हैं और जब डॉक्टर की क्लीनिक जाते हैं। तब वहां पुष्पा को नंदू का हाल चाल पूछते और उसे ये कहते सुन लेते हैं, कि वो उसकी सगी मां नहीं है। इसलिए महेश बाबू को पैसों की बात नहीं पता है, तब महेश बाबू को पता चलता है कि वो पुष्पा ही थी जिसने उसके बेटे की जान बचाई है, वो बहुत शर्मिंदा होते हैं और एक साड़ी जो वो अपनी पत्नी के लिए ले जा रहे होते हैं वो पुष्पा को भाई दूज के लिए सच में अपनी बहन मानकर दे देते हैं। (यहां पुष्पा को औरत के जीवन से जुड़े और पवित्रता की डोर से बंधे इस एक नए रिश्ते का सुख भी मिल जाता है इसके पहले भी वो दुखी नहीं थी क्योंकि पति ने उसे पत्नी नहीं माना लेकिन आनंद बाबू ने उसे पत्नी मानकर पति का प्यार दे दिया। प्रकृति ने उसे बांझ रखा लेकिन नंदू ने उसे मां बना दिया था और उसका प्रेम सा भरा हृदय केवल ईश्वर का धन्यवाद करता था।)
ख़ैर नंदू ठीक हो जाता है और उसके पिता उसे गांव ले जाने लगते हैं, तो नंदू पुष्पा से मिलने आता है और खुशी में पुष्पा जल्दी से उठती है। तो उसके पैर हंसिए पर पड़ जाते हैं और अंगूठे में चोट लग जाती है, तो नंदू उसके अंगूठे में दवाई लगाने के लिए जाता है और पुष्पा के अंगूठे में दावा लगाकर पट्टी बांधता है, उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेता है, तो पुष्पा कहती है ब्राह्मण का बेटा होके मेरे पैर छू रहा है, तो नंदू कहता है तुम्हारे पैर नहीं छुऊंगा तो किसके छुऊंगा, लेकिन जब वो घर आता है तो नई मां उसे बहुत मारती है, पुष्पा के घर जाने के लिए पुष्पा उसे बचाते हुए रोती रह जाती है और नंदू भी चला जाता है।
अब कहानी आगे बढ़ती है और कई साल बाद, नंदू, नंद किशोर यानी अभिनेता विनोद मेहरा बड़ा होकर उसी शहर में एक सरकारी इंजीनियर बन कर आता है, और पुष्पा को तलाशते हुए उसके घर के सामने ही मकान लेता है। जहां से खिलखिलाती हुई फूलों से लदी रात रानी की डालियां पुष्पा के आंगन से झांकती हुई उसे नज़र आती रहती हैं। आनंद बाबू काम के सिलसिले में एक धर्मशाला में जाते हैं और पुष्पा को देखते हैं, जो वहां की नौकरानी है, लेकिन अब भी इस बात से खुश है कि उसके पिछले काम से ये काम अच्छा है। आनंद बाबू उसे मिलकर चले आते हैं, इस बीच पुष्पा को किसी मरीज़ के कमरे में पानी पहुंचाने जाना होता है, और वो जब पानी लेकर जाती है तो देखती है कि वो अंधा, असहाय, बीमार, बूढ़ा उसका वो पति है जिसने उसे घर से निकाल दिया था उसकी नई पत्नी ने भी आत्महत्या कर ली है और अब उसके पास पैसे भी नहीं हैं तो पुष्पा ही उसके इलाज के पैसे देती है और थोड़ी देर में उनके मरने की खबर आती है। जिसे सुनकर पुष्पा विधवा धर्म का पालन करते हुए अपनी चूड़ियां तोड़ देती है।
आगे की कहानी में नंदू का बेटा बीमार हो जाता है और वो उसी डॉक्टर के पास अपने बेटे को लेकर जाता है, जिन्होंने बचपन में उसे ठीक किया था, यानी डॉक्टर घोष जो आनंद बाबू के दोस्त भी हैं, और बेटे के ठीक होने के बाद जब इलाज के दौरान नंदू डॉक्टर साहब से सलाह लेने जाता है, तो उसे वहां अपनी आप बीती सुनाते आनंद बाबू मिल जाते हैं। (उनकी बातों में हम दर्शकों को पता चलता है कि उनकी बीवी को आज़ादी चाहिए थी जो उन्होंने उसे तलाक़ देकर दे दी और अब वो शराब भी पूरी तरह छोड़ चुके हैं पुष्पा की वजह से उन्होंने ज़िंदगी को जीना सीख लिया है यानी उनके लिए पुष्पा किसी देवी से कम नहीं है।)
आनंद बाबू को पहचानकर नंदू उनसे भी पुष्पा का पता पूछता है और और पहले अपनी रात रानी के बारे में बताता है फिर पुष्पा से मिलने जाता है।
जहां पुष्पा दुनिया के ज़ुल्म सहते हुए काम कर रही थी, लेकिन उसकी बूढ़ी आँखें नंदू को पहचान लेती हैं और आनंद बाबू हमेशा की तरह नंदू के लिए गरम गरम समोसे कचोरी ले कर आते हैं। नंदू पुष्पा से वो तावीज़ अपने बेटे के लिए मांगता है, जो वो खुद अपनी सौतेली मां के डर से नहीं बांध पाया, पुष्पा अपने नाती की बात सुनकर बेहद खुश हो जाती है और तीनों पहले की तरह दो घड़ी साथ बिताने की कोशिश कर ही रहे होते हैं, कि पुष्पा को उसका मालिक भला बुरा कहने लगता है, इस पर नंदू और आनंद बाबू उसकी तरफदारी करते हुए उसे हर तोहमत से बचाते हैं और आनंद बाबू नंदू के मन को भापकर उसे उसकी मां को घर ले जाने को कहते हैं। पुष्पा के मना करने पर नंदू कहता है आज तो दुर्गा पूजा का दिन है इस दिन मां अपने भक्त के घर नहीं जाएगी तो कब जाएगी पुष्पा मान जाती है, और जाते हुए आनंद बाबू से कहती है, मै आपको कभी कुछ नहीं दे पाई और आप हमेशा मेरे बारे में सोचते रहे। लेकिन आज मैं आपको कुछ देना चाहती हूं और उनके चरणों को छू कर उन्हें अपना होने का मान देती है, तब आनंद बाबू की आंखों से भी आंसू बह पड़ते हैं और पुष्पा उनसे कहती है-आज आपकी आंखों से ये आंसू बाहर कैसे आ गए तो आनंद बाबू कहते हैं मुझे नहीं पता था कि इनके बह जाने से भी इतना सुख मिलता है। अगर पहले पता होता तो कभी न कहता “आई हेट टियर्स”।
अंत में नंदू पुष्पा को अपने साथ घर ले जाता है, जैसे एक बेटा अपनी खोई हुई मां से मिल गया हो और आनंद बाबू खुशी से रोते हुए यह सब देख रहे होते हैं। कुछ ऐसा है “अमर प्रेम ” शक्ति सामंत की महिला प्रधान ये फिल्म देखकर आप जीवंत अभिनय को भी महसूस कर सकते हैं।
फिल्म से जुड़ी कुछ खास बातें
संगीत आर.डी.बर्मन का है, गीत आनंद बक्शी के हैं, जिसने लता मंगेशकर को बेहतरीन शास्त्रीय एकल गीत रैना बीती जाए दिया, जो दो रागों के एक असामान्य मिश्रण से बनाया गया था। वो ऐसे कि इसके मुखड़े या शुरुआती पद में तोड़ी और अंतरा में खमाज है। गीत के बोलों ने तो वो कमाल किया है, कि आप इसकी लिरिक्स में खो जाएंगे सुन के देखिए एक बार नहीं हज़ार बार। वहीं आर डी बर्मन ने अपने पिता एसडी बर्मन को अपनी विशिष्ट बार्डिक आवाज़ में “डोली में बिठाई के कहार” गाने के लिए चुना, जो एक पार्श्व गायक के रूप में उनके करियर के सबसे यादगार गीतों में से एक बन गया। “कुछ तो लोग कहेंगे” गाना अब तक के सबसे पसंदीदा फ़िल्मी गानों में से एक माना जाता है। चिंगारी कोई भड़के ने वर्ष के अंत में बिनाका गीतमाला वार्षिक सूची 1972 में 5वें स्थान पर शीर्ष स्थान प्राप्त किया।
पफ-स्लीव ब्लाउज़ का चलन
फिल्म की सफलता ने उस समय के फैशन के रुझान को भी प्रभावित किया, पफ-स्लीव ब्लाउज़, जो पहली बार 1950 के दशक में देविका रानी पर देखे गए थे, पुष्पा के किरदार में शर्मिला टैगोर के पहने जाने के बाद फिर से पुनर्जीवित हुए।
हावड़ा ब्रिज नहीं मुंबई में हुई थी शूटिंग
फिल्म को ईस्टमैनकलर में, पूरी तरह से मुंबई के नटराज स्टूडियो में शूट किया गया था, जिसमें प्रसिद्ध गीत, चिंगारी कोई भड़के भी शामिल है। जिसे हुगली नदी पर एक नाव पर सेट किया गया था, जिसकी पृष्ठभूमि में कोलकाता का हावड़ा ब्रिज था।
लेकिन कोलकाता के अधिकारियों ने फिल्म क्रू को पुल के नीचे शूटिंग करने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि इससे भीड़ की समस्या होती। इस प्रकार गीत को स्टूडियो में एक पानी की टंकी में शूट किया गया, जिसमें क्रू ने घुटने तक गहरे पानी में फिल्मांकन किया। 20वें फिल्मफेयर पुरस्कार में अमर प्रेम फिल्म के लिए अवॉर्ड जीता। सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए अरबिंद मुखर्जी, सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए रमेश पंत और सर्वश्रेष्ठ ध्वनि डिज़ाइन के लिए जहांगीर नौरोजी ने।