प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग का चमत्कार, 1000 साल पुराना अनंग बांध

History Of Anang Dam In Hindi: भारत की धरती प्राचीन काल से ही ज्ञान, विज्ञान और इंजीनियरिंग के चमत्कारों की साक्षी रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हाल ही में दिल्ली-हरियाणा सीमा पर अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित 1100 साल पुराने अनंग बांध की तस्वीरें साझा की हैं, जो प्राचीन भारतीय हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक अनूठा उदाहरण है। यह बांध न केवल प्राचीन समय में इंजीनियरिंग की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है, बल्कि उस दौर की दूरदर्शिता और जल प्रबंधन की समझ को भी हमें बताता है।

राजा अनंगपाल ने बनवाया था यह बांध

अनंग बांध जिसे 11वीं शताब्दी में तोमर राजपूत वंश के राजा अनंगपाल ने बनवाया था, यह डैम प्राचीन भारतीय हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट नमूना है। दिल्ली-हरियाणा सीमा पर अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित यह बांध बिना किसी मशीनरी या फाटक के गुरुत्वाकर्षण तकनीक का उपयोग कर बारिश के पानी को रोकता था। इसकी 101.2 मीटर लंबी संरचना में ढलान वाली पूर्वी दीवार, पश्चिमी सीढ़ियां, और सात जल निकासी चैनल हैं, जो बारीक तराशे गए पत्थरों और चूने के मसाले से बने हैं। यह बांध सूरजकुंड और बडखल झील जैसे जलाशयों के लिए पानी का स्रोत था।

अनंग बांध इंजीनियरिंग का एक चमत्कार

ASI के अनुसार, अनंग बांध की संरचना अरावली पहाड़ियों के प्राकृतिक ढलान का लाभ उठाकर बनाई गई थी। इसकी कुल लंबाई 101.2 मीटर है, जो इसके मजबूती के साथ-साथ अनुपम कार्यक्षमता का भी प्रतीक है। बांध की पूर्वी दीवार ढलान वाली है, जिसकी गहराई ऊपर से नीचे की ओर बढ़ती जाती है, जबकि पश्चिमी तरफ सीढ़ियां बनी हैं। उत्तरी और दक्षिणी छोर पर अतिरिक्त कोणीय पार्श्व सीढ़ी बांध की अनूठी तकनीक अनंग बांध की इंजीनियरिंग अपने समय से कहीं आगे थी। बांध में सात जल निकासी चैनल बनाए गए हैं, जो इसकी मोटी दीवारों के माध्यम से पानी को नियंत्रित करते हैं। ये चैनल अलग-अलग गहराई पर पानी को रोकने या निकालने की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे जल स्तर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जाता था। बांध का निर्माण बारीक तराशे गए पत्थरों और मलबे के पत्थरों से किया गया, जिन्हें चूने के मसाले से जोड़ा गया था। निर्माण की तकनीक न केवल टिकाऊ थी, बल्कि पर्यावरण के भी अनुकूल थी।

कौन थे अनंगपाल तोमर

अनंगपाल तोमर राजपूत वंश के राजा थे। तोमर राजवंश आज के दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल के कुछ हिस्सों पर शासन किया करते थे। 8वीं शताब्दी में स्थापित तोमर राजवंश ने हरियाणा के अनंगपुर गांव को अपनी राजधानी बनाया और वहां से अपने राज्य का विस्तार किया। 11वीं शताब्दी में अनंगपाल द्वितीय ने न केवल अनंग बांध, बल्कि मेहरौली में अनंग ताल जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण ढांचों का निर्माण करवाया।

अनंगपाल द्वितीय ने बसाई थी दिल्ली

अनंगपाल को लाल कोट के गढ़ के आसपास दिल्ली को बसाने का श्रेय भी जाता है। अनंगपाल द्वारा बसाया गया दिल्ली शहर दिल्ली में बसा पहला शहर माना जाता है। उनके शासनकाल में कई महल और मंदिर बनाए गए, हालांकि समय के साथ इनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं। लेकिन उनकी विरासत की याद आज भी इन ऐतिहासिक संरचनाओं के रूप में जीवित है।

जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक अनंग ताल

अनंग बांध के अलावा, मेहरौली में स्थित अनंग ताल भी अनंगपाल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था है। 2022 में भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा प्रदान किया। ASI के संस्थापक प्रमुख अलेक्जेंडर कनिंघम ने 19वीं शताब्दी में इस ताल के आयामों को मापा था, जो 169 फीट (उत्तर-दक्षिण) x 152 फीट (पूर्व-पश्चिम) और 40 फीट गहरा था। इसकी जल धारण क्षमता लगभग एक मिलियन क्यूबिक फीट थी, जो उस समय के जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक को दर्शाती है।
दिल्ली सरकार ने हाल के वर्षों में अनंग ताल का जीर्णोद्धार करवाया था, जिसमें कई टन मलबा हटाया गया। यह ताल आज भी प्राचीन भारतीय जल संरक्षण प्रणालियों की महत्ता को दर्शाता है।

प्राचीन संरचनाओं का आधुनिक महत्व

अनंग बांध और अनंग ताल जैसे ढांचे हमें यह बतातें हैं कि प्राचीन भारत में जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण को कितना महत्व दिया जाता था। ये संरचनाएं न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से उन्नत थीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। आज, जब जल संकट और पर्यावरणीय चुनौतियां वैश्विक मुद्दे बने हुए हैं, इन प्राचीन तकनीकों से प्रेरणा लेकर हम एक समाधान की तरफ बढ़ सकते हैं। ये जल प्रबंधन संरचनाएं हमारे लिए उत्कृष्ट उदाहरण हैं।



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