Shailendra Birth Anniversary: बात उस वक्त की है जब ,राज कपूर अपनी पहली फिल्म, 1948 की ‘आग’ के लिए अच्छी कविता की तलाश में थे तभी उन्होंने शैलेंद्र की लिखी ‘ जलता है पंजाब ‘ कविता सुनी और उसे खरीदने की पेशकश भी की लेकिन वामपंथी इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन यानी (इप्टा) के सदस्य शैलेंद्र ने भारतीय सिनेमा से दूरी बनाए रखने की वजह से राज कपूर को इनकार कर दिया पर , कुछ दिनों बाद शैलेंद्र खुद पैसों की ज़रूरत के चलते राज कपूर के पास काम की तलाश में पहुंचे ।
इस समय राज कपूर 1949 की फिल्म ‘ बरसात’ बना रहे थे, और चूंकि शैलेंद्र की रचनाओं को पहले से पसंद करते थे इसलिए फिल्म में अभी भी दो गीतों की गुंजाइश बाक़ी है , कहकर शैलेंद्र जी को दो गीत लिखने के लिए दे दिए ,शैलेंद्र ने जो ये दो गीत लिखे वो थे – ‘ पतली कमर है’ और ‘ बरसात में हमसे मिले तुम ‘।
बरसात फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन ने तैयार किया था, अब इससे ज़्यादा और हम इन गीतों के बारे में क्या कहें इसका जादू तो आप आज भी महसूस कर सकते हैं ।
कहां से आए थे शैलेन्द्र:-
तो आइए ज़रा शैलेंद्र जी को और क़रीब से जान लेते हैं ,
30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी , पंजाब यानी अब के पाकिस्तान में पैदा हुए ,शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र के पूर्वज बिहार के आरा ज़िले से थे, उन्होंने बहोत कम उम्र में ही अपनी माँ और बहन को खो दिया था। उनके गाँव अख्तियारपुर में ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर रहते थे पर शैलेंद्र के पिता कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए काम की तलाश में रावलपिंडी चले गए थे।
कविता लिखने की शुरुआत
शैलेंद्र ने अपनी पढ़ाई मथुरा में रहकर की और जब वो कॉलेज में पढ़ रहे थे तो इंद्र बहादुर खरे से उनकी दोस्ती हुई और दोनों तब से ही कविताएँ लिखने लगे थे।
1947 में शैलेन्द्र ने बम्बई के माटुंगा वर्कशॉप में भारतीय रेलवे में प्रशिक्षु के रूप में काम शुरू किया पर फिर भी कविताओं से जुड़े रहे और’ जलता है पंजाब ‘ ने तो उस समय सबकी रगों में ऐसा जोश भर दिया कि एक गूंज सी चारों ओर फैल गई थी जो राज कपूर के कानों तक भी पहुंची और उनकी फिल्मों में बतौर गीतकार आने का सबब भी बनी ।
राज कपूर और शंकर जयकिशन का साथ :-
जब आप राज कपूर के साथ जुड़ गए तो उनकी ज़्यादातर फिल्मों में संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ बतौर गीतकार आपने बेमिसाल जोड़ी बनाकर , कई हिट गाने बनाए जिनमें 1951 की फ़िल्म ‘आवारा’ का शीर्षक गीत ‘आवारा हूँ’ , उस समय भारत ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला गीत बन गया। 1955 में रिलीज़ हुई ‘ श्री 420 ‘ फ़िल्म के सभी गाने सुपरहिट रहे और आज भी पसंद किए जाते हैं। “प्यार हुआ इक़रार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल” गीत से शैलेंद्र की कल्पना शीलता और भावनाओं की अभिव्यक्ति को आसानी से समझा जा सकता है, ये आज भी बॉलीवुड का सदाबहार सुनहरा क्लासिक गीत है।
एक वाक़िआ जिसमें था इशारों में बात करने का अनोखा अंदाज़ :-
उन दिनों संगीतकार फिल्म निर्माताओं से गीतकारों की सिफारिश कर दिया करते थे, इसलिए शंकर-जयकिशन ने एक बार शैलेंद्र से वादा किया था कि वो उनकी सिफारिश और निर्माताओं से भी करेंगे, लेकिन उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया इस पर शैलेंद्र ने उन्हें एक नोट लिख के भेजा जिसमें पंक्तियाँ लिखी थीं,” छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं, कहीं तो मिलोगे, तो पूछेंगे हाल” यानी “दुनिया छोटी है, रास्ते जाने-पहचाने हैं। हम कभी तो मिलेंगे, और पूछेंगे ‘आप कैसे हैं? और क्यों हमें भूल गए।” फिर क्या था शंकर-जयकिशन को फौरन समझ में आ गया कि इस पैग़ाम का क्या मतलब है और उन्होंने माफ़ी मांगते हुए,इन पंक्तियों को 1962 की फ़िल्म ‘ रंगोली ‘ के एक गीत में बदलवा दिया जो बेहद लोकप्रिय हुआ जिसे किशोर कुमार ने गाया था।
यूं ही काम का सिलसिला चलता रहा और धीरे धीरे निर्माता राज कपूर , शैलेंद्र और संगीतकार शंकर-जयकिशन अपनी दोस्ती के लिए भी मशहूर हो गए उन्होंने 1950 और 1960 के दशक में कई सफल हिंदी फिल्मों के गानों को अपनी कल्पनाशीलता से संवारा। शंकर-जयकिशन के अलावा , शैलेन्द्र ने सलिल चौधरी के साथ फिल्म मधुमती में , सचिन देव बर्मन के साथ फिल्म ‘गाइड’ , ‘बंदिनी’ और ‘काला बाज़ार ‘ में काम किया तो वहीं फिल्म ‘अनुराधा’ में रविशंकर जैसे संगीतकारों के साथ भी अपना शब्द संयोजन साझा करते हुए कई फिल्म निर्माताओं को भी अपने गीतों का दीवाना बनाया।
जुड़ा भोजपुरी सिनेमा से नाता :-
शायद आपको ये न पता हो कि शैलेन्द्र ने कई भोजपुरी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे जिनमें’ गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ गीत बहोत पसंद किया गया, भोजपुरी की शुरुआती फिल्मों ,जैसे – ‘ गंगा’, ‘ मितवा’ और ‘ विधान नाच नचावे’ के लिए भी आपने ही गीत लिखे हैं। यही नहीं उनको अप्रैल 1965 में कलकत्ता में उस वक्त तक रिलीज़ हुई ,भोजपुरी और मगधी फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार भी मिला था।
फिल्म निर्माण नहीं आया रास :-
शैलेन्द्र द्वारा निर्मित एकमात्र फिल्म 1966 की “तीसरी क़सम” है। बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित और राज कपूर और वहीदा रहमान द्वारा अभिनीत, ये फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध लघु कथा “मारे गए ग़ुल्फ़ाम “का रूपांतरण थी ।और इन बोलों को गीत के रूप में “तीसरी क़सम” फिल्म में शामिल भी किया गया है ,आज भी ये एक क्लासिक फिल्म मानी जाती है ।
शैलेन्द्र ने बसु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित ,राज कपूर और वहीदा रहमान ,अभिनीत फिल्म “तीसरी क़सम ” के निर्माण में भारी निवेश किया , फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता लेकिन ये फिल्म व्यावसायिक रूप से असफल रही और कुछ वित्तीय घाटे आपको सहने पड़े जिसके कारण उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ा ,साथ ही इस टेंशन को कम करने के लिए उन्होंने शराब की लत लगा ली जिसने उन्हें और कमज़ोर कर दिया और 14 दिसंबर 1966 को उनकी असामयिक मृत्यु हो गई पर वो हमेशा हमारे दिलों में जावेदाँ रहेंगे।
शैलेन्द्र का मान सम्मान:-
शैलेंद्र का लिखा गाना ‘ मेरा जूता है जापानी’ 2016 की हॉलीवुड फिल्म डेडपूल में दिखाया गया था। मथुरा के धौली प्याऊ इलाके में एक गली का नाम 9 मार्च 2016 को शैलेंद्र के नाम पर रखा गया – गीतकार-जनकवि शैलेंद्र मार्ग – मथुरा । क्योंकि शैलेंद्र ने 1947 में भारतीय रेलवे में काम करने के लिए मुंबई जाने से पहले अपने शुरुआती जीवन के 16 साल मथुरा में बिताए थे।
शैलेन्द्र ने तीन बार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार जीता ।
1958 में गीत “ये मेरा दीवानापन है” फिल्म ‘यहूदी’ के लिए, 1959 में ” सब कुछ सीखा हमने ” फिल्म ‘अनाड़ी’ और
1968 को “मैं गाऊं तुम सो जाओ ” फिल्म ‘ ब्रह्मचारी ‘के गीत के लिए।
गीतों में समाया एक दिलनशीं दौर:-
शैलेन्द्र के कुछ लोकप्रिय गीतों को अगर हम याद करें तो एक दिलनशीं दौर की आगो़श में खुद को पाते हैं, मसलन –
‘सुहाना सफ़र और ये ….’ – फिल्म ” मधुमती “से। ‘चलत मुसाफिर मोह लिया रे. …’ और ‘सजन रे झूठ मत बोलो….’ – ” तीसरी क़सम “से ,
‘ये मेरा दीवानापन है …’ – ” यहूदी “से , ‘दिल का हाल सुने दिलवाला…’ – ” श्री 420 “से ,
‘तू प्यार का सागर है …’ – ” सीमा “से , ‘अजीब दास्तां है ये. …’- “दिल अपना और प्रीत पराई ” से ,
और ‘रात के हमसफ़र, थक के घर को चले. …’ – ” एन इवनिंग इन पेरिस “फिल्म से।
ज़िंदा होने का सबूत मांगती कविता :-
आखिर में जोश से लबरेज़ उन्हीं की मशहूर
कविता को हम आपको याद दिलाना चाहेंगे –
“तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर,
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
सुबह ओ ‘ शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!….
तू ज़िन्दा है हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है, ये आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!….
तू ज़िन्दा है हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!….
तू ज़िन्दा है, ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!….
तू ज़िन्दा है बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,गिरेंगे ज़ुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…. तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर,अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!