Ajmer Sharif Dargah Controversy : देश में मंदिर-मस्जिद पर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। एक विवाद सुलझता भी नहीं कि दूसरा जन्म ले रहा है। उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद का विवाद हिंसा का रूप ले चुका है। अभी तक इस मामले की गुल्थी की सुलझ भी नहीं पाई थी कि अब राजस्थान के अजमेेर शहर में बनी अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर बवाल शुरू हो गया है। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि अजमेर शरीफ की दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनी है। दावे में यह भी जिक्र किया गया है कि आज भी दरगाह के नीचे शिव मंदिर है। हिंदू पक्ष की ओर से इस दावे को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई है। जिसे कोर्ट ने सुनावाई योग्य करार कर दिया है।
अजमेर शरीफ दरगाह में शिव मंदिर (Ajmer Sharif Dargah Controversy)
राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद शुरू हो गया है। बुधवार को अजमेर की मुंसिफ कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने एक याचिका दायर की है। जिसमें दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर है। यहां शिव मंदिर के ऊपर दरगाह बनाई गई है। विषणू गुप्ता ने इस दावे का आधार 1911 में हरबिलास सारदा की लिखी हुई किताब को बनाया है।
किताब में दरगाह के विषय में क्या लिखा है?
कोर्ट में विष्णु गुप्ता ने जिस किताब को अपने दावे का आधार बताया है वह हरबिलास सारदा की किताब ‘अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ है। सन् 1911 में हरबिलास सारदा द्वारा लिखी गई अंग्रेजी भाषा की इस किताब में 168 पन्ने हैं, जिसमें ‘दरगाह ख्वाजा मोहिनुद्दीन चिश्ती’ नाम से एक अलग चैप्टर है। इसी चैप्टर में ख्वाजा के जीवन काल और उनकी दरगाह का ब्योरा दिया गया है।
कोर्ट ने कहा- ‘अजमेर शरीफ में सर्वे हो’
अजमेर की मुंसिफ कोर्ट ने हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की याचिका को सुनावई योग्य करार किया है। कोर्ट ने राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह में सर्वे करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। कोर्ट ने इस याचिका के आधार पर संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।
कितनी साल पुरानी है अजमेर शरीफ दरगाह
राजस्थान के अजमेर शहर में एक प्रसिद्ध दरगाह है। यह सूफ़ी मोइनुद्दीन चिश्ती ख्वाजा की दरगाह है। इस दरगाह में चिश्ती ख्वाजा का मकबरा बना है। देश भर में यह अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। इस दरगाह में मुस्लिम समुदाय के साथ हिंदू समुदाय के लोग भी आते हैं। दरगाह में हिंदुओं के आने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। इस दरगाह का निर्माण हिमायूं के शासन में इल्तूतमिश द्वारा 1151-1236 में हुआ था।
याचिका में हिंदू पक्ष का दावा (Ajmer Sharif Dargah Controversy)
जहां अजमेर शरीफ की दरगाह बनी है वहां पर भगवान शिव का मंदिर था।
उस शिव मंदिर में पूजा और जलाभिषेक होता था।
अजमेर निवासी हर विलास शारदा द्वारा वर्ष 1911 में लिखी पुस्तक में इसकी पुष्टि होती है।
इस पुस्तक में अजमेर शरीफ दरगाह के स्थान पर मंदिर का जिक्र किया गया है।
अजमेर शरीफ दरगाह के परिसर में मौजूद 75 फीट लंबे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे के अंश मिला है।
दरगाह के तहखाने के अंदर शिव मंदिर का गर्भगृह होने का प्रमाण है।