A Story of Lost Love : “अधूरा प्रेम” -प्रेम की अनसुनी भावनाओं का व्यर्थ विलाप – प्रेम एक ऐसा भाव है जो जीवन को अर्थ देता है। लेकिन कभी-कभी हम अपना पूरा दिल, अपनी पूरी आत्मा किसी ऐसे व्यक्ति को सौंप देते हैं, जो हमारे प्रेम को समझ ही नहीं पाता। यह कविता उस पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति है जो तब महसूस होती है जब हमारा प्रेम एकतरफा रह जाता है। जब हमारी चुप्पी कोई न पढ़ सके, जब हमारी हंसी-आंसू का किसी पर कोई असर न हो, तब मन भीतर ही भीतर टूटने लगता है। यह रचना उन सभी के हृदय को छू जाएगी जिन्होंने कभी अपना प्रेम किसी ऐसे इंसान को समर्पित किया है जो उसके योग्य नहीं था।
“अधूरा प्रेम”
कभी कभी हम प्रेम में-सब कुछ समर्पित कर देते हैं,
दिल, आत्मा और उम्मीदें,सब अर्पित कर देते हैं।
पर सामने वाला,
हमारे प्रेम को समझ नहीं पाता, वो हमारी चुप्पी, हमारी धड़कन
उसके मन तक पहुंच ही नहीं पाती।
हम हंसते हैं, पर वो मुस्कान – उसके होंठों पर नहीं उतरती,
हम रोते हैं, पर उसकी आंखों में – एक बूंद भी नहीं उभरती।
तब मन भीतर ही भीतर टूटने लगता है और प्रेम, जो जीवन का अर्थ था,
एक बोझ सा बन जाता है।
पर यही पीड़ा हमें सिखाती है कि प्रेम किसी योग्य को ही अर्पित करना चाहिए,
जो हमारी चुप्पी को पढ़ सके,जो हमारी मुस्कान को जी सके,
और जो हमारे आंसुओं को अपनी पलकों पर रोक सके।
कविता का शाब्दिक अर्थ व स्वरूप
कभी-कभी हमारा प्रेम सच में व्यर्थ हो जाता है, जब…
वो प्रेम किसी ऐसे व्यक्ति से किया जाए, जिसके हृदय में हमारा वास न हो,जो व्यक्ति हमारी चुप्पी को समझने में असमर्थ हो, जिसे रत्ती भर फर्क न पड़े हमारे हंसने, रोने से। हमें देखकर जिसके होंठों की मुस्कुराहट और बड़ी न हो जाए ,जो हमारे लिए इंतजार करने में असमर्थ हो, जो बार-बार जाने की बात कहे,हमारी नम आंखें देख जिसका दिल पसीजता न हो,जो कहकहों में छुपी हमारी उदासी को भांप न सके। जिसकी नजर में एहसासों का कोई मोल न हो ,जो जाते वक्त पलटकर न देखता हो कभी,जिसकी नजरों में न दिखता हो स्नेह कभी। ऐसे व्यक्ति को प्रेम के काबिल समझकर उससे प्रेम करना, सच में अपने प्रेम को व्यर्थ कर देना ही है।
विशेष – इस कविता का मूल भाव यही है कि प्रेम तभी सार्थक होता है जब वह दोनों तरफ से समान रूप से महसूस और निभाया जाए। एकतरफा भावनाएँ अक्सर दिल को तोड़ देती हैं। जिस व्यक्ति के हृदय में हमारे लिए स्थान न हो, जो हमारे दुख-सुख में सहभागी न बन सके, उसके लिए अपना हृदय खाली कर देना ही समझदारी है। प्रेम का सम्मान तभी है जब उसे समझने और संजोने वाला कोई हो। अन्यथा, वह प्रेम व्यर्थ नहीं, बल्कि आत्म-पीड़ा का कारण बन जाता है।