MP: जमानत के लिए मुजरिम को बताना होगा आपराधिक रिकॉर्ड, 1 मई से नियम लागू

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MP High Court News: सीनियर एडवोकेट दत्त ने कहा कि साल 2008 में सीआरपीसी में यह संशोधन किया गया था। यदि कई मामलों में मुजरिम पर पहले से केस दर्ज है, तो कोर्ट उसकी जमानत खारिज कर सकता है। अभी जमानत के लिए सरकार मुजरिम का आपराधिक रिकॉर्ड देती थी, लेकिन अब मुजरिम को खुद यह देना होगा।

MP High Court: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देशभर में 1 मई से व्यवस्था बदली जा रही है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत द्वारा पारित आदेश पर प्रिंसिपल रजिस्ट्रार संदीप शर्मा ने इसका प्रारूप जारी कर दिया है। दरअसल, जारी प्रारूप में कहा गया है कि अग्रिम जमानत, अंतरिम जमानत, डिफॉल्ट जमानत सहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मांग करने वाले मुजरिमों को अब जमानत आवेदन के साथ पहले से दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी अनिवार्य रूप से कोर्ट को देनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट के सामने मुन्नेश बनाम मध्य प्रदेश प्रकरण में यह बात सामने आई है कि 3 अप्रैल 2025 को जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान आवेदक ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी नहीं दी, जबकि उसके खिलाफ पूर्व से 8 मामले दर्ज थे। बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए देशभर के न्यायालयों को आदेश दिया कि जमानत की अर्जी के साथ पूर्व में दर्ज मामलों की पूरी जानकारी ली जाए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट मनीष दत्त बताया कि यह बदलाव 1 मई से लागू होगा। इसके बाद जमानत आवेदन के साथ मुजरिम को अपने आपराधिक रिकॉर्ड अनिवार्य रूप से बताने होंगे।

सीनियर एडवोकेट दत्त ने कहा कि साल 2008 में सीआरपीसी में यह संशोधन किया गया था। यदि कई मामलों में मुजरिम पर पहले से केस दर्ज है, तो कोर्ट उसकी जमानत खारिज कर सकता है। अभी जमानत के लिए सरकार मुजरिम का आपराधिक रिकॉर्ड देती थी, लेकिन अब मुजरिम को खुद यह देना होगा। इस जानकारी के बिना जमानत अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी।

हाईकोर्ट ने जारी किया नया प्रारुप

नए प्रारुप में एफआईआर नंबर, किस थाने में किन धाराओं में केस दर्ज है और यह थाना किस जिले में है। आदि की जानकारी मांगी गई है।

किन प्रकरणों में जानकारी देना अनिवार्य

SC/ST एक्ट की धारा 14 के तहत जमानत या राहत की अर्जी, व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी अन्य कानूनी मांगें, सजा का निलंबन या आपराधिक अपील, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की तीनों बेंचों (जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर) में 1 अक्टूबर 2017 से लंबित मामलों में भी यह जानकारी देनी जरूरी होगी।

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