Akhilesh Yadav Mosque Meeting : पत्नी के साथ मस्जिद जाकर फंसे अखिलेश यादव, अब सपाई दे रहें सफाई 

Akhilesh Yadav Mosque Meeting : उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म के मामले बढ़ते जा रहें हैं जो सियासी विवाद को बढ़ाने का काम कर रहें हैं। अब मामला यूपी की मस्जिद से दिल्ली की मस्जिद तक पहुँच गया है। बुधवार को संसद भवन के पास वाली मस्जिद में कुछ सपा सांसदों की मौजूदगी में अखिलेश यादव ने पत्नी डिम्पल यादव के साथ मस्जिद के अंदर बैठक की। जिसके बाद मुस्लिम तुष्टीकरण का मुद्दा हावी हो गया है। कुछ लोग इसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना बता रहें हैं।

अखिलेश यादव की मस्जिद वाली बैठक 

22 जुलाई को संसद भवन के पास वाली मस्जिद में सपा के मुखिया और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जाना विवाद का कारण बन गया है। बीजेपी ने इसको मुद्दा बनाकर हमला किया है। सोशल मीडिया पर भी कई मुस्लिम नेताओं ने इस मस्जिद में राजनीति का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई है। वहीं, बीजेपी का आरोप है कि सपा ने मस्जिद का राजनीतिक मकसद से इस्तेमाल किया है।

भाजपा ने कहा – सपा ने किया मस्जिद का सियासी इस्तेमाल 

मस्जिद का सियासी इस्तेमाल के सवाल पर समाजवादी पार्टी ने भाजपा लें सभी आरोपों को खारिज कर दिया। सपा ने इसे बीजेपी की सांप्रदायिक साजिश बताया है। मगर, सपा द्वारा बार-बार सफाई देने से अब ऐसा लग रहा है कि कहीं कुछ ऐसा हो गया है जो नहीं होना चाहिए था। सपा अपनी बात पर अडिग रहती तो शायद बीजेपी इस मुद्दे का फायदा नहीं उठा पाती। लेकिन, बीजेपी की रणनीति ने सपा को डिफेंसिव बना दिया है।

मस्जिद में बैठक बना विवाद का कारण?

असल में, 22 जुलाई 2025 को, सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने टि्वटर पर कुछ तस्वीरें पोस्ट कीं। इन तस्वीरों में अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, रामपुर से सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, संभल के सांसद शफीकुर रहमान बर्क और बाकी सांसद मस्जिद में बैठे दिख रहे थे। ये तस्वीरें उस वक्त की हैं, जब संसद की कार्यवाही स्थगित हुई थी और ये नेता मस्जिद गए थे। मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी ने बताया कि मस्जिद संसद भवन के पास सड़क के उस पार है और अखिलेश ने बस देखने की इच्छा की थी। धर्मेंद्र यादव की आलोचना इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने इन तस्वीरों को गलत तरीके से पोस्ट किया है और इसे नदवी के घर की तस्वीर बताया है।

मस्जिद जाकर वोटर्स को खुश करना चाहती थी सपा 

संसद का सत्र चल रहा था और सभी को देश की समस्याओं पर ध्यान देना था, लेकिन इन तस्वीरों ने बीजेपी को एक बड़ा मौका दे दिया। अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के मुस्लिम सांसदों के साथ मस्जिद जाने का वीडियो सामने लाकर अपने वोटर्स को खुश करने की कोशिश की, लेकिन यह उल्टा पड़ गया। अखिलेश यादव पहले भी राम मंदिर के उद्घाटन में हिस्सा लेने से इंकार कर चुके हैं, इसलिए उनको हिंदू समुदाय से भी आलोचना का सामना करना पड़ा। बीजेपी का आरोप है कि इस दौरान सपा ने मस्जिद में बैठक कर उस जगह का राजनीतिक इस्तेमाल किया है, जो इस्लाम के मुताबिक गलत है।

भाजपा ने कहा – यह मजहब का अपमान है

बीजेपी का कहना है कि मस्जिद का राजनीतिक मकसद से इस्तेमाल करना मज़हब का अपमान है। बीजेपी के मुस्लिम मोर्चा के नेता जमाल सिद्दीकी ने मोहिबुल्लाह नदवी को इमाम पद से हटाने की मांग की है और 25 जुलाई को जुमे की नमाज के बाद इन मस्जिदों में विरोध प्रदर्शन करने की बात कही है। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने भी कहा है कि मस्जिद इबादत की जगह है, राजनीति की नहीं। 

अखिलेश यादव ने भाजपा पर किया हमला 

सपा ने इन सब आरोपों को बीजेपी की साजिश बताया है। अखिलेश यादव ने कहा है कि आस्था जोड़ने का काम है, और वे ऐसे काम में साथ हैं। बीजेपी चाहती है कि लोग एक-दूसरे से दूर रहें।

बर्क ने कहा – मस्जिद में बैठक नहीं हुई 

पहला सवाल ये है कि क्या मस्जिद में सपा की कोई आधिकारिक बैठक हुई थी? दूसरा सवाल ये है कि क्या मस्जिद में बैठक करना इस्लाम के मुताबिक गलत है? सपा सांसद जिया उर्र रहमान का कहना है कि कोई बैठक नहीं हुई, बस एक सामान्य दौरा था। उनका कहना है कि उनके पास संसद के अंदर और बाहर बैठक करने के लिए जगह है, तो इस तरह की अफवाहें गलत हैं।  

मस्जिद में दौरा किया गया था : सपा 

सपा का तर्क है कि तस्वीरें गलत तरीके से दिखाई गई हैं। धर्मेंद्र यादव ने कहा है कि ये तस्वीरें मस्जिद में बैठक की नहीं, बल्कि सिर्फ एक दौरे की थीं। अब सवाल ये है कि इस्लाम में मस्जिद में बैठक करना सही है या नहीं, इसका कोई स्पष्ट नियम नहीं है।  

अखिलेश यादव को मुस्लिम वोटों पर भरोसा : भाजपा 

बीजेपी और उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का कहना है कि मस्जिद में सपा नेताओं की उपस्थिति, खासकर डिंपल यादव का बैठना, इस्लाम की परंपराओं के खिलाफ है। बीजेपी ने यह भी कहा है कि अगर कोई बीजेपी नेता मंदिर में ऐसी बैठक करता, तो विपक्ष उसे धार्मिक अपमान करार देता। अखिलेश यादव खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर दिखाते हैं। उनकी पार्टी यूपी में यादव और मुस्लिम वोटों पर भरोसा करती है। इसलिए कई बार वह खुद को हिंदू धर्म से अलग दिखाने की कोशिश करते हैं, जैसे राम मंदिर में हिस्सा नहीं लेना। वहीं, कभी-कभी वह मुसलमानों का समर्थन पाने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व का चेहरा भी दिखाते हैं। 

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