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49 years since Emergency:आपातकाल का वो दिन !

करप्शन,महंगाई, इसके खिलाफ देश भर में चल रहे आंदोलन,ताकत का गुमान,न्यायपालिका के साथ सत्ता का टसल और इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फैसला.इन सभी इवेंट्स ने जन्म दिया एक बड़े इवेंट को.भारतीय लोकतंत्र का डार्केस्ट पीरियड .साल 1975, नैशनल इमरजेंसी।

25 जून और 26 जून की दरमियानी रात देश में आपातकाल लगा दिया गया.लोग सोये थे लोकतंत्र के आगोश में.जागे तो ज़बान छीन ली गयी थी,विपक्ष के लगभग सभी लीडर्स जेल के अंदर थे,यहाँ तक कि कांग्रेस के जिन नेताओं ने आपातकाल का विरोध किया और इंदिरा गाँधी के खिलाफ बोला,उन्हें उनके पदों से हटाकर अरेस्ट कर लिया गया,प्रेस को पूरी तरह से कुचल दिया गया और सबसे खौफनाक देश भर में Mass Sterilization किया गया.आपताकाल के दौरान बड़े स्तर पर लोगों के मानवाधिकारों को कुचल दिया गया. इंदिरा गाँधी के बेटे संजय गाँधी ने एक कैंपेन चलाया जिसमे जनसँख्या कम करने के लिए जबरदस्ती गरीब आदमियों की नसबंदी कराई गयी.जो ज्यादातर मामलों में असुरक्षित थी.लगभग 2 हज़ार आदमी मारे गए थे असुरक्षित ऑपरेशन के कारण।लोगों को जबरदस्ती उनके घरों से खींचकर लाया जाता था,नसबंदी के लिए ।साइंस जर्नलिस्ट Mara Hvistendahl के मुताबिक इस दौरान 6.2 मिलियन भारतीय मर्दों की साल भर में नसबंदी की गयी थी जो हिटलर के नाज़ी जर्मनी में किये गए Mass Sterilization से 15 गुना ज्यादा था.

क्या था इस काले दिन का इतिहास,जानेंगे इस वीडियो में.भारत में अभी तक तीन आपातकाल लग चुके हैं साल 1962 में इंडिया चाइना वॉर के वक्त,साल 1971 इंडिया पाकिस्तान वॉर के दरमियान लेकिन साल 1975 की इमरजेंसी का आधार संविधान के अनुच्छेद 352.जिसमे एमर्जेन्सी के प्रावधानों का ज़िक्र है,उसमे मेंशंड इंटरनल डिस्टर्बेंस को बनाया गया.26 जून की सुबह जब लोगों ने रेडियो चालू किया तो आवाज़ थी इंदिरा गाँधी की.वो कह रही थीं

“भाइयों,बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है लेकिन इससे आम लोगों को डरने की जरुरत नहीं है”.

इमरजेंसी लगाने के पीछे के राजनीतिक और सामाजिक दोनों कारण थे.राजनीतिक कारणों में शुमार था इंदिरा गाँधी सरकार का इंडियन जुडिशरी के साथ टसल.दरअसल साल 1971 में इंदिरा गाँधी की सरकार की बड़ी जीत होती है.वो गरीबी हटाओ के नारे के साथ रायबरेली सीट से चुनाव लड़ती हैं.इस सीट का नाम याद रखियेगा।इसी साल इंडिया पाकिस्तान के बीच वॉर भी हुई जिसमे भारत को जीत हासिल होती है और जीत का क्रेडिट इंदिरा गाँधी को.फिर आता है साल 1972.इस साल देश के चार राज्यों कर्नाटक,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने थे लेकिन इंदिरा गाँधी ने उत्तर में पंजाब और हरियाणा और पूर्व में बिहार की विधानसभाओं को उनके कार्यकाल से पहले ही भंग कर दिया,यहाँ भी चुनाव हुए और इन सभी राज्यों में कांग्रेस की जीत हुई अब इस समय के भारत को देखिये।इस वक्त भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु को छोड़कर पूरे देश में कांग्रेस का राज था.इन सब के दौरान इंदिरा गाँधी ने दो फैसले लिए पहला था बैंकों का राष्ट्रीयकरण और दूसरा था Privy Purses को हटाना।दरअसल Privy Purses कुछ अमाउंट ऑफ़ पेमेंट थीं जो रॉयल फैमिलीज़ को दी जाती थीं.ये एग्रीमेंट आज़ादी के वक्त जब प्रिंसली स्टेट्स को भारत के साथ मर्ज किया गया तब ही साइन हुआ था.खैर इन दोनों फैसलों का इससे प्रभावित होने वालों ने विरोध किया।विरोध सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया और फैसला सुनाया गया इंदिरा गाँधी के विरुद्ध।सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों फैसलों को सिरे से ख़ारिज कर दिया।

ज़ाहिर सी बात थी ये बात इंदिरा गाँधी को रास नहीं आयी और इसके लिए उन्होंने संविधान में कुछ संशोधन करने का फैसला लिया।दो नए अमेंडमेंटस लाये गए ,24th और 25th अमेंडमेंट।24th अमेंडमेंट के मुताबिक ये फैसला लिया गया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में बदलाव कर सकती है.वहीँ 25th अमेंडमेंट प्राइवेट प्रॉपर्टीज को लेकर था.जिसमे कहा गया कि अगर प्राइवेट प्रॉपर्टीज को किसी पब्लिक यूज़ के लिए लिया जाता है तो उसमे कंपनसेशन की अमाउंट सरकार डिसाइड करेगी,उसमे कोर्ट का कोई दखल नहीं होगा.मामला फिर एक बार कोर्ट में पहुंचा और फिर फैसला इंदिरा गाँधी के विरोध में आया.

अब बात करते हैं सामाजिक कारणों की.उस वक्त देश एक युद्ध से निकल कर आया था,महंगाई,गरीबी और बेरोज़गारी देश भर में व्याप्त थी और अभी तक कांग्रेस पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आ गयी थी इसके साथ इसके ऊपर करप्शन के भी कई मामले सामने आ रहे थे.इन सब से देश की जनता में गुस्सा बढ़ने लगा था.फिर हुआ एक इंसिडेंट।20 नवम्बर 1973 को अहमदाबाद के एल डी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने मेस में बढ़े हुए खाने के दाम के विरोध में प्रोटेस्ट शुरू कर दिया और इस प्रोटेस्ट की आग पहुँच गयी बिहार तक.बिहार में नारा लगा गुजरात की जीत हमारी है,अब बिहार की बारी है.ये सब स्टार्टिंग पॉइंट्स थे जो एक बड़े इवेंट की ओर इशारा कर रहे थे.18 मार्च 1974 को बिहार के कुछ छात्रों ने प्रोटेस्ट करते हुए बिहार विधानसभा का घेराव किया।इसमें 3 छात्रों की पुलिस एक्शन में मौत हो गयी.लोगों का गुस्सा फूट पड़ा.23 मार्च 1974 को बिहार बंद का आवाहन किया गया.यहीं से एंट्री होगी जयप्रकाश नारायण की और उनके आंदोलन की.दरअसल बिहार बंद के विरोध में सरकार ने कई स्टूडेंट्स को जेल में बंद कर दिया।तब स्टूडेंट यूनियन ने जयप्रकाश नारायण से मदद मांगी और नींव पड़ी बिहार आंदोलन की.इन्ही सब के दौरान एक सोशलिस्ट लीडर जॉर्ज फर्नांडिस ने रेलवे हड़ताल कर दी.तीन महीनों तक चले इस आंदोलन को 1 लाख रेलवे कर्मचारियों का समर्थन मिला और देश भर में ये आंदोलन सरकार के विरोध के रूप में प्रचंड होने लगे और फिर आया इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फैसला जिसने इंदिरा गाँधी की साल 1971 की चुनावी जीत पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया.

दरअसल 2 सालों से इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गाँधी के खिलाफ एक केस चल रहा था.केस फाइल किया था फ्रीडम फाइटर और पॉलिटिशियन राज नारायण ने.ये वही थे जिन्होंने साल 1971 में इंदिरा गाँधी के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ा था और हार गए थे.राज नारायण ने कोर्ट में जो पेटिशन दायर की थी उसमे इंदिरा गाँधी के खिलाफ चुनाव में अनफेयर प्रक्टिसेस का आरोप लगाया गया था.22 जून 1975 को अलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया और आने वाले छह सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गयी.देश की राजनीती में भूचाल आ गया.मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।और एमर्जेन्सी से एक दिन पहले यानि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के जज V.R Krishna Iyer ने अलाहाबाद कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।हालाँकि अपने कार्यकाल पूरा होने तक इंदिरा गाँधी प्राइम मिनिस्टर रह सकती थीं.इधर कोर्ट का ये जजमेंट उधर देश भर में बड़ा रूप लेता JP आंदोलन.

25 जून को JP नारायण की अगुवाई में रामलीला मैदान में विपक्ष के नेताओं और कई अन्य प्रोटेस्टर्स के साथ मिलकर रैली निकाली गयी और इंदिरा गाँधी को पद छोड़ने के लिए बोला गया.रामलीला मैदान में 5 लाख लोग जयप्रकाश नारायण को सुन रहे थे.इस सारे पोलिटिकल केऑस के बीच इंदिरा गाँधी को तख्तापलट का डर सताने लगा और 25 जून,26 जून की दरमियानी रात संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इंटरनल इमरजेंसी का हवाला देते हुए देश भर में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी.2 सालों तक देश के लोगों के मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से छीन लिया गया और विरोधियों की आवाज़ों को जेल के भीतर दफ़्न कर दिया गया.इस दौरान एक और चेहरा था जो जेल के पीछे था देश के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयीइनकी जेल के अंदर लिखी गयी कविताओं में से एक है

टूट सकते हैं,मगर हम झुक नहीं सकते

सत्य का संघर्ष सत्ता से

न्याय लड़ता है निरंकुशता से

अँधेरे ने दी चुनौती है

किरण अंतिम अस्त होती है

दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प

वज्र टूटे या उठे भूकंप

यह बराबर का नहीं है युद्ध

हम निहत्थे।शत्रु है सन्नद्ध

हर तरह के शस्त्र से है सज्ज

और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण।

पुनः अंगद ने बढ़ाया चरण

प्राणपण से करेंगे प्रतिकार

समर्पण की मांग अस्वीकार

दांव पर सब कुछ लगा है,रुक नहीं सकते

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

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