इलाहाबद हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का सर्वे कराया जाएगा। इलाहबाद हाई कोर्ट का यह फैसला गुरुवार को दिया है. हिन्दू पक्ष की यह याचिका स्वीकार करते हुए सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन (Justice Mayank Kumar Jain) की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड की दलीलों को खारिज कर दिया।
दरअसल, 16 नवंबर को अर्जी पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुरक्षित कर लिया था. इस दिन विवादित परिसर की 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई. ये सभी याचिकाएं मथुरा जिला अदालत से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए शिफ्ट हुई थी. इनमे एक याचिका कोर्ट कमिश्नर की थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मयंक जैन ने बारी-बारी से मुकदमों की सुनवाई की पक्षकारों की तरफ से अर्जियां और हलफनामे दाखिल किए गए हैं. किसी ने पक्षकार बनाने तो किसी ने संसोधन की अर्जी दी है. बाद में कोर्ट ने विपक्षियों को सिविल वाद व अर्जियों पर जवाब दाखिल करने का समय दिया था.
इस मामले के एक पक्षकार ने पौराणिक पक्ष रखते हुए कहा कि की भगवन श्री कृष्ण के पौत्र ने मथुरा मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर के लिए जमीन दान में मिली। इसलिए जमीन के स्वामित्व का कोई विवाद नहीं है. मंदिर तोड़कर शाही मस्जिद बनाने का विवाद है. राजस्व अभिलेखों में जमीन अभी भी कटरा केशव देव के नाम दर्ज है.
मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई थी
शाही ईदगाह मस्जिद और उत्तरप्रदेश सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने कोर्ट में आपत्ति जताई थी। मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, इसको खारिज किया जाए। जिसे कोर्ट ने अनसुना कर दिया।
हिन्दू पक्ष के लोगों ने समझौते को अवैध बताया
श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह मामले में 12 अक्टूबर 1968 को एक समझौता हुआ था। श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के सहयोगी संगठन श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच हुए इस समझौते में 13.37 एकड़ भूमि में से करीब 2.37 एकड़ भूमि शाही ईदगाह के लिए दी गई थी। हालांकि इस समझौते के बाद श्री कृष्ण जन्म सेवा संघ को भांग कर दिया गया. इस समझौते को हिन्दू पक्ष अवैध बता रहा है. हिन्दू पक्ष के अनुसार श्री कृष्ण जन्मभूमि संघ को समझौते का अधिकार था ही नहीं।
1968 में हुआ समझौता क्या था?
What was the agreement reached in 1968: जुगल किशोर बिड़ला ने 1946 में जमीन की देखरेख के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया था।1967 में जुगल किशोर की मृत्यु हो गई। अदालत की माने तो , 1968 से पहले परिसर कम विकसित था। साथ ही 13.37 एकड़ भूमि पर कई लोग बसे हुए थे।1968 में ट्रस्ट ने मुश्लिम पक्ष से एक समझौता किया। इसके तहत शाही ईदगाह मस्जिद का पूरा मैनेजमेंट मुस्लिमों को सौंप दिया। 1968 में हुए समझौते के बाद परिसर में रह रहे मुस्लिमों को इसे खाली करने को कहा गया। साथ ही मस्जिद और मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए बीच दीवार बना दी गई। समझौते में यह भी तय हुआ कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा। यानी यहां उपासना के दो स्थल एक दीवार से अलग होते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1968 का यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानूनी रूप से वैध नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में देवता के अधिकारों को समझौते से खत्म नहीं किया जा सकता है, क्योंकि देवता कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे।
विवादित भूमि का इतिहास क्या है?
1670 में औरंगजेब ने शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक पुराने मंदिर को तोड़ कर करवाया गया था। इस पूरे इलाके को कृषि योग्य भूमि नहीं माना जाता है। इस पर पहले मराठों और बाद में अंग्रेजों का अधिकार था।1815 में बनारस के राजा पटनी मल ने 13.37 एकड़ की यह भूमि ईस्ट इंडिया कंपनी से एक नीलामी में खरीदी थी, जिस पर ईदगाह मस्जिद बनी है और जिसे भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है।
राजा पटनी मल ने ये भूमि जुगल किशोर बिड़ला को बेच दी थी और ये पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकेन लालजी आत्रेय के नाम पर रजिस्टर्ड हुई थी। जुगल किशोर ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसने कटरा केशव देव मंदिर के स्वामित्व का अधिकार हासिल कर लिया।