LOK SABHA ELECTION 2024: विन्ध्य के सियासी बियाबान मेंअजय सिंह राहुल की उलझन!

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Lok Sabha Election 2024, MP News: मध्यप्रदेश के दो दिग्गज कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अपने-अपने क्षेत्रों में उलझे हैं, लेकिन तीसरे दिग्गज अजय सिंह राहुल उलझन में हैं। विन्ध्य में कांग्रेस के खानदानी घरानों में सिर्फ वही एकमात्र चश्मो-चिराग बचे हैं। अबतक चुरहट के अलावा सभी कांग्रेसी घराने ध्वस्त हो चुके हैं और सबके कुलदीपक अब भाजपाई हैं। अजय सिंह राहुल की उलझन का सबब सीधी और सतना के लोकसभा उम्मीदवार हैं तो कांग्रेस में मची भगदड़ भी। थोकबंद कार्यकर्ता भाजपा की ओर भागने वाले ज्यादातर वे हैं जिन्हें अजय सिंह राहुल का समर्थक माना जाता है। अजय सिंह चुप हैं, उनका कोई बयान सामने नहीं आया।

सबसे बड़ा दलबदल सतना में हुआ जिसे राहुल भैया का सबसे प्रभावी क्षेत्र माना जाता रहा है। लोकसभा के 2009 के कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर सिंह तोमर और प्रवक्ता अतुल सिंह गए तो अजय सिंह राहुल के लेफ्टिनेंट समझे जाने वाले नागौद के पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह ने सपरिवार और समर्थकों की भीड़ के साथ भाजपा की सदस्यता स्वीकार की। ये वही यादवेन्द्र सिंह हैं जिन्हें 2023 के चुनाव में टिकट वितरण के समय चैनलों पर आपने रोते हुए देखा होगा। दबंग छवि के यादवेन्द्र 2014 के विधानसभा चुनाव में ‘बाघ की मांद’ से नागौद की सीट छीन कर लाए थे। हां बाघ की मांद, यह नागौद के राजसी खानदान की सीट है और राजा नागौद बिटलू महाराज नागेन्द्र सिंह जैसे कद्दावर का वर्चस्व है।

तब यादवेन्द्र ने सिर्फ एक ही सवाल किया – टिकट काट दी, मेरा गुनाह क्या था? टिकट में अजय सिंह राहुल का जोर नहीं चला। यहां सोनकच्छ के नेता सज्जन सिंह वर्मा ने कमलनाथ से कहकर डा.रश्मिपटेल को टिकट दिलवा दी थी। यादवेन्द्र सिंह बसपा से चुनाव लड़ें और रश्मि को जीतने नहीं दिया। वे अब खुले मन से भाजपा में हैं। अजय सिंह राहुल सिर्फ मीडिया में जरूर दिग्गज दिख रहे हैं, पर वास्तव में उनसे विवश और लाचार कोई नहीं ।

कांग्रेस से भाजपा गए एक नेता से मैंने पूछा- क्या राहुल भैय्या ने नहीं रोका? उसने प्रतिप्रश्न किया कि डंके की चोट पर राहुल भैय्या को गाली देने वाले, कार्यक्रमों में अपमानित करने वाले सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू को कांग्रेस की लोकसभा टिकट देते वक्त क्या कांग्रेस नेतृत्व ने राहुल भैय्या से पूछा था?

कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की कांग्रेस यहां सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू से शुरू होकर वहीं खत्म होती है। विधानसभा की टिकट डब्बू को, मेयर की टिकट डब्बू को और अब लोकसभा की टिकट भी डब्बू को। कांग्रेस नेतृत्व यहां पिछले पांच साल से सिर्फ डब्बू का डब्बा बजा रहा है। ये डब्बू कुछ नहीं परिस्थितिवश उत्पन्न हुए नेता उन्हीं सुखलाल कुशवाहा के बेटे हैं जिन्होंने सतना से कांग्रेस की संभावनाओं पर ताला जड़ दिया था, वे बसपा के नेता थे।

इतिहास को पलटें तो सुखलाल कुशवाहा का चेहरा 1996 के लोकसभा की सतना समर भूमि में एक गेम चेंजर की तरह उभरता है। इस चुनाव में अर्जुन सिंह तिवारी कांग्रेस से, तोषण सिंह कांग्रेस से और वीरेंद्र कुमार सखलेचा भाजपा से मैदान पर थे। सुखलाल कुशवाहा ने दो दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्रियों को हराकर देशभर में सुर्खियां बटोरीं। 1991 में अर्जुन सिंह की यहां से लोकसभा सदस्य बने इसके बाद से कांग्रेस का खाता नहीं खुला। कभी सतना सीट अर्जुन सिंह के लिए ऐसी थी कि यहां से उन्होंने यहां के लिए अनजान भोपाली अजीज कुरैशी को लड़ाया जो नामांकन भरने और जीत का सर्टीफिकेट लेने आए थे।

रीवा की एक चुनावी जनसभा में कभी अर्जुन सिंह ने कहा था- रीवा मेरा प्रिय है और यहां से लड़ने की साध भी रही पर यहां अन्नदाता(महाराज मार्तण्ड सिंह)हैं, तिवारी जी भी(श्रीनिवास तिवारी)यहीं से राजनीति करते सो इसलिए संसदीय राजनीति के लिए मैंने सतना चुना।

अर्जुन सिंह ने रीवा और सीधी के मुकाबले सतना को ज्यादा वरीयता दी और समर्पित कार्यकर्ताओं का कुनबा खड़ा किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में अगर मैहर के कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी रातोंरात पलटी न मारते तो अजय सिंह राहुल यहां से सांसद होते मोदी लहर में भी वो बमुश्किल 10 हजार वोट से हारे।

अजय सिंह राहुल की उलझन अब यह कि सतना के उनके ज्यादातर कार्यकर्ता भाजपा में जा मिले हैं। सिद्धार्थ कुशवाहा राहुल को अपना नेता मानते नहीं तो ऐसे में करें तो करें क्या? और पिछले लोकसभा का स्मरण करें तो राहुल समर्थकों ने कांग्रेसी सिद्धार्थ कुशवाहा पर पार्टी के खिलाफ गणेश सिंह को मदद देने का आरोप लगाया था, मैदान पर अजय सिंह समर्थक राजाराम त्रिपाठी मैदान पर थे।

विन्ध्य के दिग्गज अजय सिंह राहुल की सीधी लोकसभा को लेकर उलझन और पेचीदा है। सीधी उनका गृह जिला है जहां से वे एक मात्र विधायक हैं। सीडब्ल्यूसी सदस्य और कमलनाथ सरकार के सबसे प्रभावी मंत्रियों में शुमार रहे कमलेश्वर पटेल यहां से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सीधी में चुरहट का सिक्का 70 के दशक से ही रहा। 72 के चुनाव में उनके ताऊ रणबहादुर सिंह निर्दलीय चुनकर लोकसभा पहुंचे। बीच की कुछ जीत हार छोड़ दें तो उनके अनुयाई मोतीलाल सिंह, माणिक सिंह जैसे नेता यहां से चुनकर जाते रहे हैं। कमाल तो 1996 में हुआ जब तिलकराज सिंह तिवारी कांग्रेस से जीत कर देशभर में सनसनी फैला दी जबकि उनके नेता अर्जुन सिंह यही चुनाव सतना से गंवा चुके थे।

चुरहट विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2019 में अजय सिंह राहुल यहां से लोकसभा उम्मीदवार बने। आश्चर्य यह कि यहां से वे 2 लाख से ज्यादा मतों हारे। सतना लोकसभा 2014, चुरहट विधानसभा 2018, सीधी लोकसभा 2019 हार की हैट्रिक के बाद अजय सिंह राहुल के पांच साल पार्टी के भीतर सिर्फ़ उपेक्षा और अपमान के रहे। कमलनाथ ने राहुल के समानांतर सीधी से कमलेश्वर पटेल और सतना से सिद्धार्थ कुशवाहा को बढ़ाना शुरू किया। यदि ये दोनों जीतते हैं तो यह विन्ध्य की राजनीति का अब तक का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट होगा और फिर कांग्रेस के आखिरी घराने चोरहट और उसके चश्मो-चिराग का क्या होगा जब यह अनुमान ठेले पर गुटखा फांकने वाला वोटर बयान कर सकता है तो अजय सिंह राहुल और उनके समर्थकों को राजनीति के समुंदर में तैरने का अनुभव है।

और अंत में बघेली में कहनूत है- ‘सत्तर पूत बहत्तर नाती, ओके घर मां दिया न बाती’। ये वही विन्ध्य है जो कांग्रेस की हर विपरीत परिस्थिति पर सीना तानकर खड़ा रहता था और आज हाल यह। कभी भाजपा को उम्मीदवार हेरे नहीं मिलते थे। अब स्थितियां उलट है.. रात को सोया कांग्रेसी कल सुबह भाजपा का भगवा दुपट्टा पहनकर निकल पड़े, कौन जान सकता है..चिरहुला वाले पंड्डिज्जी भी नहीं।

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