रीवा। अपराध और दंड, प्राचीनकाल से ही, मानव समाज में उपस्थित रहे हैं और दोनों एक-दूसरे के पूरक रहे हैं, इसलिए अपराध करने वाला व्यक्ति एक दिन जेल की सलाखों के पीछे पहुँचता ही है, जहाँ कानून के हाथों, प्राप्त हुई सजा उसको काटनी होती है। इसी उद्देश्य से रीवा में भी, ऐसी ही एक जेल का निर्माण करवाया गया था। जिसका प्रवेश द्वार और उसकी दीवारे ब्रिटिश स्थापत्य शैली और उसकी इंजीनियरिंग को बयां करती है।
140 साल पहले हुआ था जेल का निर्माण
इतिहासविदों से हमें जो तथ्य मिलते हैं, उसके अनुसार रीवा के केन्द्रीय जेल का निर्माण 1884-85 रियासत काल में करवाया गया था। वर्तमान में यह क्षेत्र पुलिस लाइन के नाम से जाना जाता है। तकरीबन एक सौ चालीस साल पहले जब देश में ब्रिटिश शासन था, तब रीवा के महाराज रघुराज सिंह की पहल पर यहाँ आधुनिक जेल बनाए जाने की आधारशिला रखी गई। उस जमाने में इस भव्य जेल के निर्माण कार्य में 90 हजार 485 रूपए की लागत आई थी। रीवा के जेल में कारागार के साथ ही महिलाओं के लिए अलग बैरक, फांसी घर और कैदियों के लिए खेलकूद के मैदान आदि का निर्माण भी किया गया था। प्रारंभ में इस जेल में 300 कैदियों को रखने की व्यवस्था बनाई गई थी, हांलाकि बाद में जैसे ही बंदियों की संख्या लगातार बढ़ने लगी, वैसे ही यहां कुछ नए बैरकों का निर्माण किया गया। रियासत काल में उत्तरी जिले के मजिस्ट्रेट ही, रीवा जेल के सुपरिटेंडेंट कहलाते था।
ब्रिटिश स्थापत्य शैली की झलक
इसका मुख्य भवन ब्रिटिश स्थापत्य शैली से बना हुआ है। इंग्लैण्ड के मशहूर इंजीनियर जी हैरिश ने रीवा की जेल का नक्शा तैयार किया था। जेल का मुख्य गेट ब्रिटिश स्थापत्य शैली से मिलता-जुलता है। इस जेल का निर्माण बड़ी मजबूती से किया गया था। उद्देश्य था कैदियों की सुरक्षा व्यवस्था, बंदी जेल से बाहर न निकल पाएँ, इसके लिए 15 फिट उॅची दीवार जेल के चारों ओर बनाई गई थी। दीवार भी ऐसी बनी थी कि कहीं से भी इस दीवार में कोई नही चढ़ पाता था, यानि की पूरी दीवार प्लेन और चिकनी बनाई गई थी।
20 कैदियों को दी गई थी फॉसी
रीवा के जेल में निर्माण के साथ ही इस जेल के अंदर फॉसी घर भी बनाया गया था, इतिहासकार बताते है कि 1884-85 से 1905 के बीच इस जेल में 20 कैदियों को फांसी दी गई थी। लेकिन बाद में फांसी घर को बंद कर दिया गया। उस अवधि में जेल के अंदर 107 लोगो को आजन्म कारावास दिया गया था। रीवा केंद्रीय जेल मध्यप्रदेश के प्रमुख कारावासों में से एक है। इस जेल में कई खूंखार अपराधी, बंदी रह चुके हैं, जो मध्यप्रदेश के दूसरे जेलों से बंदियों के तौर पर रीवा के जेल में सजा भुगतने के लिए आए थे। रीवा के केन्द्रीय कारागार में ऐसा ही एक अंतरराज्यीय बंदी था सफदर नागौरी, वह सिमी के सबसे खूंखार आंतकवादियों में से एक रहा है। इसी तरह बिहार का एक जाना-माना किडनैपर बलिंदर सिंह भी रीवा के जेल में बंद रहा है। यह बंदी उस समय और चर्चा में आ गया था, जब उसे जेल से ईलाज के लिए रीवा के संजय गांधी अस्पताल में भर्ती किया गया था और वह जेल प्रहरियों को चकमा देकर यहाँ से भागने में सफल हो गया था।
जेल में हुए आंदोलन
रीवा की केन्द्रीय जेल, केवल खूंखार बंदियों और अपराधियों तक ही सीमित नही रही है। बल्कि यह जेल देश की आजादी के आंदोलनों की भी गवाह रही है। इस जेल में देश के आजादी के लिए हुए- सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी विंध्य क्षेत्र के कई राजनैतिक कार्यकर्ताओं को इसी जेल में बंद किया गया था। देश के आजादी के बाद भी इस जेल में कई राजनैतिक आंदोलन और छात्र आंदोलन के आंदोलनकारी बंद रहे हैं। 1975 में इंदिरा सरकार द्वारा लगाया गया आपातकाल इसका प्रमुख उदाहरण है, जब मीसा कानून के तहत इस जिले और क्षेत्र के कई सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ता यहाँ बंद थे।
बंदियों को दिया जाता है प्रशिक्षण
जेल प्रशासन बंदियों को सजा देने के साथ ही उन्हे सामाजिक तौर पर भी तैयार करता आ रहा है। इसी के तहत जेल के बंदियों को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ के बंदियों द्वारा की गई बुनाई-कढ़ाई ऐसी रही है कि मशीनों की बुनाई-कढ़ाई को मात देती रही। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर निकलने वाली झांकी को रीवा जेल के बंदी ऐसे तैयार कर रहे है कि उनकी झांकी अक्सर उत्कृष्ट स्थान हासिल करती रही है और यह जेल कर्मचारियों एवं बंदियों के हुनर का कमाल है। इस जेल के बंदी रोजगार से जुड़ें, इसके लिए रोजगार सबंधी कार्य भी चलाए जाते है। ताकि वो जेल से छूटने के बाद रोजगार की दिशा में कार्य कर सकें और यह हुनर उनके जीवन यापन के काम आए। ऐसा बताया जा रहा है कि जिस तरह से बंदियों की संख्या बढ़ी है। उस हिसाब से अब रीवा में केन्द्रीय जेल का नया भवन बनाए जाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।