Adi Shankaracharya Jayanti: आदिशंकराचार्य का पांचवा मठ

5th Math Of Adi Shankaracharya: ये बात आज से लगभग 1250 वर्ष पहले की है. शिवावतार जगद्गुरु आदिशंकराचार्य, सनातन धर्म को विधर्मियों के प्रभाव से बचाने के लिए देशाटन पर निकले थे. 5 वर्ष की आयु में सनातनी ग्रन्थ और उपनिषदों का ज्ञान कंठस्त करने के बाद 7 वर्ष की आयु में आदिशंकराचार्य ने सन्यासी जीवन अपना लिया और केरल के कालड़ी ग्राम से भारवर्ष की यात्रा के लिए निकल गए. काशी में योग और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति की, महिषी में आचार्य मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया। राष्ट्र को धर्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ने के लिए उत्तर में बद्रिकाधाम, पश्चिम के द्वारिका में शारदामठ, दक्षिण में शृंगेरी और पूर्व में गोवर्धनमठ की स्थापा की.12 सदियों से ये चार मठ सनातन और अध्यात्म के केंद्र हैं मगर बहुतायत को यह मालूम नहीं की जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने 4 नहीं बल्कि पांच मठों की स्थापना की थी.

आदिशंकराचार्य का पांचवा मठ कहां है?

विंध्यांचल पर्वत की गोद में समाया ‘विंध्य’, प्राचीन भारत के महान इतिहास का अहम हिस्सा है. सतयुग में ऋषि अगस्त्य तो त्रेता में श्री राम, द्वापर में माँ विंध्यवासिनी तो कलयुग में स्वयं महादेव के अवतार आदिशंकराचार्य ने अपने चरणों से इसे धन्य किया। विंध्य हमेशा से अध्यात्म का केंद्र रहा है. प्रयागराज से लेकर अमरकंटक तक साधू-संतों, सन्यासियों का यहां जमावड़ा रहता था. उस काल में रेवपट्टनम इन दोनों तीर्थों के बीच विश्रामस्थल के रूप में व्याप्त था. घंटे जंगलों और बीहर नदी के तट पर बसे रेवपट्टनम में आदिशंकाचर्य भी एकात्म चिंतन किया था. रेवपट्टनम आचर्य शंकर के धर्म दिग्विजय अभियान का प्रवास स्थल रहा है. आज रेवपट्टनम को रीवा के नाम से जाना जाता है.

रीवा में हैं पचमठा

Panchmath In Rewa: चार प्रमुख मठों की स्थपना करने के बाद जगद्गुरु शंकराचार्य ने ओंकारेश्वर तीर्थाटन के लिए प्रस्थान किया, काशी और प्रयागराज के बाद रेवपट्टनम पधारे. यहीं उन्होंने बीहर नदी के तट के किनारे एक सप्ताह तक ध्यान किया था. कहा जाता है कि भगवान शंकराचार्य ने इस पावन स्थल को पांचवे मठ के रूप में घोषित कर दिया था. उनके द्वारा यहीं शिवलिंग की स्थापना की गई. जगद्गुरु रेव पट्टनम को आध्यात्मिक केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते थे. ताकि यहां एकात्म दर्शन और सामाजिक एकता की अलख जलाई जा सके. ऐसा कहा जाता है कि आदिशंकराचार्य द्वारा रेवपट्टनम को पंचम मठ घोषित करने के पश्च्यात उत्तराधिकारी की व्यवस्था नहीं हो पाई. और शिव जी द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार अल्पायु जगद्गुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में केदारनाथ धाम पहुंचकर लौकिक संसार को त्याग दिया।

पंचमठ अन्य मठों की तरह प्रसिद्द क्यों नहीं?

जगद्गुरु के अलौकिक संसार में प्रस्थान करने के बाद रेवपट्टनम को पांचवे मठ के रूप में स्थापित करने की योजना अधूरी रह गई. सदियां बीत गईं, रेवपट्टनम, रेवा और फिर रीवा हो गया. बसाहटें बसीं, राजाओं का राज हुआ. इस दौरान भी बीहर का वो वीरान पड़ा तट साधुओं के लिए एकात्म चिंतन का केंद्रबिंदु बना रहा. 1956 में यहां स्वामी ऋषिकुमार जी द्वारा आश्रम की स्थापना की गई. 12 वर्ष की आयु में सन्यास धारण कर 12 वर्षों तक भारत भ्रमण कर जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित पांचवे मठ की खोज उन्हें रीवा तक ले आई. यहां प्राचीनकाल से स्थापित सिद्ध दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में उन्होने ध्यान साधना की और उन्हें बजरंगबली से इस महात्माओं की तपोस्थली में आश्रम निर्माण कराने की प्रेरणा मिली। जब मध्य प्रदेश में संस्कृत की शिक्षा पर रुकावट आई तो स्वामी ऋषिकुमार जी द्वारा यहीं संस्कृत महाविद्यालय की स्थपना की गई.

1986 में कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य ‘जयेन्द्र सरस्वती’ अपने उत्तराधिकारी विजयेंद्र के साथ रीवा पधारे। उन्होंने ने ही इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि यहीं आदिशंकराचार्य द्वारा घोषित पांचवे मठ की स्थापना का प्रमाण मिलता है. पुरी के शंकराचार्य निरंजन तीर्थ ने भी रीवा प्रवास के दौरान पांचवे मठ का उल्लेख किया है.

इस बात की पुष्टि होने के बाद भी कि पंचमठ में कभी शंकराचार्य ने एकात्म चिंतन किया था, बावजूद इसके यह पावनस्थल दशकों तक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता रहा. दुनिया की नज़रों से दूर ब्रह्मलीन स्वामी ऋषिकुमार पचमठा का संरक्षण करते रहे. कभी घने जंगलों के बीच रहा पंचमठ, घनी आबादी में विलुप्त सा हो गया. लेकिन 2017 में मध्यप्रदेश से शुरू हुई एकात्म यात्रा के शुभारंभ के लिए पचमठा का चयन हुआ. सरकार की नज़रों में आने के बाद, पचमठा का भी विकास हुआ. वैदिक पद्धति से यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया. 5 एकड़ में फैले पचमठा का वर्ष 2023 में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और मध्य प्रदेश शासन के प्रयासों से जीर्णोद्धार हुआ. लेकिन प्राचीन मंदिर के मूल स्वरुप से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई. इस भव्य परिसर में भगवान शंकराचार्य द्वारा स्थापित शिवलिंग के दर्शन आज और सहज हो गए हैं. यहीं प्राचीन दक्षिण मुखी हनुमान जी का मंदिर है. हनुमान जी यहां आदिकाल से विराजे हुए हैं. ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी की प्रतिमा का दाहिना पैर बीहर नदी के अंदर तक जाता है और यह कितना विशाल है इसका पता खोजी अंग्रेज भी नहीं लगा पाए थे.

पूरी दुनिया अबतक यही जानती थी कि आदिगुरु शकराचार्य द्वारा भारत की 4 दिशाओं में 4 मठों को स्थापित किया गया. लेकिन इन सभी मठों का केंद्र बनाने के लिए उन्होंने रेवपत्तनम का चयन किया। भले ही पचमठा में शंकराचार्य गद्दीनशीन नहीं हैं लेकिन ऐसा न होना इस पावन धरा की महत्ता को कम नहीं करता। पचमठा आदि काल से संतों की तपो स्थली रही है, आज भी है और हमेशा रहेगी।

पचमठा और आदिशंकराचार्य की इसी कहानी को Video में देखें

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