आजादी के 7 दशक बाद Delhi से Mizoram’s की राजधानी Aizawl पहुंची Train!

Indian Railway in Aizawl Mizoram: यह खबर सुन आपको खुशी भी होगी लेकिन जिन्हें इसके बारे में नहीं पता उन्हें हैरानी भी होगी. जी हाँ मिजोरम की राजधानी आइजोल में पहली बार ट्रेन पहुंची है. इसलिए यह मिजोरम और आइजोल के लिए गौरव का दिन है. यह क्षण सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है. देश को आज़ाद हुए 7 दशक बीत चुके हैं बावजूद उसके मिजोरम का एक बड़ा इलाका आज तक ट्रेन की आवाज़ तक से अंजान था.

मिजोरम में बहुत से लोग हैं जिन्होंने ट्रेन देखा ही नहीं

गौरतलब है की आज के मॉडर्न टेक्नोलॉजी के दौर में भी मिजोरम के ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अब तक ट्रेन को न तो चलते देखा, न चढ़े, न ही स्टेशन देखा. ऐसे में ये किसी सपने के साकार होने से कम बिल्कुल नहीं है. बैरवी से सायरांग तक बनकर तैयार हुई नई रेलवे लाइन के पूरा होते ही मिजोरम की राजधानी आइजोल भी अब देश के बाकी हिस्सों से सीधे जुड़ गई है. भारतीय रेल के नक्शे पर अब मिजोरम की मौजूदगी दर्ज हो चुकी है.

भारत के दिल से जुड़ने वाला प्रोजेक्ट

उत्तर पूर्व रेलवे के प्रमुख PRO K.K Sharma बताते हैं कि इस लाइन के शुरू होने से पूर्वोत्तर के चार राज्यों की राजधानी असम, अरुणाचल, त्रिपुरा और अब मिजोरम भारतीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ चुकी हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी इसे मिजोरम को भारत के दिल से जोड़ने वाला प्रोजेक्ट बताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही इसे राष्ट्र को समर्पित करेंगे. ये रेल लाइन न केवल लोगों को जोड़ेगी, बल्कि क्षेत्र के व्यापार, विकास और सुरक्षा के लिए भी बेहद अहम साबित होगी.

Aizawl आना हुआ आसान

इसके आने के बाद अब आइजोल पहुंचने में बेहद आसानी होगी आपको बताएं अब तक आइजोल आने के दो ही तरीके थे. पहला हवाई जहाज से और दूसरा सड़क मार्ग से जिसमें असम के सिलचर से 8–10 घंटे का लंबा सफर होता है. लेकिन अब, बैरवी-सायरांग रेलवे लाइन के तैयार हो जाने के बाद ये दूरी महज 3 घंटे में तय की जा सकेगी.

Railway Network and Stations

अब आपको इससे जुड़ी कुछ सामान्य जानकारी दे देते हैं. इस नई रेल परियोजना में कुल 51 किलोमीटर लंबा ट्रैक है. इसके रास्ते में चार प्रमुख स्टेशन -kurtiki, kanpui, mulkhang और Sairang, बनाए गए हैं. रेलवे के मुताबिक, इस ट्रैक पर ट्रेनों की रफ्तार 110 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है जो कि पहाड़ी इलाके के हिसाब से बड़ी उपलब्धि है.

प्रोजेक्ट की शुरुआत कैसे हुई!

आपको बता दें की इस रेलवे प्रोजेक्ट की परिकल्पना साल 2008 में की गई थी. लेकिन 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब इस प्रोजेक्ट को असली रफ्तार मिली. 29 नवंबर 2014 को उन्होंने बैरवी-सायरांग रेल लाइन की आधारशिला रखी. प्रोजेक्ट पर कुल लागत आई करीब 5022 करोड़ रुपये.

सबसे खास बात

गौर करने योग्य बात यह भी है कि, इस प्रोजेक्ट की इंजीनियरिंग भी कमाल की है. दूसरा सबसे ऊंचा पुल ब्रिज नंबर 144, मुलखांग और सायरांग के बीच है. इसकी ऊंचाई है 104 मीटर,जबकि कुतुबमीनार की ऊंचाई है 72 मीटर हैं यानी यह पुल कुतुबमीनार से भी 42 मीटर ज्यादा ऊंचा है. इस प्रोजेक्ट में कुल 154 पुल (ब्रिज)और 48 सुरंगें (टनल) हैं.

IITs ने किया डिजाइन

यह इलाका भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है. बावजूद इसके रेलवे ने ऐसा ट्रैक बनाया है जो 100 साल से ज्यादा तक मजबूत और टिकाऊ रहेगा. इसका डिजाइन IIT कानपुर और IIT गुवाहाटी के इंजीनियरों की मदद से तैयार किया गया है. सुरक्षा परीक्षण (CRS Approval) के बाद 10 जून 2025 को इसे हरी झंडी दे दी गई है.

राजधानी से डायरेक्ट ट्रेन संभव

इस ट्रैक के चालू होते ही अब दिल्ली,कोलकाता, गुवाहाटी जैसे शहरों से सीधी ट्रेन सेवा शुरू की जा सकती है. प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर विनोद कुमार ने बताया अब मिजोरम के लाखों लोगों को देश के किसी भी कोने तक ट्रेन से जाना आसान होगा. इससे माल ढुलाई सस्ती होगी, कारोबार बढ़ेगा और स्वास्थ्य-शिक्षा के लिए बाहर जाने में दिक्कत नहीं होगी.

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