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अभिनेता ‘दिलीप कुमार’ जो अंग्रेजों के विरुद्ध भाषण देकर जेल भी गए थे

Dilip Kumar Death Anniversary | न्याज़िया बेगम: एक ऐसा अदाकार जिसका लहजा अल्फाज़ों का इंतखाब अदाकारी का सलीका आज तक एक मिसाल है, एक्टिंग स्कूल जिस अभिनय मेथर्ड की बात करते हैं, वो उस वक्त उनकी एक्टिंग में दिखता था, इसलिए वो अभिनय में दिलचस्पी रखने वालों के लिए अपनी हर अदा में एक सबक़ देते। बेशक आप समझ गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं मोहम्मद यूसुफ खान की, जिन्हें देविका रानी ने नाम दिया था दिलीप कुमार।

देविका रानी ने दिया था ‘दिलीप कुमार’ नाम

दरअसल हुआ यूं कि विभाजन के बाद वो मुंबई आ गए थे और उस वक्त अपने घर के हालात से परेशान थे, क्योंकि उनके वालिद ग़ुलाम सरवर, जो फल का कारोबार करते थे, उन्हें अपने बिजनेस में बड़ा नुकसान हुआ था जिसकी वजह से दिलीप साहब पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे, और कहते हैं आर्मी कैंटीन में उनके बनाए हुए सैंडविच बेहद मशहूर हुआ करते थे। लोग बड़े चाव से उनकी सैंडविच खाने आते थे यहीं पर इत्तेफाक़ से पहुंची देविका रानी भी, दिलीप कुमार पर जैसे ही नज़र गई तो हटी नहीं वो उनकी खूबसूरती को देखती ही रह गईं, फिर बात की तो इतना मुतासिर हुईं कि उन्हें न केवल अपनी 1944 की फिल्म ज्वार भाटा के लिए बतौर हीरो लेने का फैसला कर लिया बल्कि उनके राज़ी होने पर उस वक्त के चलन और हालात को देख कर उनका नाम भी बदल दिया और तभी से 21 साल का ये नौजवान, नंबर एक अभिनेता दिलीप कुमार बनने की राह पर चल दिया।

मधुबाला के साथ अधूरी रह गई मोहब्बत

ज्वार भाटा फिल्म की शूटिंग के दौरान दिलीप जी की मुलाक़ात 18 साल की मुमताज़ से हुई, जिन्हें भी अपनी खूबसूरती के दम पर फिल्मी नाम मिला था मधुबाला, जो आज भी हुस्न की मिसाल बनीं हुई हैं फिर बतौर हीरो हिरोइन आप दोनों ने फिल्म तराना में काम किया। ये जोड़ी न केवल बराबर की थी, बल्कि बेहद दिलकश भी थी, इसी वजह से दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए। अपने प्यार को परवान चढ़ाने का ख्वाब भी देखा पर मधुबाला के घर वाले राज़ी न हुए और दिलीप साहब की कुछ अनबन भी हो गई थी उनके वालिद से, ख़ैर ये रिश्ता नहीं जुड़ पाया। पर आप दोनों के अभिनय से सजी फिल्म मुग़ल-ए-आज़म अनमोल कृति साबित हुई और ये जोड़ी भी सदाबहार जोड़ी के रूप में पसंद की गई।

फिल्म जुगनू से बने थे सुपरस्टार

1947 की फिल्म जुगनू ने दिलीप साहब को सुपर स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया था और वो अपनी क़ाबिलियत
के दम पर फिल्म जगत पर राज करने लगे। 1949 की फिल्म में आपने राज कपूर के साथ काम किया फिर दीदार और देवदास जैसी फिल्मों में अपनी संजीदा और उम्दा अदाकारी से वो ट्रैजडी किंग बन गए , तो दूसरी तरफ़ फिल्म राम और श्याम में दोहरी भूमिका निभाके ,सबको अपना दीवाना बना दिया।

अंग्रेजों के विरुद्ध भाषण देकर जेल भी गए थे दिलीप कुमार

अपनी आत्मकथा ‘द सब्सटांस एंड द शैडो’ में उन्होंने बयां किया है, कि कैंटीन में काम करने के दौरान एक भाषण में आपने कहा था कि आज़ादी की लड़ाई सही है, जिसकी वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा और सत्याग्रहियों के समर्थन में भूख हड़ताल भी करनी पड़ी थी। इस आत्म-कथा की शुरुआत उन्होंने अपने पसंदीदा शेर,“सुकून-ए-दिल के लिए कुछ तो एहतेमाम करूं, ज़रा नज़र जो मिले फिर उन्हें सलाम करूं, मुझे तो होश नहीं आप मशवरा दीजिए, कहां से छेड़ूं फसाना कहां तमाम करूं, से की है।

अपनी उम्र से 20 साल छोटी सायरा बानो से किया निकाह

यहां हम आपको बता दें कि, आपकी पैदाइश 11 दिसंबर 1922 को पेशावर शहर, अब के पाकिस्तान में हुई, फिल्मों में आने के बाद यूं तो वो सबके दिल की धड़कनों में समा गए, पर अभिनेत्री सायरा बानो जो उनसे आधी उम्र की हैं, अपनी जवां धड़कनों में उनसे निकाह का अरमान भी संजोए बैठी थीं। जिसका एहतराम करते हुए सन 1966 में दिलीप साहब ने सायरा बानो से शादी कर ली। पर ऐसा नहीं था कि इससे पहले वो किसी और अभीनेत्री के दिल में नहीं समाए थे, बल्कि ये फेहरिस्त भी लंबी है, जिनमें अभिनेत्री कामिनी कौशल और वहीदा रहमान का नाम भी शामिल है।

90 के दशक तक भी सक्रिय रहे

70 ,80 और 90 के दशक में आपने कम काम किया पर जो भी किया वो दमदार स्क्रिप्ट पर किया, इसीलिए उनकी जो भी फिल्में आई, वो यादगार हैं जैसे:- क्रांति, दुनिया, कर्मा, विधाता, इज्ज़तदार,सौदागर और शक्ति, शक्ति में वो अमिताभ बच्चन के साथ नज़र आए और फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया, 1998 में रुपहले पर्दे पर आई फिल्म क़िला उनकी आखरी फिल्म थी।

कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले

फिल्मों में आपके यादगार अभिनय के लिए आपको दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ से भी नवाज़ा गया। सन 2000 से वो राज्य सभा सदस्य रहे, फिर ज़िंदगी ने चुपके से इशारा किया कि यही उनकी मंज़िल ए मक़सूद है और सांसें रुकने लगी।

98 साल की उम्र में हुआ निधन

98 साल की उम्र में 7 जुलाई 2021 को वो इस फानी दुनिया को, अपने चाहने वालों को अलविदा कह गए पर आज भी वो अभिनय की पाठशाला बने हुए हैं और हमेशा रहेंगे। एक आला मकाम है उनका हमारे दिलों में, जिसमें वो हमेशा जावेदा रहेंगे।
कश्मीर की कली यानी सायरा बानो ने उनकी याद में अपने जज़्बातों को बयां करते हुए, एक शेर पोस्ट किया था जो आख़िर में हम आपकी नज़र करते हैं, “उठ अपनी जुंबिश-ए-मिज़गां से ताज़ा कर दे हयात, के रुका रुका क़दम-ए-क़ायनात हैं साक़ी.”

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