अभिनेत्री श्यामा- जो कहती थीं सितारे पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते

All About Actress Shyama In Hindi | न्याज़िया बेगम: वो कहती थीं सितारे पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते। उनका कॉन्फिडेंस उनके चेहरे पे दिखता था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुझे एक्टिंग सीखने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि वो मेरे अंदर पहले से थी और इसका मुझे भरोसा था। जी हां ये थीं आर पार और बरसात की रात जैसी फिल्मों से अपनी खास जगह बनाने वाली ‘श्यामा’ जिनका असली नाम था खुर्शीद अख्तर, फिल्मों से जुड़ने पर निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें श्यामा नाम दिया था।

छोटी सी उम्र में की फिल्में

7 जून 1935 को ब्रिटिश भारत के लाहौर, पंजाब में एक मुस्लिम अराइन परिवार में पैदा हुईं श्यामा, 1940 के दशक में लाहौर से मुंबई आ गईं। चूंकि वो अभिनेत्री और गायिका नूरजहां की रिश्तेदार थीं, इसलिए उनका फिल्मों से नाता बहोत कम उम्र से जुड़ गया और सबसे पहले वो नूरजहाँ जी के शौहर शौकत हुसैन रिज़वी की “ज़ीनत” और “मीराबाई ” जैसी कुछ फ़िल्मों में ही नज़र आईं। एक आर्टिकल के मुताबिक तब श्यामा महज़ नौ साल की थीं, जब उन्होंने शम्मी कपूर के साथ रोमांटिक क्लासिक मिर्ज़ा साहिबान (1957) में भी बेहतरीन अभिनय किया।

उन्होंने गुरु दत्त की क्लासिक आर पार और बाद में बरसात की रात में अहम किरदार निभाए, जो उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में गिना जाता है। उन्होंने 150 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें से कई में उन्होंने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। 1952 – 1960 की अवधि के दौरान वो 80 से ज़्यादा फ़िल्मों में दिखाई दीं, जिनमें से ज़्यादातर में उन्होंने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं थीं।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री चुनी गईं

आर पार (1954), बरसात की रात (1960) और तराना के बाद मिलन, भाई-भाई (1956), मिर्ज़ा साहिबान (1957), भाभी (1957) और शारदा (1957) में उनके बेमिसाल अभिनय के ज़रिए उनको पहचान मिली और शारदा में शानदार अभिनय के लिए, उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया।

अभिनय की माला में गीतों को हूबहू पिरोने में था महारत हासिल

50 के दशक के उत्तरार्ध की वो ऐसी चहीती अभिनेत्री थीं जो संगीत निर्देशकों और कवियों की लय और गीत के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील थीं। उन पर फिल्माए गए गाने जैसे “ऐ दिल मुझे बता दे”, “ओ चांद जहां वो जाए”, “ऐ लो मैं हारी पिया”, “देखो वो चांद छुप के करता है क्या इशारे”, “छुपा कर मेरी आंखों को”, “सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा” और “जा रे का रे बदारा” इस के उदाहरण हैं। उन्होंने दो बहनें (1959) में दोहरी भूमिका निभाई जिसमें उन्होंने ऐसे जुड़वाँ बच्चों का किरदार निभाया, जो एक दूसरे से बिल्कुल जुदा और अपोज़िट थे।

जॉनी वॉकर के साथ कई बार स्क्रीन शेयर किया

जॉनी वॉकर और श्यामा ने छू मंतर, आर पार, मुसाफिर खाना, खोटा पैसा और खेल खिलाड़ी का, जैसी फिल्मों में काम किया था इसलिए अभिनेत्री अमिता के बाद जॉनी वॉकर उनके क़रीबी दोस्तों में शामिल थे। इसके बाद श्यामा ने राजेश खन्ना की मास्टरजी और अजनबी, सावन भादों और दिल दिया दर्द लिया जैसी कई और फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं।

अभिनेत्री श्यामा जिन्होंने दस वर्षों तक छुपाई अपनी शादी

1953 में उनकी शादी सिनेमेटोग्राफर फली मिस्त्री से हुई थी। उनके पति बॉम्बे, भारत के पारसी (जोरास्ट्रियन) थे लेकिन उन्होंने शादी को 10 साल तक सबसे छुपा कर रखा। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर उनकी शादी के बारे में सबको पता चल गया तो श्यामा का करियर प्रभावित होगा। उन दिनों ऐसा माना जाता था कि शादी होते ही महिला सितारों की फैन फॉलोइंग कम हो जाती है। उनके पहले बच्चे, उनके सबसे बड़े बेटे के जन्म से कुछ समय पहले ही शादी का खुलासा हुआ था। दंपति के तीन बच्चे हुए दो बेटे, फारुख और रोहिन और एक बेटी शिरीन।

पति के जाने के बाद उनकी परेशानी आई सबके सामने

फली मिस्त्री की मृत्यु 1979 में हुई, उसके बाद वे मुंबई में ही रहीं। ऐसा लगता था कि उनकी शादी अच्छी चल रही थी और वे एक-दूसरे के साथ बहोत खुश थे लेकिन सन 2013 को कथित तौर पर श्यामा ने कहा, “मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी हमेशा से फली थे ।” कुछ साल बाद श्यामा 14 नवंबर 2017 को 82 वर्ष की उम्र में हमें छोड़कर चली गईं, पर पीछे छोड़ गईं अपने चाहने वालों के लिए उनकी बेमिसाल अदाकारी और दिलकश मुस्कुराहट का खज़ाना लुटाती फिल्मों की सौग़ात।

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