ओल्ड इज़ गोल्ड गाने तो सभी को भाते हैं या कह लें कि संगीत की थोड़ी समझ रखने वालों के दिल के क़रीब हैं लेकिन 90 के दशक से 2000 की शुरुआत तक कुछ ऐसे गीत आए जिनका खु़ंमार सबके सिर चढ़कर बोला चाहे वो संगीत के पारखी हों या न हों ,बच्चे हो ,बड़े हों या बूढ़े, बिलकुल जुदा ही था इन गीतों का अंदाज़, जो नई पीढ़ी को भी अपनी ओर आकर्षित करता हैं।
आशिक़ी से चला एक जोड़ी का जादू –
कैसे थे ये गाने ? तो हम आपको बता दें कि इनकी फेहरिस्त तो बहोत लंबी है फिर भी इनमें से कुछ खास फिल्मों को हम याद दिलाए देते हैं ,जो इन गीतों से सज कर आई थीं, तो सबसे पहले अपने दिलनशीं नग़्मों से हमें दीवाना बनाने आई फिल्म आशिक़ी , जिसकी भारत में 20 मिलियन यूनिट बिकीं और ये अब तक का सबसे अधिक बिकने वाला बॉलीवुड साउंडट्रैक एल्बम बन गया यही नहीं इसके संगीत ने टी-सीरीज़ (T series) कंपनी को भी बुलंदियों पर पहुंचा दिया ,फिर आई” साजन “, ” फूल और कांटे”,” सड़क”,” दिल है के मानता नहीं”,” दीवाना”, “सपने साजन के”, “हम हैं राही प्यार के” ,” रंग” ,” दिलवाले” ,” सलामी” ,”राजा”,”बरसात”, “अग्निसाक्षी”, “जीत “, “राजा हिंदुस्तानी”, “साजन चले ससुराल”, “परदेस”, “जुदाई”, “मोहब्बत”, “सिर्फ तुम”, “धड़कन”,” कसूर”,” एक रिश्ता”,” ये दिल आशिकाना”, “राज़”, “दिल है तुम्हारा”, “हां मैंने भी प्यार किया”,” दिल का रिश्ता “, “अंदाज “, ” क़यामत” ,” बरसात “और “दोस्ती” जैसी बेशुमार फिल्में जिनके गीत संवरे थे। नदीम-श्रवण के संगीत से जो सुनने में तो एक ही नाम लगता है पर ये दो संगीत निर्देशकों नदीम अख्त़र सैफी और श्रवण कुमार राठौड़ की जोड़ी है।
शास्त्रीय संगीत की धुनों और वाद्यों का इस्तेमाल
जिन्होंने अपनी धुनों में हिंदुस्तानी संगीत के शास्त्रीय और अर्ध-शास्त्रीय पहलू को बड़े प्रभावी ढंग से पेश किया और हमारे पारंपरिक वाद्यों का भी बड़े भरोसे और शिद्दत से बखूबी इस्तेमाल किया जिनमें बांसुरी , सितार और शहनाई उनके लगभग सभी गीतों में मनमोहक रूप में सुनाई देते हैं , जिन्हें उनके मूल रूप में बिना छेड़ छाड़ किए, नए अंदाज़ में ढाला गया है ।
दिग्गज गायक मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi) ने भोजपुरी फिल्म “दंगल” में और किशोर कुमार (Kishor Kumar) ने फिल्म ‘इलाका ‘ में उनके संगीत निर्देशन में गीत गाए लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) और आशा भोसले (Asha Bhosle) ने भी इस जोड़ी के लिए कुछ एल्बमों में गीत गाए।
नदीम अख़्तर सैफी और श्रवण 1973 से एक दूसरे के साथ थे जब वो एक समारोह में एक दूसरे से मिले थे, उनकी पहली फ़िल्म 1977 की भोजपुरी फ़िल्म “दंगल” थी जिसमें मन्ना डे का गाया भोजपुरी गीत “काशी हिले, पटना हिले”बेहद लोकप्रिय हुआ था और आपकी पहली संगीत बद्ध की गई हिंदी फ़िल्म 1981 में आई , ‘ मैंने जीना सीख लिया थी ‘।
1990 की फिल्म, आशिक़ी के ज़रिए वो सुर्खियों में आए जो टी सीरीज़ म्यूज़िक कम्पनी के संस्थापक गुलशन कुमार ने उन्हें दी थी जिसके संगीत को “100 महानतम बॉलीवुड साउंडट्रैक” पर चौथे सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक का दर्जा दिया गया ।
उनके कुछ गाने जैसे- “अदाएं भी हैं”, “तुझे न देखूं तो चैन”, “चेहरा क्या देखते हो” हमें ग़ज़ल की रौ में बहा ले जाते हैं तो परदेस के गानों में हमें मौसिक़ी का मुख्तलिफ अंदाज़, क़व्वाली तक ले जाता है ।
कैसे टूट गयी ये जोड़ी –
काश ये दौर चलता रहता और हम ऐसी अनुपम धुनों का आनंद लेते रहते पर गुलशन कुमार (Gulshan Kumar) की हत्या के साथ ही दोनों के करियर पर मानों विराम लगने लगा क्योंकि उनकी हत्या के मामले में संदेह नदीम अख़्तर सैफी पर भी किया गया था. हालंकि बाद में सबूत नहीं मिले लेकिन नदीम भारत छोड़कर चले गए। नदीम यू.के. में ही रहने लगे पर इंग्लैंड और भारत के बीच की दूरी के बावजूद, वो श्रवण के साथ मिलकर संगीत रचते रहे दोस्ती: फ्रेंड्स फॉरएवर में उन्होंने आखरी बार साथ में संगीत दिया। 22 अप्रैल 2021 को श्रवण कोविड-19 का शिकार होकर हमें और अपने साथी नदीम को अलविदा कह गए पर नदीम के संगीत से, उनके नाम से वो कभी जुदा नहीं हुए। आप दोनों का रचा संगीत, एक मीठी झंकार बनकर हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में रहेगा ।