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जनगणना के बाद परिसीमन की तैयारी में सरकार, लोकसभा-विधानसभा सीटों में होगी वृद्धि, महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें होंगी आरक्षित

Delimitation After Census News In Hindi: भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, केंद्र सरकार ने 2027 में होने वाली जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं के लिए परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने की योजना बनाई है। इस परिसीमन के साथ न केवल सीटों की संख्या में वृद्धि होगी, बल्कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत महिलाओं के लिए एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण भी लागू किया जाएगा।

जनगणना और परिसीमन का इतिहास

भारत में जनगणना हर दस साल में आयोजित की जाती है। आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी, और 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण टल गई थी। अब सरकार ने घोषणा की है कि अगली जनगणना 1 मार्च 2027 तक पूरी होगी, जिसमें पहली बार जातिगत आंकजनगणना दो चरणों में होगी और 1 मार्च 2027 तक पूरी होगी। डिजिटल उपकरणों के उपयोग से अंतरिम आंकड़े 2028 तक और अंतिम आंकड़े 2029 तक उपलब्ध होने की उम्मीद है। डिजिटल उपकरणों और मैपिंग तकनीक के उपयोग से इस प्रक्रिया को तेज करने की योजना है। यह जनगणना न केवल जनसंख्या, बल्कि जातिगत आंकड़ों को भी दर्ज करेगी, जो परिसीमन और आरक्षण नीतियों को प्रभावित कर सकती है।

जनगणना के बाद होगी परिसीमन प्रक्रिया

परिसीमन वह प्रक्रिया है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ और सीटों की संख्या को जनसंख्या के आधार पर पुनर्निर्धारित किया जाता है। 2002 के 84वें संविधान संशोधन के तहत 2026 तक लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने पर रोक थी। यह रोक 2026 के बाद समाप्त हो जाएगी, जिसके बाद 2027 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन होगा। जनगणना के बाद एक परिसीमन आयोग गठित किया जाएगा, जो जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का पुनर्निर्धारण करेगा। डिजिटल मैपिंग और डेटा के उपयोग से यह प्रक्रिया डेढ़ साल में पूरी हो सकती है।

लोकसभा की सीटें वर्तमान 543 से बढ़कर 800 से अधिक हो सकती हैं, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार हर 10 लाख जनसंख्या पर एक सांसद होना चाहिए। विधानसभा सीटों की संख्या भी राज्यों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में वर्तमान 403 विधानसभा सीटें बढ़ सकती हैं।

महिलाओं के लिए लोकसभा-विधानसभा में 33% आरक्षण

नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक), जो सितंबर 2023 में संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा स्वीकृत हो चुका है, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और दिल्ली विधानसभा में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करता है।इस आरक्षण के तहत लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें और उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 132 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की आरक्षित सीटों में भी एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए होंगी। उदाहरण के लिए, लोकसभा की 131 SC/ST सीटों में से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। यह आरक्षण 15 वर्षों के लिए लागू होगा, जिसे संसद बाद में बढ़ा सकती है। प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाएगा।

कार्यान्वयन की समयसीमा

महिला आरक्षण और सीटों की वृद्धि जनगणना और परिसीमन के बाद ही लागू होगी। चूँकि जनगणना के अंतिम आंकड़े 2029 तक आएंगे, परिसीमन 2029-2030 तक पूरा हो सकता है। इसका मतलब है कि 2029 का लोकसभा चुनाव 543 सीटों के साथ ही होगा, और नया आरक्षण और बढ़ी हुई सीटें 2034 के चुनाव से लागू हो सकती हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रक्रिया तेज की गई, तो 2029 से पहले कुछ विधानसभा चुनावों में यह लागू हो सकता है। लेकिन ऐसा लगता नहीं है।

महिला आरक्षण क्रियान्वयन में चुनौतियाँ

परिसीमन में जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्गठन, क्षेत्रीय सीमाओं का निर्धारण, और आरक्षण का आवंटन जटिल है। डिजिटल तकनीक इसे तेज कर सकती है, लेकिन जनसुनवाई और राजनीतिक सहमति आवश्यक होगी। कुछ दल, विशेषकर क्षेत्रीय दल, सीटों की संख्या में बदलाव से अपने प्रभाव क्षेत्र के कम होने की आशंका जता रहे हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिणी राज्य, जहाँ जनसंख्या वृद्धि कम है, सीटों के कम होने की चिंता करते हैं। जातिगत आंकड़ों के शामिल होने से OBC आरक्षण की माँग बढ़ सकती है, जो परिसीमन और महिला आरक्षण को जटिल बना सकता है। कई राजनीतिक दलों में मजबूत महिला नेताओं की कमी है, जिसके कारण वे आरक्षण के कार्यान्वयन में देरी की आशंका जता रहे हैं।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

33% आरक्षण से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में ऐतिहासिक वृद्धि होगी। वर्तमान में लोकसभा में केवल 15% और विधानसभाओं में 10% से कम महिलाएँ हैं। उत्तर प्रदेश में, जहाँ केवल 12% विधायक और 14% सांसद महिलाएँ हैं, यह नीति तस्वीर बदल सकती है। यह नीति नीति-निर्माण में लैंगिक समानता और समावेशिता को बढ़ावा देगी। लोकसभा सीटों की संख्या 800 से अधिक होने से प्रतिनिधित्व अधिक समावेशी होगा, लेकिन संसद भवन और विधानसभाओं में बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना होगा। विधान परिषदों की सीटें भी बढ़ेंगी, क्योंकि इनका आकार विधानसभा सीटों के एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकता।

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