Jayaprakash Narayana : बिहार की राजनीति लंबे समय से संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक की उपाधि प्राप्त जयप्रकाश नारायण और उनके शिष्यों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 1990 से राज्य में सत्ता का केंद्र रहे दो बड़े चेहरे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार भी जेपी के शिष्य हैं। लालू यादव पहले ही अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं। नीतीश कुमार भी 74 साल के होने वाले हैं। 2020 के बिहार चुनाव के आखिरी चरण का प्रचार खत्म होने से ठीक पहले नीतीश कुमार ने कहा था, “यह मेरा आखिरी चुनाव है।
कौन थे जयप्रकाश नारायण? Who was Jaiprakash Narayan
जयप्रकाश नारायण भारत के उन चंद दिग्गजों में से एक थे जिनका जीवन स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष का संदेश था। स्वतंत्रता के बाद के दौर में वे अकेले योद्धा थे जिन्होंने सत्ता के लिए बिना किसी शोर-शराबे के देश में संपूर्ण क्रांति की शुरुआत की। वे एक राजनीतिक दार्शनिक से ज़्यादा एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे। वे गांधीवादी-मार्क्सवादी थे। जयप्रकाश नारायण जन्मजात क्रांतिकारी थे जिनका जीवन मिशन स्वतंत्रता और एक नई सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था दोनों के लिए लड़ना था। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी भूमिका के लिए एक अमिट छाप छोड़ी और समाजवाद, सर्वोदय, दलविहीन लोकतंत्र और संपूर्ण क्रांति जैसे अपने लोकतांत्रिक मानवतावादी विचारों के लिए काफ़ी प्रशंसित थे। वे उन ‘प्रतिबद्ध समाजवादियों’ में से एक थे जिन्होंने भारत में शोषण की ताकतों यानी पूंजीवाद और ज़मींदारी के ख़िलाफ़ निडरता से लड़ाई लड़ी। Bihar Politics
जेपी आंदोलन से मिली लालू और नीतीश को पहचान।Jayaprakash Narayana
आपको बता दें कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में शामिल हुए। जिसके बाद लालू और नीतीश का परिचय जेपी से हुआ, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार इस आंदोलन के सबसे प्रमुख युवा नेता थे। लालू यादव को आपातकाल के बाद उन्होंने 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर छपरा से आम चुनाव जीता और 29 साल की उम्र में सांसद बन गए। जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है तो उनका राजनीतिक सफर भी 1974 में जेपी आंदोलन से शुरू हुआ। नीतीश कुमार 1974 में लालू प्रसाद की जनता पार्टी में शामिल हो गए।
नीतीश जेपी की बगिया के अंतिम फूल।Jayaprakash Narayana
अब बिहार की राजनीति दो मोर्चों पर हो रही है। पहला यह कि क्या राज्य की राजनीति जेपी के शिष्यों से आगे बढ़ रही है, जो विशाल वटवृक्ष थे और दूसरा यह कि जेपी के शिष्यों के बाद कौन? चारा घोटाला मामले में दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के बाद लालू यादव पहले ही चुनावी राजनीति से खुद को अलग कर चुके हैं। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार में लंबे समय तक डिप्टी रहे बीजेपी के सुशील मोदी अब नहीं रहे। ऐसे में सीएम नीतीश कुमार जेपी की बगिया में बचे आखिरी फूल हैं। जो इस समय सत्ता की ड्राइविंग सीट पर हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार की राजनीति अब जेपी के शिष्यों से आगे बढ़ गई है।
त्रिकोणीय मुकाबले ने लिया चतुष्कोणीय रूप।
जेपी के शिष्यों से आगे राजनीति में विकल्प की दौड़ भी शुरू हो गई है। इस दौड़ में विकल्प बनने की होड़ में भाजपा के सुशील मोदी नहीं रहे। इस दौड़ में कई युवा चेहरे हैं। युवा चेहरों की इस लड़ाई में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव, रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी जैसे नाम शामिल हैं। अब चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बन चुके प्रशांत किशोर उर्फ पीके भी इस त्रिकोणीय लड़ाई में उतर आए हैं। पीके जन सुराज पार्टी नाम से पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे हैं और युवा चेहरों की यह लड़ाई अब चतुष्कोणीय हो गई है। इन चारों चेहरों की एक खास बात यह है कि इनकी राजनीतिक लीक कहीं न कहीं जेपी के विचारों के इर्द-गिर्द ही है।